पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह की ‘स्मार्ट गांव’ अवधारणा हो रही फलीभूत
उदयपुर, 18 दिसम्बर (हि.स.)। ’’देश स्मार्ट तभी बनेगा जब गांव स्मार्ट बनेगें’’ इस अवधारणा के सूत्रधार एवं उसको मूर्त रूप देने के उद्देश्य से राज्य के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह ने वर्ष 2015 में स्मार्ट विलेज इनिशिएटिव कार्यक्रम प्रारम्भ किया था। इसके तहत राज्य के सभी विश्वविद्यालयों को एक गांव गोद लेकर विभिन्न विभागों एवं संस्थाओं के सहयोग से मूलभूत सुविधाओं का सुदृढ़ीकरण, कौशल विकास, रोजगार सृजन से जीविकोपार्जन में सुधार तथा उत्पादकता में वृद्धि कर समाज के सभी वर्गों के जीवन स्तर में उन्नयन करना है। विश्वविद्यालय के प्रयासों से किसानों व पशुपालकों की आजीविका में इजाफा हुआ है।
इसी के तहत महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने जनजाति बहुल क्षेत्र के मद्देनजर जनजाति उप-योजना के गांव चयनित किए। प्रथम चरण (2015-17) में छाली, उण्डीथल व कडेचावास, द्वितीय चरण (2018-21) में विशमा एवं हायला व तृतीय चरण में मदार व ब्राह्मणों की हुन्दर गांवों का चयन कर कार्य किया गया। इन्हीं मे से एक मदार गांव में 21 दिसम्बर को वर्तमान राज्यपाल कलराज मिश्र कृषि एवं ग्राम विकास के कार्यों का अवलोकन करेंगे और ग्रामीण जनता से संवाद भी करेंगे
एमपीयूएटी के कुलपति डॉ. नरेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि चयनित गांवों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी द्वारा कृषि विकास, आवश्यक क्षमता संवर्धन, उत्पादन संवर्धन, न्यूनतम मूल्य की फसलों को उच्च मूल्य की फसलों द्वारा विस्थापन, उद्यानिकी फसलों द्वारा कृषि आय एवं रोजगार में वृद्धि, पशु उत्पादन में वृद्धि, कृषक महिलाओं के श्रम-साध्यता में योगदान, समेकित कृषि प्रणाली के मुख्य तत्वों व बाजार से सम्पर्क स्थापन को गति प्रदान की गई है।
विश्वविद्यालय ने नवाचार एवं विविध कार्यक्रम कौशल विकास द्वारा रोजगार सृजन, नवाचार द्वारा आजीविका अवसर, जैविक खेती, महत्वपूर्ण सामग्री उपलब्धता, सी.एस.आर. फंड जैसे कार्य कर आजीविका सुरक्षा व आर्थिक सशक्तीकरण के लिए कार्य किया है
स्मार्ट विलेज के समन्वयक डॉ. आई.जे. माथुर ने बताया कि छह वर्षों में इन सात गांवों की करीबन 10 हजार की आबादी के 2500 परिवारों को जोड़ा गया जिनमें 70 प्रतिशत से अधिक जनजाति परिवारों की भागीदारी रही है। क्षमता विकास अन्तर्गत ज्ञान एवं कौशल पर 151 प्रशिक्षण आयोजित कर 6853 प्रशिक्षणार्थियों को लाभान्वित किया गया। आई.सी.आई.सी.आई.-आर.एस.ई.टी.आई. के सहयोग से 32 राज मिस्त्री, 3 दो पहिया वाहन मरम्मत, 1 महिला टेलर, 2 सेल फोन रिपेयर, 15 लोगों को सीताफल प्रसंस्करण पर प्रशिक्षण प्रदान किया गया, इससे वे 10-12 हजार प्रति माह कमा रहे हैं।
सीताफल प्रसंस्करण की मूल्य श्रंखला विकसित कर एक उद्यमी तैयार किया गया जिसने जॉयको एग्रो फूडस कम्पनी खोली। पिछले वर्ष इन्होंने सीताफल का 19 टन पल्प 170 से 180 रुपये किलो की दर से देश की प्रमुख आईस्क्रीम कम्पनियों दिनशा (नागपुर) व श्रुती (सूरत) को बेचा। कम्पनी ने किसानों से 15 रुपये किलों की दर से सीताफल क्रय किया व कुल 11.25 लाख रुपये किसानों को दिए।
इसके अलावा प्रमुख फसलों मक्का एवं गेंहू में 145 हेक्टेयर क्षेत्र में 731 प्रदर्शन लगाकर बीज बदलाव किया गया जिससे 23 प्रतिशत अधिक उत्पादन हुआ साथ ही उनकी आमदनी में भी वृद्धि हुई। सब्जी टमाटर, मिर्च, बैंगन, भिण्डी एवं कन्दीय फसलों के 66.6 हेक्टेयर क्षेत्र में 724 प्रदर्शन लगाये गये जिससे किसानों को 0.1 हेक्टेयर क्षेत्र से रुपये 10-30 हजार की आमदनी प्राप्त हुई व इससे सामाजिक बदलाव भी पाया गया।
उन्होंने बताया कि क्षेत्र में फलदार पौधे आम, अमरूद, पपीता, नीम्बू के 10430 पौधे व कृषि वानिकी के 3600 पौधे लगाये गये जिससे स्थानीय किसानों की आय सुनिश्चित हो सके। जैविक खेती के अन्तर्गत वर्मीकम्पोस्ट की 125 व अजोला की 45 इकाइयां स्थापित की गई हैं।
उन्होंने बताया कि सी.एस.आर. फण्ड प्रबन्धन के अन्तर्गत चयनित गांवों में 126.16 लाख के कार्य करवाये गये जिसमें प्रमुख रूप से नये कक्षा-कक्ष का निर्माण, स्मार्ट क्लासरूम की स्थापना, स्कूल फर्नीचर, एनड्रॉयड टेबलेट, लेपटॉप, डेस्कटॉप कम्प्यूटर, प्रिंटर, ऑक्सीजन कन्सनट्रेटर की व्यवस्था, उप-सतही जल संरक्षण संरचना का निर्माण, एनिकट से गाद निकालना, सब्जियों के प्रदर्शनों के साथ ही निःशुल्क खेतों की जुताई के कार्य प्रमुख थे।