प्रवासियों का दर्द : कई रात गुजारी खाली पेट, घर से पैसा मंगाकर लौटे गांव
बेगूसराय, 27 जून (हि.स.)। वर्ष 2007 में बेगूसराय जिला के उत्तरी भाग में जब प्रलयंकारी बाढ़ ने दो महीने से अधिक समय तक जमकर तांडव मचाया तो क्षेत्र की अर्थव्यवस्था डावाडोल हो गई। फसलें बर्बाद हो गई, घर डूब गया, लोग पैसे-पैसे के लिए मोहताज हो गए, तो यहां के हजारों हजार लोग देश के विभिन्न शहरों में काम खोजने के लिए निकल गए। अधिकतर लोग दिल्ली, मुम्बई और कोलकाता गए, वहीं हरियाणा, पंजाब और असम जाने वालों की संख्या भी कम नहीं थी। इसी क्रम में यहां रहकर भवन निर्माण के विभिन्न कार्यों में लगे एक दर्जन से अधिक श्रमिकों की टोली भी गुवाहाटी की ओर रवाना हुई। वहां वह लोग सिल्चर, धेमाजी, धुबरी, जोरहट समेत अन्य जगहों पर घूम-घूम कर भवन निर्माण कार्य में पाइलिंग से लेकर रंगाई पुताई और टाइल्स लगाने लगे थे।
इस दौरान अच्छी कमाई हो रही थी और लोग साल-दो साल में घर आते थे लेकिन जब लॉकडाउन हुआ तो 13 साल से सुख-दुख में साथ देने की बात करने वाले असम के लोगों ने 13 मिनट में मुंह मोड़ लिया। गए थे परिवार को आत्मनिर्भर बनाने, लेकिन लॉकडाउन होने के बाद 13 दिन में ही सारे अरमान धराशाई हो गए। अब खाली हाथ घर लौटे हैं और गरीब कल्याण रोजगार अभियान के सहयोग से गांव में आत्मनिर्भर बनेंगे। असम के धेमाजी, धुबरी, गोलाघाट, करीमगंज, नलवारी, जोरहाट समेत 15 से अधिक जिलों में सैकड़ों घर का निर्माण कार्य, कई औद्योगिक इकाइयों का निर्माण करने वाले श्रमिकों की टोली अब गांव आ चुकी है। स्पेशल ट्रेन से बेगूसराय स्टेशन लौटे रामप्रताप दास, रोहित दास, शिवदानी दास, रविन्द्र महतों, भोला महतों, राजकमल महतों आदि ने बताया कि वे लोग 12-13 साल से आसाम के विभिन्न राज्यों में अपने श्रमशक्ति के बल पर अर्थ उपार्जन करते थे लेकिन ऐसी हालत कभी नहीं हुई थी, लॉकडाउन हो गया तो रोजी रोजगार सब बंद हो गया।
कमरा से बाहर निकलना मुश्किल हो गया, कमरा में ही खाना, कमरा में ही रहना, सरकारी स्तर पर राशन की कोई व्यवस्था नहीं थी। 15-20 दिनों में पास का जमा पूंजी खत्म हो गया, उसके बाद उधार लेकर खाना बनाते और खाते थे। लग रहा था कि अब लॉकडाउन खत्म हो जाएगा और फिर से काम शुरू हो जाएगा। देखते ही देखते अप्रैल भी गुजर गया, उसके बाद दुकानदारों ने भी राशन देने से मना किया कर दिया। हालत यह हो गई कि कई दिनों तक रोटी नहीं मिला, खाना मिलना मुश्किल हो गया तो घर से पैसा मंगवाया और अब गांव आ गए हैं। यहीं काम धंधा हो करेंगे, जैसे भी होगा जिएंगे लेकिन परदेस नहीं जाएंगे। इन लोगों ने बताया पिछले 15-20 दिनों से ट्रेन का टिकट लेने के लिए जुगाड़ लगा रहे थे लेकिन मिल नहीं रहा था। प्रत्येक व्यक्ति पांच-पांच सौ रुपया अधिक दिया तब दलालों के माध्यम से टिकट मिला और हम सब गांव आए हैं। अब भी बेगूसराय से सैकड़ों लोग हैं वहां फंसे हुए हैं।