नमामि गंगे, जल हुआ निर्मल

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कुम्भ नगर (प्रयागराज), 16 फरवरी (हि.स.)। केंद्र की मोदी सरकार की नमामि गंगे परियोजना का बड़ा असर सामने आया है। यह सब भारतीय संस्कृति का सम्मान करने वाली राज्य सरकारों की वजह से संभव हो पाया है। पूर्व के कुम्भ में गंगाजल आचमन योग्य नहीं था। सुखद यह है कि इस बार केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में गंगाजल को आचमन योग्य बताया है। यह तथ्य भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं सामना के पूर्व संपादक प्रेम शुक्ल ने शनिवार को दिव्य प्रेम सेवा मिशन के शिविर में दिव्य प्रेम सेवा मिशन, हरिद्वार, गंगा समग्र, ग्रामीण संविकास संस्थान, गोरखपुर एवं उ.प्र. राजर्षि टंडन मुक्त विवि, प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में 26वें पृथ्वी पर भूगोल कुम्भ के अवसर पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में कही। मुख्य अतिथि शुक्ल ने उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश से बिहार तक गंगा के अविरल प्रवाह कि चर्चा करते हुए गंगा में गंदगी फैलाने को हिंसक बताया। उन्होंने कहा कि हमें इस हिंसा से दूर रहना चाहिए।
मुख्य वक्ता और नीति आयोग के सदस्य डॉ. उन्नत पंडित ने कहा कि हमें अपनी भारतीय संस्कृति की बौद्धिक संपदा का न केवल संरक्षण करना है बल्कि नवाचार द्वारा उसके वैज्ञानिक एवं सामाजिक उपयोगिता के आयाम का अनुसंधान करना है। उन्होंने भारत सरकार द्वारा कक्षा 6 से 12 तक के छात्रों के लिए शुरू की गई अटल टिकरिंग लैब का उल्लेख करते हुए कहा कि कक्षा 9 व 10 के बच्चे अपनी जिज्ञासा एवं नवाचार का उपयोग करते हुए छोटे-छोटे यंत्र बना रहे हैं। इन छात्रों ने हृदय रोग और कोल माइनिंग से सम्बंधित गजट बनाए हैं। यह बेहद उपयोगी हैं।
पूरा विश्व पृथ्वी संरक्षण के लिए चिंतित: प्रो.कामेश्वर
उ.प्र. राजर्षि टंडन मुक्त विवि, प्रयागराज के कुलपति प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह ने कहा कि यह पृथ्वी पर्व नई ऊर्जा लेकर आया है। इस मंथन से नवीन अमृत निकलेगा। यह भारतीयों के लिए वरदान साबित होगा। आज पूरा विश्व पृथ्वी के संरक्षण के लिए चिंतित है। संगोष्ठी के अध्यक्ष इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सुधीर नारायण ने कहा कि भूगोल का ज्ञान सामाजिक समस्याओं को सुलझाने में महती भूमिका निभाता है। कावेरी जल विवाद एवं राम जन्म भूमि मामले में भूगोल के ज्ञान के आधार पर उन्होंने जो निर्णय दिये वे आज भी समीचीन हैं। दिव्य प्रेम सेवा मिशन के संस्थापक आशीष गौतम ने कहा कि पृथ्वी के संरक्षण से ही हमारी संस्कृति का संरक्षण सम्भव है। गंगा समग्र के मार्गदर्शक मिथलेश ने कहा कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक गंगा आस्था व संवेदना का विषय है। दिल्ली विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के अध्यक्ष प्रो. एस.सी. राय ने गंगा के विकास को टोन्स एवं यमुना के विकास से जोड़ा। जे.एन.यू. नई दिल्ली के प्रो. कौशल किशोर शर्मा ने कहा कि पृथ्वी के संरक्षण के लिए भावना, कल्पना, योजना एवं साधना की आवश्यकता है। अतिथि विद्वानों के बीच समूह चर्चा में प्रमुख रूप से प्रो. के.एन. सिंह, प्रो. आर.के. सिंह, प्रो. एस.सी. राय, प्रो. वी.सी. वैद्य, प्रो. महेन्द्र सिंह नथावन, प्रो. आर.एस. यादव, प्रो. ए.आर. सिद्दीकी एवं प्रो.राजू ने हिस्सा लिया।


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