प. बंगाल, कर्नाटक, राजस्थान, मप्र और तमिलनाडु की सरकारों पर मई के बाद खतरे के बादल
नई दिल्ली, 04 मई (हि.स.)। राजनीतिक विशेषज्ञ व सर्वे एजेंसियां मान रही हैं कि येनकेन प्रकारेण केन्द्र में अगली सरकार भी भाजपा की ही बनेगी। इससे विपक्षी दलों के कई मुख्यमंत्री व नेता दबाव में हैं कि उनकी सरकार गिराने की कोशिश हो सकती है। इनमें पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु के सत्ताधारी दल प्रमुख हैं।
इन राज्यों में सत्तारूढ़ दलों के नेताओं की चिंता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 29 अप्रैल को चांदीताला (प. बंगाल) में दिए गए उस बयान ने और बढ़ा दी, जिसमें उन्होंने कहा था कि तृणमूल कांग्रेस के 40 विधायक उनके संपर्क में हैं। जो लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी छोड़ देंगे। इस पर तृणमूल के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी विपक्षी दलों की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त कर रहे हैं। इसकी शिकायत चुनाव आयोग से की गई है।
प. बंगाल
294 सदस्यों वाली प. बंगाल विधान सभा में तृणमूल कांग्रेस के 211 विधायक हैं। अगर 40 विधायक भाजपा के साथ चले भी जाएं तो ममता बनर्जी की सरकार नहीं गिरेगी। तब भी तृणमूल के पास विधानसभा में बहुमत के लिए जरूरी संख्या से 23 विधायक अधिक रहेंगे। इसलिए मोदी का यह दावा बहुत मायने नहीं रखता। अगर दो तिहाई विधायक टूटकर अलग होते हैं, तभी अलग पार्टी की मान्यता मिलेगी। यदि उससे कम विधायक टूटते हैं तो उनकी विधानसभा सदस्यता खतरे में पड़ जायेगी। राज्यपाल के मार्फत भी सत्ता गिराने का खेल नहीं हो सकता है। इसलिए प. बंगाल की तृणमूल सरकार को गिराना आसान नहीं होगा।
कर्नाटकः
वरिष्ठ पत्रकार वी पारसा का कहना है कि केंद्र में 23 मई के बाद यदि भाजपा सरकार बन जाती है तो जद (एस) और कांग्रेस गठबंधन वाली कर्नाटक सरकार गिर सकती है। वहां पूर्व मुख्यमंत्री 76 वर्षीय बीएस येदियुरप्पा हर हालत में मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। इससे पहले उन पर कांग्रेस व जद (एस) विधायकों को तोड़ने की कोशिश करने, मुंबई व गुड़गांव ले जाकर होटल में रखने का भी आरोप लग चुका है। इसमें एक अड़चन यह है कि येदियुरप्पा की उम्र 75 वर्ष से अधिक हो गई है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने ही बनाये नियम को ताक पर रखकर किस तरह बुजुर्ग येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश करेंगे, यह देखने लायक होगा।
कर्नाटक विधानसभा में कुल 225 सीटों में से 224 पर चुनाव होता है, एक मनोनीत होता है। राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन में कांग्रेस के 78 और जद(एस) के 37 विधायक हैं। बसपा का एक विधायक भी इनकी तरफ है। इनकी कुल संख्या 116 हो जाती है। जो बहुमत के लिए जरूरी संख्या से तीन अधिक है। विपक्षी दल भाजपा के 104 विधायक हैं। केपीजेपी का एक तथा एक निर्दलीय विधायक भी विपक्ष में है।
वी पारसा का कहना है कि येदियुरप्पा व उनके मददगारों ने कांग्रेस व जद (एस) के 15 विधायकों को तोड़ने की कोशिश की थी लेकिन बात बनी नहीं। यदि जद (एस) के 26 विधायक टूटकर अलग पार्टी बनायेंगे, तब दल बदल कानून लागू नहीं होगा। फिलहाल उतने विधायक नहीं टूट पा रहे हैं। हो सकता है 23 मई के बाद केन्द्र में राजग की सरकार बन जाए तब भाजपा इस दिशा में आक्रामक रणनीति अपनाये। हालांकि इस आशंका से कांग्रेस व जद (एस) भी सतर्क हैं।
मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार बहुत मजबूत नहीं है। भाजपा महासचिव कैलाश विजय वर्गीय ने 9 जनवरी, 2019 की शाम को इंदौर में एक कार्यक्रम में कहा था, ‘‘यह सरकार (कमलनाथ सरकार) कैसी सरकार है? यह सरकार हमारी कृपा से चल रही है। जिस दिन दिल्ली वालों को केवल एक छींक आ जायेगी, उसी दिन प्रदेश में हमारी सरकार बन जायेगी।” उनके इस कहे से साफ है कि वह मौका 23 मई के बाद केन्द्र में फिर से भाजपानीत सरकार बन गई तो आ जायेगा।
