बाहरी लोगों के प्रवेश को लेकर असम के जनजातियों का जंतर-मंतर पर प्रर्दशन
नई दिल्ली, 12 दिसम्बर (हि.स.)| नागरिकता संशोधन विधेयक बिल 2016 के विरोध में असम के ‘70 जातीय नेशनल संगठन’ जंतर-मंतर में 09 दिसम्बर से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठकर धरना-प्रर्दशन कर रहे हैं।
‘70 जातीय नेशनल संगठन’ को लोगों ने केंद्र में मोदी सरकार के खिलाफ जमकर हमला बोला। संगठन के लोगों का कहना है कि हम इस नागरिकता संशोधन विधेयक बिल 2016 के खिलाफ हैं जिसे कोई भी बांग्लादेशी नागारिक चाहे वो हिन्दू हो या मुस्ल्मि हो अमस में आकर प्रवास न करे। जिससे असम में जनसंख्या, आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव न पड़े। अगर केंद्र में मोदी सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक बिल 2016 इस शीतकालीन सत्र में पारित कर देती है। इससे असम के लोगों का बड़ी मात्रा में हनन होगा। इसीलिए हम लोग सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे हैं ताकि सरकार इस विघेयक को रद्द करे।
संगठन के लोगों ने असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल पर भी जमकर हमला किया| उन्होंने कहा कि सीएम सर्वानंद सोनोवाल खुद एक बांग्लादेशी शरणार्थी हैं। इसीलिए वह इस बिल को लाना चाहते हैं|
गौरतलब है कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 को लोकसभा में ‘नागरिकता अधिनियम’ 1955 में बदलाव के लिए लाया गया है। केंद्र सरकार ने इस विधेयक के जरिए अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैन, पारसियों और ईसाइयों को बिना वैध दस्तावेज के भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव रखा है।
नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 से संबंधित संयुक्त संसदीय समिति ने इस पर लोगों की राय जानने के लिए नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों का दौरा किया था। उसके बाद से ही इसका जबरदस्त विरोध शुरू हो गया है। इस विघेयक पारित होने के बाद उनके निवास काल को 11 वर्ष से घटाकर छह वर्ष कर दिया गया है। यानी अब ये शरणार्थी 6 साल बाद ही भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं।
1980 के दशक में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) की अगुआई में हुए छात्रों के आंदोलन में यह मुद्दा बड़े पैमाने पर उठा। आखिरकार 2005 में केंद्र, राज्य सरकार और आसू के बीच असमी नागरिकों का कानूनी दस्तावेजीकरण करने के मुद्दे पर सहमति बनी और अदालत के हस्तक्षेप से इसका एक व्यवस्थित रूप सामने आया।