बेरोजगारी बड़ी समस्या
देश में बेरोजगारी की समस्या कोई नई नहीं है। गरीबी हटाओ का अभियान आज से लगभग 45 वर्ष पहले इंदिरा गांधी ने प्रारंभ किया था। प्रारंभिक समय में यह कुछ हद तक कारगर भी सिद्ध हुआ था। लेकिन आज 21 वीं सदी के पूर्वार्द्ध में बेरोजगारी अपनी जड़ बहुत मजबूत कर चुकी है। जिस तरह उसके उन्मूलन के लिए प्रयास किया जा रहा है उससे लगता है कि यह उन्मूलन इतना आसान नहीं है। इसके लिए कोई कारगर रणनीति बनाने की आवश्यकता है। आर्थिक विकास के लिए भी बेरोजगारी की यह स्थिति बहुत खतरनाक सिद्ध हो रही है।
बेरोजगारी का समाधान ढूंढ कर देश की कुछ प्रमुख समस्याओं जैसे कि सामाजिक अशांति, अपराध और गरीबी, भूख तथा स्वास्थ्य, जनकल्याण से निपटा जा सकता है। ये कुछ ऐसे कारण हैं जो हमारे जीवन के गुणवत्ता के लिए उत्तरदाई होते हैं। साथ ही राष्ट्र की स्थिरता के लिए भी आवश्यक है।
आज पूरा विश्व ही बेरोजगारी के संकट से गुजर रहा है। भारत में भी बेरोजगारी बड़ी समस्या है। स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया- 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में इस समय उच्च शिक्षा प्राप्त करीब 16 फीसदी लोग रोजगार की तलाश में हैं। प्रतिवर्ष एक करोड़ सत्तर लाख लोग रोजगार की तलाश में जुड़ते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण इलाकों की शिक्षित युवतियों में वर्ष 2004-05 से 2011-12 के बीच बेरोजगारी की दर 9.7 से 15.2 फीसदी के बीच थी। जो वर्ष 2017-18 में बढ़ कर 17.3 फीसदी तक पहुंच गई। ग्रामीण इलाकों के शिक्षित युवकों में इसी अवधि के दौरान बेरोजगारी दर 3.5 से 4.4 फीसदी के बीच थी जो वर्ष 2017-18 में बढ़ कर 10.5 फीसदी तक पहुंच गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों के 15 से 29 साल की उम्र वाले युवकों में बेरोजगारी की दर वर्ष 2011-12 में जहां पांच फीसदी थी, वहीं वर्ष 2017-18 में यह तीन गुने से ज्यादा बढ़ कर 17.4 फीसदी तक पहुंच गई। इसी उम्र की युवतियों में यह दर 4.8 से बढ़ कर 13.6 फीसदी तक पहुंच गई।
केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में चार लाख से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। वर्ष 2014 से वर्ष 2018 तक सरकारी कर्मचारियों की संख्या में अत्यधिक कमी आई है। रोजगार के अवसर में पुरुष के साथ महिलाओं की भी काफी कमी आई है। कृषि क्षेत्र में महिलाओं को ठीक-ठाक रोजगार मिल जाता था लेकिन वहां भी अब रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं। फलतः गरीबी लगातार अपनी पैठ बढ़ाती जा रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार उद्योग जगत में रोबोट के बढ़ते इस्तेमाल से अनुमान है कि 2030 तक पूरे विश्व में 30 करोड़ लोग प्रभावित होंगे। इसका असर भारत पर पड़ना स्वाभाविक है।
देश आज तीव्र गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था भले ही है लेकिन रोजगार के अवसर पैदा करने में लगातार मात खा रहा है। इससे बेरोजगारी अपना पैर लगातार पसारती ही जा रही है। ऑर्गनाइजेशन ऑफ इकोनॉमिक कॉरपोरेशन एंड डेवलपमेंट के भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण में यह स्पष्ट हुआ है कि वर्ष 2017 में भारत के 15 से 29 आयु वर्ग के 30 फीसदी युवा बेरोजगार हैं। मार्च 2018 में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमिक के द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार फरवरी 2018 तक 3.1 करोड़ युवा बेरोजगार थे। एक अनुमान से 2018 में मात्र रोजगार के छह लाख अवसर ही उपलब्ध हो सके हैं। भारत की आर्थिक विकास के लिए बेरोजगारी की यह स्थिति निश्चित ही चिंताजनक है। इंटरनेशनल फूड पालिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैश्विक भूख सूचकांक के 119 देशों में भारत को 100वां स्थान प्राप्त है। इसका सीधा संबंध बेरोजगारी से है। वर्ष 2015 में भारत के 17 करोड़ लगभग 12.4 फीसदी जनसंख्या के गरीबी में रहने की बात सामने आई थी। अतः सामाजिक सुरक्षा के अभाव में रोजगार ही एकमात्र सहारा हो सकता है। अगर रोजगार उपलब्ध नहीं होगा तो निश्चित ही आर्थिक विकास बाधित होगा।
आज भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रतिवर्ष लगभग 50 से 70 लाख रोजगार उत्पन्न करने की आवश्यकता है। साथ ही 90 फीसदी से अधिक कामकाजी लोग अनौपचारिक क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। इससे उनके रोजगार सुरक्षित नहीं हैं। न ही उनकी सामाजिक सुरक्षा ही है। यदि हमें बेरोजगारी से उत्पन्न गरीबी से निपटना है तो बजटीय आंकलन करना होगा। साथ ही गरीबी व बेरोजगारी समाप्त करने की चुनौती का मूल्यांकन भी करना होगा। बेरोजगारी को खत्म करने के लिए वेतन सब्सिडी की भी नीति भी अपनाई जा सकती है। इससे केंद्र व राज्य द्वारा दिया जाने वाला अनुदान चाहे वह ब्याज पर हो या ऋण पर हो। हमारे सकल घरेलू उत्पाद में अनुदान का लगभग 5 फीसदी है। अनुदान पूंजी आधारित उत्पादन को बढ़ावा देती है इसमें परिवर्तन करके इसे वेतन आधारित बनाया जा सकता है। जैसे कोई उद्यमी जितना अधिक नौकरियां देगा उसको उतना ही अधिक अनुदान दिया जाएगा। साथ ही उद्यमिता को सामाजिक प्रोत्साहन दिए जाने की आवश्यकता है। तभी बेरोजगारी के अभिशाप से मुक्ति मिल सकती है।
देश में बेरोजगारी की समस्या लंबे समय से बनी हुई है। हालांकि सरकार ने रोजगार सृजन के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं पर अभी तक वांछनीय प्रगति हासिल नहीं हो पाई है। नीति निर्माताओं और नागरिकों को अधिक नौकरियों के निर्माण के साथ ही रोजगार के लिए सही कौशल प्राप्त करने के लिए सामूहिक प्रयास करने चाहिए।