वरिष्ठ पत्रकार सुरेश मेहरोत्रा भी बातचीत में कुछ इसी तरह की आशंका जताते हैं। 230 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 114 विधायक हैं। बसपा के दो, निर्दलीय चार तथा सपा का एक विधायक है। इनमें बसपा के दो और तीन निर्दलीय विधायकों का समर्थन कमलनाथ सरकार को है। गुना संसदीय क्षेत्र के बसपा के प्रत्याशी ने कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया का समर्थन करने की घोषणा कर दी है। इससे जली-भुनी मायावती ने कमलनाथ सरकार से समर्थन वापसी के बारे में विचार करने की धमकी दी है लेकिन दो विधायक माया के हुक्म की अनदेखी और दलबदल कर कांग्रेस में शामिल भी हो सकते हैं। ऐसे में भाजपा यदि कांग्रेस के 70 विधायकों को तोड़ कर उनका समर्थन ले, तभी सरकार बना सकती है। जो आसान नहीं है। हां! 15-20 विधायकों को तोड़ कर कांग्रेस सरकार अस्थिर करने, भाजपा की सरकार बनवाने की कोशिश तो हो ही सकती है।
राजस्थान
राजस्थान में कांग्रेस सरकार की स्थिति मप्र से थोड़ी बेहतर है लेकिन सरकार के भीतर भी खींचतान है। 200 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस व उसके समर्थक विधायकों की संख्या 121 है। यह बहुमत के लिए जरूरी संख्या से 20 अधिक हैं। इसमें कांग्रेस के विधायकों की संख्या पहले 100 थी। 12 निर्दलीय विधायक कांग्रेस में शामिल हो गये तो संख्या 112 हो गई। बसपा के छह, भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो, रालोद का एक विधायक कांग्रेस की गहलोत सरकार को समर्थन दे रहे हैं। विपक्ष के 79 विधायकों में भाजपा के 73, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के तीन, माकपा के दो और एक निर्दलीय है। कांग्रेस ने 12 निर्दलीय विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करके अपने को मजबूत कर लिया है। अब इन्हें तोड़ना आसान नहीं है। इनमें से यदि 10 विधायक अलग होकर भाजपा के समर्थन में बगावत करते हैं और मायावती के कहने पर बसपा के 6 विधायक समर्थन वापस लेते हैं, तब भी गहलोत सरकार नहीं गिरेगी। यदि कांग्रेस के लगभग 25 विधायक बगावत कर दें, तब स्थिति खराब हो जायेगी। उनके समर्थन और राज्यपाल की मदद से विधानसभा में भाजपा बहुमत साबित करके सरकार बना सकती है। बाद में कोर्ट-कचहरी में मामला चलता रहेगा, जैसा उप्र, हरियाणा और झारखंड में पहले हो भी चुका है।
तमिलनाडुः
तमिलनाडु की स्थिति थोड़ी अलग है। वहां 234 सदस्यों वाली विधानसभा में अन्ना द्रमुक के 135 विधायक थे। जयललिता के निधन के बाद इनमें से 21 विधायक दिनाकरन के खेमे में आ गये तो सरकार अल्पमत में आ गई। अन्ना द्रमुक वाले खेमे ने केन्द्र की भाजपा सरकार और राज्यपाल के सहयोग से दिनाकरन समर्थक 21 विधायकों की सदस्यता खत्म कराकर सरकार बचा ली। अब लोकसभा के साथ 22 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव हो रहा है। राज्य में इस बार द्रमुक व कांग्रेस गठबंधन को लोकसभा की अधिक सीटें मिलने की संभावना हैं। जिन 22 सीटों पर विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, उन पर यदि अन्नाद्रमुक के उम्मीदवार जीतते हैं, तब तो सरकार बच जायेगी। यदि द्रमुक व दिनाकरन गुट को अधिक सीटें (22 में से 20 सीटें) मिलती हैं तब तमिलनाडु की अन्नाद्रमुक सरकार गिर जायेगी और द्रमुक व उसके सहयोगी दल सरकार बनाने की दावेदारी पेश कर देंगे।
द्रमुक नेता स्टालिन का दावा है कि लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी व सहयोगी दलों को अधिक सीटें मिलने की संभावना है। साथ ही जिन 22 विधानसभा सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, उन पर भी गैर अन्नाद्रमुक वाले ही जीत रहे हैं। ऐसे में देखना है कि केन्द्र सरकार फिर से कोई ‘खेल’ करती है या विधानसभा चुनाव होता है।