नानाजी देशमुख का चित्रकूट से रहा है गहरा नाता
सतना, 26 जनवरी (हि.स.) । प्रख्यात समाजसेवी एवं पूर्व सांसद दिवंगत चंडिकादास अमृतराव देशमुख उपाख्य नानाजी देशमुख का मध्यप्रदेश के सतना जिले के चित्रकूट से गहरा नाता रहा है। चित्रकूट, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की तपोभूमि के नाम से भी प्रसिद्ध है।
नानाजी देशमुख का जन्म महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के ग्राम कंडोली में 11 अक्टूबर 1916 को हुआ था। उनकी माता का नाम राजाबाई तथा पिता का नाम अमृतराव देशमुख था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार की प्रेरणा से वर्ष 1934 में वे संघ से जुड़े। वर्ष 1940 में उनको प्रचारक बनाकर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में भेजा गया। वर्ष 1950 में गोरखपुर के पक्कीबाग में उन्होंने सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना की। वर्ष 1951 में भारतीय जनसंघ के उत्तर प्रदेश के संगठन मंत्री का दायित्व सौंपा गया। इसी बीच आचार्य बिनोवा भावे के साथ उन्होंने प्रदेश की पदयात्रा की। वर्ष 1967 में उनको भारतीय जनसंघ का राष्ट्रीय संगठन मंत्री बनाया गया। वर्ष 1968 में दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की। वर्ष 1974 में लोकनायक जयप्रकाश के नेतृत्व में चलाए गए संपूर्ण क्रांति आंदोलन के प्रमुख कर्ता-धर्ता रहे। नानाजी 1975 में आपातकाल विरोधी लोक संघर्ष समिति के प्रथम महासचिव रहे। आपातकाल के दौरान जेल में भी रहे। आपातकाल समाप्त होने के बाद वर्ष 1977 में हुए आम चुनाव में वे जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में बलरामपुर लोकसभा सीट से निर्वाचित हुए। उस समय वे जनता पार्टी के महासचिव थे। केन्द्र की मोरारजी देसाई सरकार में मंत्री पद उन्होंने यह कहकर ठुकरा दिया कि 60 वर्ष से अधिक आयु के लोग सरकार से बाहर रहकर भी समाज सेवा का कार्य कर सकते हैं। नानाजी ने 11 अक्टूबर 1978 को सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया। वर्ष 1978 से 1990 तक गोंडा, नागपुर औक अहमदाबाद में कई रचनात्मक कार्य किए। वर्ष 1990-91 में चित्रकूट में देश के पहले ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की और उसके संस्थापक कुलाधिपति भी रहे। उन्होंने चित्रकूट में अनेक समाजोपयोगी प्रकल्पों की शुरुआत की। चित्रकूट के 500 से भी अधिक गांवों में उन्होंने स्वावलंबन अभियान का शुभारंभ किया। 11 अक्टूबर 1997 को एम्स को देह दान की घोषणा की।
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने उन्हें वर्ष 1999 में राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया। अटल सरकार ने उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण स्वालम्बन के क्षेत्र में अनुकरणीय योगदान के लिए वर्ष 1999 में पद्म विभूषण से अलंकृत किया। 27 फरवरी 2010 को चित्रकूट में उनका निधन हो गया और अगले दिन 28 फरवरी को नई दिल्ली एम्स में देहदान किया गया। उनकी पार्थिव देह आज भी एम्स नई दिल्ली में सुरक्षित रखी हुई है। मरणोपरांत उन्हें केन्द्र सरकार द्वारा देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की घोषणा की गयी है।