फिरोजाबाद में चाचा-भतीजे की चुनावी जंग से खेमों में बंटा सैफई परिवार
लखनऊ, 30 मार्च (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद संसदीय सीट पर इस बार के चुनाव में दिलचस्प मुकाबला होने के आसार हैं। यहां चाचा-भतीजे की चुनावी जंग ने सैफई परिवार को खेमों में बांट दिया है।
सपा के प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव प्रो0 रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव फिरोजाबाद से निवर्तमान सांसद हैं। इस बार के चुनाव में भी उन्होंने सपा के टिकट पर ही नामांकन पत्र दाखिल किया है। अक्षय यादव के चाचा शिवपाल यादव ने भी आज इसी सीट पर्चा दाखिल कर भतीजे को खुली चुनौती दे दी है।
नामांकन पत्र भरने के बाद शिवपाल यादव ने कहा कि उनका मुकाबला भाजपा से है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का भी आशीर्वाद प्राप्त है। हालांकि मुलायम ने एक दिन पहले शिवपाल के बारे में पूछने पर कहा था कि उनकी चिंता मैं क्यों करूं मैं भी तो चुनाव लड़ रहा हूं। ऐसे में अब सबकी निगाहें मुलायम सिंह यादव पर हैं, क्योंकि कुनबे का दोनों खेमा मुलायम के आशीर्वाद का दावा कर रहा है।
दरअसल मुलायम परिवार में पिछले तीन साल से वर्चस्व की लड़ाई चल रही है। विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल के बीच जमकर सियासी महाभारत चला। परिणामस्वरुप प्रदेश की सत्ता चली गयी। इसके बाद भी तकरार बंद नहीं हुई। इस बीच शिवपाल ने अलग दल प्रगतिवादी समाजवादी पार्टी (प्रसपा) बना ली। लोकसभा चुनाव में प्रसपा बड़ी ही गंभीरता के साथ चुनावी मैदान में है। वह यह भी बार-बार कहते हैं कि उन्होंने नेताजी के आशीर्वाद और सहमति से ही पार्टी बनाई है। नेताजी का आशीर्वाद उनके साथ है।
फिरोजाबाद संसदीय सीट पर दिलचस्प मुकाबला होने की उम्मीद है। यहां सैफई परिवार के बीच वर्चस्व की जंग है। मौजूदा सांसद अक्षय यादव के खिलाफ उनके चाचा शिवपाल यादव ने ताल ठोंकी है। चाचा-भतीजे की जंग में रिश्तेदार भी बंट गए हैं। ऐसे में नजर मुलायम सिंह यादव पर है। अपने ही कुनबे के दो सदस्यों में मुलायम किसके साथ हैं। इस पर दोनों के अपने-अपने दावे हैं।
फिरोजाबाद से सपा के प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव प्रोफेसर रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव और शिवपाल यादव चुनावी जंग में आमने-सामने हैं। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव को लेकर सियासी खींचतान है। शिवपाल यादव बार-बार एक ही बात कहते हैं कि उन्होंने नेताजी के आशीर्वाद और सहमति से ही पार्टी बनाई है। नेताजी का आशीर्वाद उनके साथ है।
हालांकि, दोनों दलों के दावों के इतर मुलायम इस समय किसके साथ हैं, इसका खुलासा तो चुनावी परिणाम के बाद ही ज्यादा स्पष्ट होगा। लेकिन देश के सबसे बड़े सियासी परिवार की इस रार ने दोनों दलों के समर्थकों को मुलायम को लेकर काफी हद तक भ्रम में डाल रखा है। दोनों पार्टी के आम नेता मुलायम के सवाल पर कन्नी काट जाते हैं। इतना ही कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव तो हमारे दल के संरक्षक हैं, वे हमारे नेता हैं।
पिछले दिनों सैफई में होली के दौरान भी दोनों खेमों ने अलग-अलग मंच सजाया था। उस समय मुलायम अखिलेश के मंच पर उपस्थित थे। इस तरह अखिलेश और शिवपाल के बीच चल रही इस जंग में सैफई परिवार से जुड़े रिश्तेदार भी खेमों में बंट गए हैं। जिले में रहने वाले मुलायम के अधिकांश रिश्तेदार सपा से नाता तोड़ कर शिवपाल के साथ हो लिए हैं। मुलायम के समधी शिकोहाबाद के पूर्व चेयरमैन रामप्रकाश नेहरू शिवपाल यादव का मंच साझा कर रहे हैं।
इसी तरह नेहरू के भाई सिरसागंज के सपा विधायक हरिओम यादव खुलकर शिवपाल यादव के साथ चले गये हैं। मुलायम के भतीजे और बदायूं के निवर्तमान सांसद धर्मेंद्र यादव के एक बहनोई अनुजेश प्रताप जहां भाजपा में शामिल हो गए हैं वहीं दूसरे बहनोई जिला पंचायत सदस्य इंजीनियर राजीव यादव सपा के साथ हैं। वहीं, राजीव यादव के मामा और जसराना के पूर्व विधायक रामवीर यादव भी सपा से नाता तोड़ भाजपा का साथ दे रहे हैं, जबकि रामवीर के भतीजे सचिन यादव सपा का झंडा उठाए हुए हैं। उधर, सिरसागंज के सपा विधायक हरिओम यादव शिवपाल की वकालत कर रहे हैं। ऐसे में फिरोजाबाद की सीट पर होने वाला मुकाबला बड़ा ही दिलचस्प हो सकता है।
देश में सुहागनगरी के नाम से मशहूर इस फिरोजाबाद सीट की पहचान सपा के गढ़ के रूप में होती रही है। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने यहां सपा का परचम लहराया था। हालांकि अखिलेश के सीट छोड़ने के बाद हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी डिंपल यादव सिने अभिनेता और कांग्रेस प्रत्याशी राजबब्बर से हार गयी थीं। फिर 2014 के चुनाव में प्रो. रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव ने यहां सपा का झंडा बुलंद किया।
फिरोजाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत कुल पांच विधानसभा सीटें टूंडला, जसराना, फिरोजाबाद, शिकोहाबाद और सिरसागंज आती हैं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में इनमें से सिर्फ सिरसागंज की सीट पर सपा ने जीती थी और बाकी सीटें भाजपा के खाते में गई थीं।
उन्हें कुल पांच लाख से ज्यादा यानी 48.4 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं दूसरे स्थान पर रहे भाजपा के उम्मीदवार को 38 फीसदी वोट मिले थे। पिछले चुनाव में यहां 67.49 प्रतिशत मतदान हुआ था।