पाटलिपुत्र, सारण व मधेपुरा लोस सीट बने लालू की राजनीतिक प्रतिष्ठा के सवाल
पटना,22 अप्रैल( हि.स.)।अपनी पार्टी की तरह ही राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद भी उतार-चढ़ाव के कई दौर से गुजरे हैं। उनकी अनुपस्थिति में पहली बार होने वाला 17वीं लोकसभा का चुनाव उनकी पार्टी, परिवार और खुद उनके लिए मुश्किलों से भरा है। पिछले एक साल से भी अधिक समय से लालू प्रसाद के परिवार और उनके जीवन में आये उतार-चढ़ाव के बीच इस साल का लोकसभा चुनाव उनकी प्रतिष्ठा का विषय बन चुका है। इसे बचान में उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव रात-दिन एक कर रहे हैं। तेजस्वी का साथ राजद के नेताओं के साथ उनके बड़े भाई तेजप्रताप भी दे रहे हैं। इसके साथ ही उनकी बड़ी बहन व राज्यसभा सांसद मीसा भारती और तेजप्रताप के ससुर चंद्रिका राय पर अपनी जीत सुनिश्चित कर लालू प्रसाद की राजनीतिक प्रतिष्ठान को बनाये रखने का उत्तरदायित्व है।
लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक प्रतिष्ठा इस लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा पाटलिपुत्र, सारण और मधेपुरा की सीट पर दांव पर लगी हुई है क्योंकि इन तीनों लोकसभा क्षेत्रों से लालू यादव खुद चुनाव लड़ चुके हैं। ये तीनों लोकसभा सीटें लालू की राजनीति के पूर्वाद्ध और मध्य काल में उत्थान-पतन का एक कारक रहीं हैं। इस वर्ष इन तीनों सीटों के नतीजे एक तरह से उनकी संसदीय राजनीति का आकलन करेंगे। इन सीटों पर इस बार भी टिकट आवंटन का आधार जाति ही है। जिन तीन सीटों से लालू की प्रतिष्ठा जुड़ रही, उनपर मुकाबले के उम्मीदवार एक खास बिरादरी से हैं। ऐसे में चुनौती कुछ बड़ी हो गयी है। माना जा रहा है कि इन तीनों सीटों के अलावा हाजीपुर में भी उनके वजूद की लड़ाई होगी, जिसमें महुआ और राघोपुर दो विधानसभा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व उनके दोनों बेटे कर रहे हैं।
लालू के लिए पाटलिपुत्र का राजनीतिक इतिहास काफी रोचक रहा है। यहां से 2009 के लोकसभा चुनाव में लालू को अपने राजनीतिक गुरू प्रो. रंजन प्रसाद यादव से पटखनी खानी पड़ी थी। रंजन यादव जदयू के उम्मीदवार थे। इस चुनाव में लालू यादव 23 हजार 5 सौ 41 मतों से अपने गुरू से हार गये थे। इस हार का बदला लेने के लिए 2014 में लालू ने पाटलिपुत्र से अपनी बड़ी बेटी मीसा भारती को राजद उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया। तब यहां से कभी लालू का दाहिना हाथ कहे जाने वाले रामकृपाल यादव भाजपा के टिकट पर खड़े थे। लालू की हार की टीस 2014 में भी खत्म नहीं हुई क्योंकि मीसा को रामकृपाल यादव ने 40322 मतों से शिकस्त दी।
सारण लोकसभा सीट पर कभी लालू ने स्वयं तो नहीं लड़ा लेकिन उनकी पत्नी और पूर्व मुख्यमंत्री ने यहां 2014 में चुनाव लड़ा था। उस समय राबड़ी को भाजपा के राजीव प्रताप रूडी ने 40948 मतों के अंतर से पराजित किया था। लालू के लिए इसका मलाल लाजिमी है क्योंकि कभी यह इलाका उनके नाम का पर्याय था। सारण से लालू चार बार सांसद रहे हैं। इस लोकसभा चुनाव में लालू की राजनीतिक प्रतिष्ठा बचाने की जिम्मेदारी उनके समधी चंद्रिका राय पर है। चंद्रिका राय पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद राय के पुत्र हैं और 1998 के चुनाव में तीसरे पायदान पर रहे थे। उस समय लालू राजनीति में पहचान और आधार के लिए संघर्ष कर रहे थे। दरोगा राय ने सारण में लालू यादव की स्वीकार्यता यादवों के बीच बढ़ाने के लिए अंदर ही अंदर उनकी भरपूर मदद की। इसके बाद दोनों परिवारों में संबंध अच्छे हो गये और लालू ने अपने बड़े बेटे तेजप्रताप यादव की शादी चंद्रिका राय की बेटी एश्वर्या से कर दी। लेकिन छह महीने में ही यह रिश्ता टूटने के कगार पर है। अपने विवाह में आये खटास के कारण सारण से तेजप्रताप ने चंद्रिका राय की उम्मीदवारी का विरोध किया है। अब चंद्रिका राय को तेजप्रताप के अड़ंगे के बाद लालू के लिए सारण में खुद को साबित करने की चुनौती है।
मधेपुरा लोकसभा सीट पर इस बार लालू के लिए अजीबो-गरीब स्थिति बनी है। यहां से 1999 के लोकसभा चुनाव में शरद यादव और लालू के बीच ठन गयी थी। उस वक्त सारण में मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच हुआ था। लेकिन आज लालू उसी शरद यादव को सारण के मझधार से निकालने में लगे हुए हैं। लालू ने शरद को जनाधार विहीन नेता साबित कर देने की ठान ली थी तो शरद यादव का दावा था कि वे खुद को यादवों का असली और बड़ा नेता साबित करेंगे लेकिन चुनावी नतीजे ने लालू को निराश कर दिया। शरद यादव को सारण के मझधार से निकालने में लालू के इस सहयोग को लालू पर किये गये शरद के उस उपकार का भी बदला माना जा रहा है जब शरद यादव ने लालू को मुख्यमंत्री बनाने में मदद की थी। 1990 में लालू के अलावा रामसुंदर दास और रघुनाथ झा मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। रामसुंदर दास को तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह का पूरा समर्थन था। रघुनाथ झा के साथ चंद्रशेखर थे और लालू के साथ देवीलाल। उस समय शरद ने जनता दल के 121 में से 56 विधायकों के वोट लालू को दिलाकर उन्हें मुख्यमंत्री बनाया। मधेपुरा से चार बार लोकसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके शरद यादव इस बार राजद के टिकट पर मधेपुरा से चुनाव लड़ रहे हैं और मधेपुरा से लालू की राजनीतिक प्रतिष्ठा बचाने का उत्तरदायित्व उन पर ही है।