बदले राजनीतिक हालात में चुनावी रणनीति को अंतिम रूप नहीं दे पा रहे विपक्षी दल

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नई दिल्ली, 01 मार्च (हि.स.) । लोकसभा चुनाव की घोषणा होने के पहले ही विपक्षी दल पस्त हो गए हैं। पाकिस्तान प्रयोजित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों पर भारतीय वायुसेना के एयरस्ट्राइक के बाद देश के हालात बदल गए हैं। इस बदले हालात के कारण विपक्षी दल लोकसभा चुनाव की रणनीति को अंतिम रूप नहीं दे पा रहे हैं। उनके सामने असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। कांग्रेस अपने कार्यक्रमों को लगातार टाल रही है। अन्य विपक्षी दलों से तालमेल भी सिरे नहीं चढ़ पा रहा है।
पूर्व सांसद हरिकेश बहादुर का कहना है कि अब विपक्षी दलों के लिए राजनीतिक माहौल कठिन हो गया है। पुलवामा आतंकी हमले के बाद हुई एयरस्ट्राइक के बाद जो माहौल बना है उसमें विपक्ष के लिए चुनाव जीतने की चुनौती बढ़ गई है। केन्द्र में और कई राज्यों में सत्ता में होने के चलते भाजपा पहले से ही बढ़त बनाए हुए थी। इस घटना के बाद उसने और भी बढ़त बना ली है। अब अगले एक महीने में विपक्ष यदि एकजुट होकर पूरा दम लगा दे तब ही कुछ कर पाएगा।
कांग्रेस के कई नेताओं का कहना है कि एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा हैं, जो लगातार अपने पहले से तय कार्यक्रम जारी रखे हुए हैं। दूसरी तरफ विपक्षी कांग्रेस है, जो लगातार अपने कार्यक्रम स्थगित कर रही है। यहां तक कि अहमदाबाद में पार्टी कार्यसमिति की बैठक भी टाल दी गयी। उस समय भारत-पाकिस्तान में बढ़े तनाव व जनभावनाओं के मद्देनजर इसे टालना जायज ठहराया जा सकता है, लेकिन इससे होने वाले नुकसान को भी तो देखना होगा। क्योंकि मोदी ने तो अपना कोई कार्यक्रम नहीं टाला। लगातार जारी रखे हुए हैं।
भाजपा सांसद लालसिंह बड़ोदिया का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी पहले से ही विकास व अन्य मुद्दों पर विपक्ष के खिलाफ हमलावर हैं। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकियों ने पुलवामा हमला किया तो उसके लिए पाकिस्तान को भी घेर दिया। यह सब जनता देख रही है। ऐसे में काम बोल रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार हरिदेसाई का कहना है कि कांग्रेस, पुलवामा हमले के बाद बदली परिस्थित में अभी तक तय नहीं कर पाई है कि भाजपा व मोदी को किस तरह घेरा जाए। दूसरी तरफ अन्य विपक्षी दल व राज्यों की पार्टियां हैं, जो अपने को किसी भी तरह से कांग्रेस से कम नहीं समझ रही हैं। केवल तमिलनाडु के डीएमके को छोड़ दिया जाए तो अन्य सभी विपक्षी दल कांग्रेस के साथ खुलेमन से तालमेल के लिए आगे नहीं आ रही हैं। सब चाहती हैं कि कांग्रेस उनके प्रभाव क्षेत्र वाले राज्यों में नहीं पनपने पाए। इसलिए वे कांग्रेस से या तो तालमेल नहीं करना चाहती हैं या उसको बहुत ही कम सीटें देना चाहती हैं। पश्चिम बंगाल में तो ममता बनर्जी किसी भी तरह से कांग्रेस के साथ जाने को राजी नहीं हो रही हैं। कांग्रेस के सांसदों को अपने पाले में करने में लगी हैं। वामपंथी दलों की हालत यह है कि वे ममता को देखना नहीं चाहते हैं। इस तरह से ममता ने पश्चिम बंगाल में पूरी लड़ाई तृणमूल कांग्रेस बनाम भाजपा का बना दिया है। इसका लाभ तृणमूल को तो मिलेगा ही, भाजपा को भी मिलेगा। आन्ध्र प्रदेश के तेदेपा नेता चन्द्रबाबू नायडू यह तो चाहते हैं कि केन्द्रीय स्तर पर भाजपा के विरुद्ध विपक्षी दलों का मजबूत गठबंधन बने, लेकिन प्रदेश में कांग्रेस के लिए लोकसभा सीटें छोड़ने से कन्नी काट रहे हैं। कर्नाटक में कांग्रेस व जदएस की सरकार है, लेकिन जदएस राज्य में लोकसभा की 10 सीटों पर लड़ने का दावा कर रही है। इसके चलते कांग्रेस के नेता असहज हैं। इन सबके चलते भी जो माहौल बना है वह फिलहाल तो विपक्ष की कमजोरी का ही संकेत दे रहा है।


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