दिल्ली के 49 लाख पूर्वांचली मतदाताओं को पटाने की होड़
नई दिल्ली,07 अप्रैल (हि.स.)। दिल्ली में लगभग 1 करोड़ 40 लाख मतदाता हैं। इसमें से लगभग 49 लाख मतदाता पूर्वांचली यानि पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार व झारखंड के हैं। ये दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों पर किसी भी पार्टी के प्रत्याशी को हराने व जिताने की स्थिति में हैं। नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में इनकी संख्या लगभग 15 प्रतिशत , पश्चिम दिल्ली में लगभग 18 प्रतिशत, अन्य 5 संसदीय क्षेत्रों में 25 से 40 प्रतिशत के लगभग हैं। इनमें सबसे अधिक पश्चिम उत्तर संसदीय क्षेत्र में हैं। पहले यहां पर पूर्वांचली मतदाताओं को तरजीह नहीं दिया जाता था। सबसे पहले अरविन्द केजरीवाल ने पूर्वांचली मतदाताओं की अहमियत समझी। उन्होंने 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में 14 पूर्वांचली को टिकट दिया और 14 के 14 जीत गए। उसके पहले कांग्रेस व भाजपा केवल 2 से 3 को टिकट देती थी। लेकिन आम आदमी पार्टी ने जब पूर्वांचली मतदाताओं को तरजीह दी और उसका फायदा उसको बहुत मिला, तब उसकी काट के लिए कांग्रेस व भाजपा ने भी पूर्वांचल के लोगों को तरजीह देना शुरू कर दिया। इसके बाद से अब दिल्ली की कुछ संसदीय व विधानसभा सीटों पर केवल पूर्वांचली को ही प्रत्याशी बनाने की बात होने लगी है। इस बारे में भोजपुरी समाज संस्था के अजीत दूबे का कहना है कि दिल्ली में पूर्वांचलियों को किसी ने सबसे अधिक इज्जत, सम्मान व पद दिया है, तो वह हैं आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल। इसकी वजह यह है कि इनके 4 प्रमुख नेता अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, गोपाल राय व संजय सिंह दिल्ली से बाहर के हैं। अन्य प्रमुख राजनीतिक दल तो केवल नाटक व नृत्य करने वालों को तरजीह दे रहे हैं। जो जनता के बीच के नहीं हैं, इसलिए उनसे भी जनता का जुड़ाव नहीं बन पा रहा है। दिल्ली में तीन दशक से रहने वाले राजस्थान के मूल निवासी तथा “जलाधिकार संस्था” चलाने वाले सीए कैलाश गोदुका का कहना है कि दिल्ली में पहले पंजाबी, जाट, गुर्जर लोगों का दबदबा था। बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड से आये लोगों को ये लोग “बिहारी” कहते रहे हैं। मैं राजस्थान से हूं , मेरे जैसे हिन्दी बोलने वाले बहुत से राजस्थानियों को भी “बिहारी” कहते हैं। लेकिन अब स्थिति पहले से बदल गई है। अब दिल्ली में पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान, उत्तराखंड के इतने लोग आकर बस गये हैं कि बिना इनके समर्थन के चुनाव जीतना मुश्किल हो गया है। हर संसदीय व विधानसभा क्षेत्र में जीत-हार का निर्णय करने वाली स्थिति में हो गये हैं। इसलिए अब उनकी बात होने लगी है। उनकी सुनी जाने लगी है। उनको नजरंदाज करना भारी पड़ने लगा है। उनका वोट बल किसी भी प्रत्याशी का भाग्य बनाने, बिगाड़ने वाला हो गया है। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सभी राजनीतिक दल पूर्वांचलियों को लुभाने की मुहिम में लग गये हैं। इसके लिए तरह-तरह का उपक्रम कर रहे हैं।