झारखंड में सीट बंटवारे पर फंसा विपक्षी दलों के गठबंधन का पेंच

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रांची, 08 मार्च (हि.स.) । देश में लोकसभा चुनाव की दस्तक के साथ ही सभी पार्टियां अलर्ट हो गयी हैं। झारखंड में सत्तारूढ़ भाजपा को हराने के लिए विपक्षी दल फौरी तौर पर तो एक साथ दिखाई दे रहे हैं, लेकिन इन दलों की विचारधारा और हित कहीं न कहीं टकरा रहे हैं। बावजूद गठबंधन का दावा किया जा रहा है, पर इस गठबंधन की गांठ कभी भी खुल सकती है। भाजपा को हराने के सपने पर पानी फिर सकता है। क्योंकि विपक्षी दलों के गठबंधन की कवायद सीट बंटवारे के मसले पर अटक गयी है।
झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बयान से गठबंधन में असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। उन्होंने एक शर्त रखी है कि लोकसभा और विधानसभा के लिए सीट शेयरिंग पर समझौता एक साथ होना चाहिए। इसके लिए झामुमो अपनी ओर से पहल भी कर रहा है। उन्होंने गठबंधन के साथी और झारखंड विकास मोर्चा के प्रमुख बाबूलाल मरांडी पर निशाना साधा है। सोरेन ने कहा कि पिछले चुनावों में मरांडी की नीतियों की वजह से झामुमो ने धोखा खाया है। वह बार-बार धोखा नहीं खा सकता। इसलिए इस बार सतर्क हैं।
भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों के गठबंधन का स्वरूप तय करने की कवायद दिल्ली से रांची तक चल रही है। कांग्रेस, झामुमो, झाविमो और राजद के नेताओं के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है। विपक्षी दलों के नेताओं की बैठक में यह तय हुआ है कि झारखंड में लोकसभा चुनाव कांग्रेस के नेतृत्व में और विधानसभा चुनाव का नेतृत्व झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। विधानसा चुनाव में हेमंत सोरेन विपक्ष का चेहरा होंगे। गठबंधन के घटक दलों के बीच सीटों के बंटवारे का एक फॉर्मूला तय हुआ है। इसके तहत कांग्रेस सात, झामुमो चार, झाविमो दो और राजद को एक सीट मिली है। दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से हेमंत सोरेन की मुलाकात के बाद इस फॉर्मूले पर सहमति बनी, लेकिन महागठबंधन की गाड़ी जैसे ही दिल्ली से बाया रांची चली गोड्डा, पलामू और जमशेदपुर में अटक गयी। लोकसभा के तीन सीटों पर फंसा पेंच सुलझ नहीं रहा है। मन पसंद सीटों की जिद ने झारखंड में विपक्षी गठबंधन को पेंचीदा बना दिया है। इन तीनों सीटों को लेकर अभी भी महागठबंधन का रोड़ा अटका हुआ है।
झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) गोड्डा सीट पर अड़ गया है। जबकि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) पलामू सीट को लेकर जिद पकड़े हुए है। जमशेदपुर सीट पर कांग्रेस और झामुमो दोनों दावा कर रहे हैं। झामुमो और राजद को तो कांग्रेस मना लेगी, लेकिन झाविमो को मनाना आसान नहीं दिख रहा है। झाविमो अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने साफ कह दिया है कि वह गोड्डा सीट पर कोई समझौता नहीं करेंगे। मरांडी का कहना है कि गोड्डा सीट छोड़कर गठबंधन उन्हें स्वीकार नहीं है। इसके लिए महागठबंधन से अलग भी होना पड़े तो उन्हें मंजूर है। कोडरमा सीट छोड देंगे, लेकिन गोड्डा नहीं। झाविमो के प्रधान महासचिव प्रदीप यादव ने गोड्डा से हर हाल में चुनाव लड़ने की बात कही है।
राजद पलामू लोकसभा सीट को लेकर अड़ा हुआ है। राजद के कोटे में चतरा सीट है। राजद की प्रदेश अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी का कहना है कि उनकी पार्टी की तैयारी पलामू में है। पलामू राजद की सीट रही है। ऐसे में यह सीट राजद को मिलना ही चाहिए।
कांग्रेस का भी मामला कोल्हान में फंसा है। कोल्हान प्रमंडल में झामुमो चाईबासा और जमशेदपुर में से एक सीट मांग रहा है। कांग्रेस ने चाईबासा से गीता कोड़ा को चुनाव लड़वाने का भरोसा दिला कर पार्टी में शामिल कराया है। गीता कोड़ा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। जमशेदपुर सीट से पार्टी अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार दावेदार हैं, लेकिन इस सीट पर झामुमो अपना अधिकार बता रहा है।
झाविमो गोड्डा सीट नहीं मिलनने की स्थिति में गठबंधन से अलग भी हो सकता है, पर कांग्रेस ऐसा नहीं चाहेगी। ऐसे में कांग्रेस को पार्टी के पूर्व सांसद फुरकान अंसारी को मनाना होगा। गठबंधन के घटक दल भी अब कांग्रेस और झाविमो को त्याग करने की दुहाई दे रहे हैं। झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि भाजपा को हराने के लिए त्याग करने की जरूरत है। जिद से किसी समस्या का समाधान नहीं होता है। कांग्रेस और झाविमो में जिसकी जीत की संभावना अधिक हो, उसी आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिए।
बहरहाल, पिछले विधानसभा चुनावों में अंतिम समय पर विपक्ष बिखर गया था, जिसका सीधा लाभ भाजपा को मिला। यही वजह है कि भाजपा भी विपक्ष की एकता को लेकर निश्चिंत नजर आती है। उसका पूरा जोर मिशन-2019 पर और संगठन के विस्तार पर है।
झारखंड में लोकसभा की 14 सीटें हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 12 और झामुमो को दो सीटें मिली थीं। कांग्रेस और झाविमो का खाता भी नहीं खुला था। झामुमो को दुमका और राजमहल में जीत हासिल हुई थीं।


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