देश की उपलब्धियों पर गर्व करें

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27 मार्च 2019। समय 11.16 बजे दिन। यह वह क्षण था जब भारत ने अपनी इंटरसेप्ट मिसाइल क्षमता का परिचय दे अंतरिक्ष में घूम रहे अपने ही एक त्यागे जा चुके उपग्रह का भेदनकर विश्व के उन तीन महाशक्ति कहे जानेवाले देशों में अपना स्थान बना लिया। अपने इस सफल मिशन के बाद अपना देश अमेरिका, रूस व चीन के बाद भूमि से अंतरिक्ष तक सफल मिसाइल-भेदन की क्षमता प्राप्त करनेवाला चौथा देश बन चुका है।
स्पष्ट है कि 27 मार्च की उपलब्धि बड़ी है। अतः स्वाभाविक ही था कि इसरो व डीआरडीओ के वैज्ञानिक वर्ग का अभिनन्दन करने, देशवासियों और विश्व को इस उपलब्धि से अवगत कराने के लिए कोई ‘बड़ा’ व्यक्तित्व ही सामने आता। भारत सरकार के कार्यपालिका प्रमुख प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह दायित्व निभाया भी। उन्होंने देशवासियों को इस उपलब्धि से परिचित कराते हुए उन्हें गर्व करने का क्षण ही प्रदान नहीं किया, बल्कि वैज्ञानिकों को उनकी इस असाधारण उपलब्धि पर देशवासियों की ओर से अभिनन्दन करते हुए बधाई दी। साथ ही विश्व को आश्वस्त किया कि इस उपलब्धि को पाने के बाद भी भारत अपनी ‘शान्ति दूत’ की भूमिका का ही निर्वहन करेगा। विश्व की किसी संधि का उल्लंघन नहीं करेगा।
देशवासियों ने तो मोदी की इस घोषणा का गर्व से स्वागत किया, किन्तु मोदी विरोधी कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं ने इसे आचार संहिता का उल्लंघन बता छाती पीटना शुरू कर दिया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का कहना था- ‘बहुत खूब … डीआरडीओ। आपके कार्य पर हमें गर्व है। प्रधानमंत्री मोदी को भी विश्व रंगमंच दिवस की बहुत-बहुत बधाई।’ अखिलेश यादव ‘मोदी के मुफ्त घंटाभर टीवी पर रहने और आकाश की ओर इशारा कर बेरोजगारी, ग्रामीण संकट, महिला सुरक्षा जैसे जमीनी मुद्दों से ध्यान भटकाने’ से आहत थे। बसपा नेता मायावती इसे ‘चुनावी लाभ के लिए राजनीति करना’ मान रही थीं। माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी की दृष्टि में ‘प्रधानमंत्री मोदी की घोषणा आचार संहिता का उल्लंघन’ थी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की दृष्टि में यह ‘मोदी की हर चीज का श्रेय लेने की एक और नौटंकी’ थी। देर शाम तक टीवी चैनलों की बहसों से तो ऐसा आभास हो उठा कि ‘ए-सैट’ मिसाइल ने अपने किसी उपग्रह का नहीं, विपक्ष के गढ़ों का भेदन कर दिया हो। गनीमत रही कि पूर्व की घटनाओं पर उड़ी हंसी से सहमे विपक्ष के किसी नेता ने प्रधानमंत्री से इस उपलब्धि का ‘सबूत’ नहीं मांगा। अपनी बौद्धिक क्षमताओं पर लगे प्रश्नचिह्न को हटाने में अब तक विफल रहे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से तो देश को यही उम्मीद थी कि उनका कोई ‘बेतुका’ बयान आएगा। लेकिन उत्तरप्रदेश जैसे राज्य के मुख्यमंत्री रहे अखिलेश, मायावती तथा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सरीखों की प्रतिक्रिया आहत करनेवाली थी।
विचारना होगा कि आखिर क्या कारण है कि देश का मान-सम्मान बढ़ानेवाले घटनाक्रमों पर भी विपक्ष के इन नेताओं को सिर्फ राजनीति ही क्यों नजर आती है? छोटे-मोटे घटनाक्रमों को छोड़ भी दें तो 29 सितम्बर 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक व 26 फरवरी 2019 की एयर स्ट्राइक जैसी देश को गर्व का अहसास करानेवाली घटनाओं के बावजूद भी क्या मोदी का अंध विरोध इतना प्रबल है कि इन नेताओं व इनके कार्यकर्ताओं को इन अवसरों पर गर्व कर सकने से रोक देता है?
इन प्रश्नों का उत्तर शायद इसरो के पूर्व प्रमुख जी माधवन नायर व डीआरडीओ के पूर्व महानिदेशक वीके सारस्वत के इस खुलासे में निहित है कि भारत पर 2007 में चीन द्वारा इस क्षमता का विकास कर लेने के बाद से ही इस क्षमता का विकास करने का दबाव था। लेकिन 2012 में तत्कालीन सरकार की इच्छाशक्ति के अभाव के चलते भारत को 2015 में ही मिल सकनेवाली यह सफलता 2019 में मिली है।
याद करें इंदिरा गांधी के नेतृत्ववाली कांग्रेस की सरकार को, जिसने अपनी दृढ इच्छाशक्ति के बल पर न सिर्फ पाकिस्तान का विभाजन कराकर बंगलादेश का निर्माण कराया। वरन् पहला परमाणु परीक्षण कर ‘बुद्ध को मुस्कराने’ का अवसर प्रदान किया। फिर ऐसा क्या हुआ कि भारत को अपने परमाणु परीक्षणों के लिए 1998 में सत्तारूढ़ होनेवाली वाजपेयी सरकार तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। उत्तर एक ही है- दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव। इसी के चलते भगवान बुद्ध को भी पांच बार मुस्कराने के लिए दशकों की प्रतीक्षा करनी पड़ी।
कमोवेश यही इस उपलब्धि का सच है। पूर्व इसरो प्रमुख जी माधवन नायर के अनुसार हम 2007 से ही इस क्षमता को पाने में सक्षम थे। डीआरडीओ के पूर्व महानिदेशक वीके सारस्वत के अनुसार, उन्होंने 2012 में तत्कालीन संप्रग सरकार से इस योजना के लिए धन व अनुमति मांगी थी। लेकिन ‘राजनीतिक दृढ़ता के अभाव के चलते’ तत्कालीन सरकार ने उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी। काश, मोदी की पूर्ववर्ती संप्रग सरकार में भी मोदी सरकार सरीखी दृढ़ इच्छाशक्ति रही होती तो देश ने 26/11 के मुम्बई हमले के बाद ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ से तथा 2015 में ‘इस उपलब्धि से’ परिचय पा लिया होता।

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