दो इतिहास बनाकर बीत गया बजट सत्र
नई दिल्ली, 07 अप्रैल (हि.स.)। इस बार का बजट सत्र कई इतिहास बनाकर 6 अप्रैल 2018 को समाप्त हो गया। यह पहली बार हुआ कि 4 विपक्षी दलों ने सरकार के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया और सदन में इस पर बहस नहीं हो सकी। कभी टीडीपी सांसदों द्वारा आन्ध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर ,कभी वाईएसआर कांग्रेस के सांसदों द्वारा आन्ध्र प्रदेश को विशेष पैकेज देने के मांग को लेकर, कभी तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव की पार्टी के सांसदों द्वारा राज्य के विकास के लिए फंड देने की मांग को लेकर किये जा रहे हंगामे, कभी अन्नाद्रमुक के सांसदों द्वारा सदन में कावेरी मुद्दे पर हंगामा करने के चलते, सदन आर्डर में नहीं होने को आधार बना अविश्वास प्रस्ताव की नोटिस लटकाए रखा गया और बजट सत्र खत्म हो गया। अप्रैल में लोकसभा में केवल अन्नाद्रमुक के सांसद ही कावेरी मुद्दे पर हंगामा करते रहे। यदि उन्हें सदन से बाहर कर दिया जाता और अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस स्वीकर कर लिया जाता, तब उस पर कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल वाले सदन में सरकार के विरूद्ध अपने अविश्वास को बता सकते थे, अपने भाषण में प्रमाण सहित कह सकते थे। इसका जवाब केन्द्र की भाजपानीत सरकार, प्रधानमंत्री दे सकते थे। उसके बाद मतदान होता तो भी सरकार बहुमत से जीत ही जाती। फिर अविश्वास प्रस्ताव वाली नोटिस क्यों स्वीकार नहीं की गई? इसके बारे में कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद व पूर्व केन्द्रीय मंत्री आनंद शर्मा का कहना है कि अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान होने पर राजग के आपसी मतभेद सामने आ सकते थे। इसको और स्पष्ट करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता सुरजेवाला का कहना है कि भाजपा के कई सहयोगी दल अविश्वास प्रस्ताव पर उसका साथ नहीं देते। इसीलिए अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस को लटकाये रखकर बजट सत्र पूरा कर लिया गया। लेकिन इस सरकार ने यह जो नया इतिहास बनाया है इसका दुरूपयोग आगे कई सत्ताधारी दल या कमजोर सरकारें, इसे उदाहरण बनाकर कर सकते हैं। इस सत्र में एक और इतिहास बना, लोकसभा अध्यक्ष के कस्टमरी चाय पार्टी का विपक्ष द्वारा बहिष्कार। हर बार सत्र समाप्त होने पर लोकसभा अध्यक्ष सभी दलों के सांसदों को चाय पार्टी देता रहा है। इस बार भी दी गई। लेकिन इस बार विपक्ष ने बहिष्कार कर दिया। पूछने पर विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा का सभापति सभी दलों, सभी सांसदों के लिए समान होता है। यदि उस पर पार्टी विशेष या जिस पार्टी का होता है उसके नेता की तरह व्यवहार करने की आशंका होने लगती है तब यही होता है। ऐसे में चाय पार्टी में जाने का मन नहीं करता है। इन दो के अलावा, बिना चर्चा के गिलोटिन के मार्फत बजट पास कराने का भी मामला है। वैसे तो सत्ताधारी पार्टी या विपक्ष अपने को सही साबित करने के लिए हजारों तर्क दे सकते हैं, लेकिन चाहे जिस कारण भी, यह सब जो हुआ, उचित नहीं हुआ। इससे महान संस्थाओं, उनके मूल्यों का क्षरण हुआ है।