बसपा व सपा को स्वाहा करने की भाजपा की सियासी चाल
नई दिल्ली,24 सितम्बर(हि.स.)। तमाम फर्जी कम्पनियों व आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में जब सीबीआई ने छोटे भाई आनंद कुमार पर शिकंजा कसना शुरू किया, पत्र देकर आमंत्रित किया, उसके दूसरे दिन ही बड़ी बहन बसपा प्रमुख मायावती ने छत्तीसगढ़ में उस अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस से गठबंधन करके विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी, जिन पर भाजपा की मदद से कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने का,वोट काटने का आरोप लग रहा है। उसी दिन उन्होंने म.प्र. में भी 22 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़ा करने की घोषणा व सूची जारी करवा दी। सूत्रों का कहना है कि मायावती ने यह करके अपने छोटे भाई आनंद कुमार को फिलहाल गिरफ्तारी से बचा लिया है, लेकिन तलवार अभी लटकी हुई है।
इससे यह संकेत चला गया है कि बसपा अब कांग्रेस से दिसम्बर 2018 में होने वाले छत्तीसगढ़, म.प्र., राजस्थान विधानसभा चुनावों में और अप्रैल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में गठबंधन नहीं करेगी। जब कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेगी, और अकेले या छोटे दल के साथ मिल लड़ेगी तो कांग्रेस को तो नुकसान पहुंचायेगी ही, उसको (बसपा) भी वोट अधिक नहीं मिलेंगे। इस तरह कांग्रेस व बसपा दोनों को ही नुकसान होगा।
सूत्रों का कहना है कि इसी तरह से लोकसभा चुनाव के समय बसपा का सपा से भी गठबंधन नहीं होने दिया जाएगा। क्योंकि यह होने पर उ.प्र. की 80 लोकसभा सीटों में से ये दोनों मिलकर 45 के लगभग सीटें जीत सकते हैं। यदि सपा, बसपा, कांग्रेस व रालोद का गठबंधन हो गया तब 60 से 65 तक लोकसभा सीटें जीत सकते हैं। यदि इनमें किसी का एक दूसरे गठबंधन नहीं हुआ, तब तो भाजपानीत गठबंधन राज्य की 80 सीटों में से लगभग 65 सीटें जीत सकता है। भाजपा हर हालत में राज्य में अधिक से अधिक सीटें जीतना चहती है, वरना उसकी सीटें 2014 से बहुत कम हो जाएंगी।
इसके अलावा लम्बे समय की रणनीति व राज्य में भाजपा शासन के मद्देनजर जरूरी है कि सपा व बसपा का आधार खत्म हो जाए। इसके लिए शासन व पार्टी स्तर पर जो उपक्रम हो रहा है उसमें से प्रमुख है बसपा का सपा व कांग्रेस से गठबंधन नहीं होने देने का। इसी क्रम में अभी दिसम्बर 2018 में होने वाले छत्तीसगढ़, म.प्र., राजस्थान विधानसभा चुनावों में बसपा का कांग्रेस गठबंधन नहीं होने दिया गया है। इसके बाद लोकसभा चुनाव के लिए होगा।
सूत्रों के अनुसार अपने भाई आनंद कुमार को गिरफ्तारी से बचाने और अपने गिरफ्तारी से बचने के लिए मायावती लोकसभा चुनाव में भी सपा या कांग्रेस से गठबंधन नहीं करेंगी। ऐसे में सपा अकेली लड़ी तो उसका भी हाल बेहतर नहीं होगा। मुलायम कुनबे के ही कुछ लोग जीत सकेंगे। उनमें भी कितने जीतेंगे यह इस पर निर्भर करता है कि सगे शिवपाल यादव कितना वोट काटते हैं। इस तरह सपा, बसपा व कांग्रेस का गठबंधन नहीं होने से उ.प्र. में तीनों को ही बहुत नुकसान होगा। और सपा व बसपा स्वाहा होने की हालत में पहुंच जाएगी। इस बारे में एआईसीसी सदस्य अनिल श्रीवास्तव का कहना है कि भाजपा को सबसे अधिक खतरा उ.प्र. में है। उसको प्रदेश के जातीय समीकरण और आंतरिक सर्वे से पता चल गया है कि यदि सपा , बसपा , कांग्रेस व रालोद मिलकर चुनाव लड़े, तो 2019 के लोकसभा चुनाव में लगग 65 सीटें जीत सकते हैं। इससे भाजपा को अकेले उ.प्र. में लगभग 50 सीटों का घाटा हो जाएगा। इसकी भरपाई वह कहीं से नहीं कर पाएगी। क्योंकि 2019 का चुनाव भाजपा के लिए कठिन है| सत्ता विरोधी रूझान के कारण उसकी सीटें सब जगह घटेंगी। ऐसे में उ.प्र.में सीटें बचाने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है। इसके लिए सबसे साफ्ट टारगेट मायावती हैं।