प्रयागराज की बारा विधानसभा सीट का चुनाव बेहद रोचक
– 1991 में बसपा, 2002 में भाजपा एवं 2012 में सपा का खाता खुला
– दलित वोटर्स की संख्या अधिक, हो सकता है त्रिकोणीय मुकाबला
प्रयागराज, 13 जनवरी (हि.स.)। प्रयागराज जनपद की बारा विधानसभा सीट का चुनाव बेहद रोचक रहा है। यहां दलित वोटरों की संख्या अधिक है। 80 के दशक में जहां कांग्रेस का दबदबा रहा। वहीं 1989 के बाद यहां समीकरण बदल गया। 1991 में बसपा ने खाता खोला और हैट्रिक लगाई। 2002 में भाजपा का खाता खुला तो दो बार विधायक रहे। वहीं 2012 में सपा का खाता खुला। वैसे अब यह सीट बाहुबली नेता उदयभान करवरिया के कारण भी जानी जाती है।
बारा विधानसभा से 2017 में जहां 3,19,923 मतदाता थे, वहीं 2022 में 13,200 मतदाता बढ़ कर अब 3,33,123 वोटर्स हो गये हैं। यहां 1980 में कांग्रेसी रमाकांत मिश्रा जीते थे। वहीं उन्होंने 1985 में दोबारा जीत दर्ज की थी। 1989 के बाद यहां का समीकरण बदला। इसके बाद जनता दल की लहर आई। वहीं जनता दल के प्रत्याशी रामदुलार सिंह ने जीत दर्ज की। 1991 में इस जिले में एक और नया फैक्टर जुड़ा। यहां बहुजन समाज पार्टी ने खाता खोला। बसपा प्रत्याशी रामसेवक सिंह ने इस चुनाव में जीत दर्ज की। 1993 और फिर 1996 में फिर से जीते। लिहाजा बसपा के खाते में यह सीट तीन बार रही। वहीं प्रत्याशी रामसेवक ने जीत की हैट्रिक लगा दी।
-वर्ष 2002 में खिला कमल
वर्ष 2002 के चुनाव में इस सीट पर पहली बार कमल खिला। भाजपा प्रत्याशी उदय भान करवरिया ने बसपा के रामसेवक सिंह पटेल को हराया। 2007 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के उदय भान करवरिया ने दूसरी बार जीत दर्ज की। इस बार उन्होंने बसपा के दीपक सिंह पटेल को हराकर जीत दर्ज की। लेकिन 2012 में समाजवादी पार्टी के डॉक्टर अजय कुमार की जीत हुई। पहली बार समाजवादी पार्टी को इस सीट पर खाता खोलने का मौका मिला। 2017 के चुनाव में डॉ अजय कुमार सपा छोड़ भाजपा से चुनाव लड़े और 79,209 वोट पाकर अपने प्रतिद्वन्दी सपा से अजय को 34,053 मतों से हरा दिया।
– दलित वोटर्स की संख्या अधिक, हो सकता है त्रिकोणीय मुकाबला
बारा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। 2007 तक यह सामान्य सीट थी। लेकिन 2012 में परिसीमन के बाद रिजर्व हो गई। अभी भाजपा के डॉ. अजय कुमार भारती का यहां कब्जा है। सूत्रों की मानें तो यहां सपा, बसपा और भाजपा का कड़ा मुकाबला हो सकता है।
-अब तक हुए चुनाव पर एक नजर
बारा विधानसभा सीट पर 1962 में कांग्रेस से रघुनाथ प्रसाद 12,172 मत पाकर पीएसपी से शिव प्रसाद को हराया था। इसके बाद 1967 में कांग्रेस से हेमवती नंदन बहुगुणा 20,378 वोट पाकर आईएनडी से एच.एस पांडे को हराया। लेकिन 1969 में भारतीय क्रांति दल से सर्वसुख सिंह ने हेमवती नंदन बहुगुणा को पराजित कर दिया। 1974 में कांग्रेस से हेमवती नंदन बहुगुणा 36,238 मत पाकर भारतीय क्रांति दल के बी.डी सिंह को हरा दिया, भारतीय क्रांति दल से बीडी सिंह मात्र 12,184 वोट पाये। इस क्षेत्र से 1977 में जेएनपी से गुरू प्रसाद 17,968 वोट पाकर कांग्रेस के रमाकान्त मिश्र को 106 मतों से पराजित किया।
इसके बाद 1980 में रमा कान्त मिश्र कांग्रेस ने जेएनपी से राम दुलार सिंह पटेल को हराया। 1985 में कांग्रेस से दुबारा विधायक चुने गये, उन्होंने राम दुलार सिंह पटेल को 328 मतों से पराजित किया था। 1989 में जेडी से राम दुलार सिंह बसपा उम्मीदवार राम सेवक सिंह को 549 मतों से पराजित कर विधायक चुने गये। 1991 में भाजपा रनर अप में आई और बसपा से राम सेवक सिंह ने भाजपा के कृष्ण मुरारी कपुरिहा को पराजित किया। इसके बाद 1993 में पुनः राम सेवक सिंह ने कृष्ण मुरारी कपुरिहा को पराजित किया। 1996 में बसपा से पुनः तीसरी बार राम सेवक सिंह विधायक बने। उन्होंने सपा से राजा महेन्द्र प्रताप सिंह को पराजित किया।
2002 में पहली बार भाजपा का झंडा उदय भान करवरिया ने लहराया। उन्होंने तीन बार बसपा से विधायक रहे राम सेवक सिंह को पराजित किया। 2007 में उदय भान करवरिया दुबारा बसपा प्रत्याशी दीपक सिंह पटेल को पराजित कर विधायक बने। 2012 में यह सीट भाजपा के हाथ से निकल गई और सपा से डॉ अजय कुमार ने बसपा के भोला नाथ चौधरी को हराया। 2017 में सपा छोड़ भाजपा में शामिल हुए डॉ अजय कुमार दुबारा विधायक चुने गये, उन्होंने सपा के अजय को 34,053 मतों से पराजित किया।