जॉर्ज क्यों गये बागी चरण सिंह का साथ

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भारतीय समाजवादी धारा के अनथक यात्री और योद्धा जॉर्ज फर्नांडिस अब हमारे बीच नहीं हैं। देश उनके तमाम संघर्षों और उपलब्धियों को याद कर रहा है। लेकिन उन पर एक ऐसा दाग़ रहा, जिसकी कीमत देश से ज्यादा उन्होंने चुकाई। 1967 में मुंबई में दिग्गज कांग्रेसी एस के पाटिल को हराने और 1974 की कामयाब रेल हड़ताल के बाद जार्ज फर्नांडिस ऐसी शख्सियत के तौर पर उभर रहे थे, जिनमें भावी प्रधानमंत्री का अक्स दिखाई देने लगा था। लेकिन जुलाई 1979 में उन्होंने जो गलती की, उससे उनकी छवि कमजोर हुई। गांधी शांति प्रतिष्ठान के पूर्व सचिव और जार्ज के साथी रहे सुरेंद्र कुमार कहते हैं कि उस गलती की वजह से जार्ज उबर नहीं पाए। सुरेंद्र कुमार मानते हैं कि अगर जार्ज ने वह गलती नहीं की होती तो वे देश का नेतृत्व कर सकते थे।
आखिर वह गलती क्या थी? वह गलती थी मोरारजी सरकार के समर्थन में संसद में लंबा और जोरदार भाषण देने के बाद बाहर निकलते ही जनता पार्टी के तत्कालीन बागी चरण सिंह को समर्थन दे देना। हकीकत तो यही है कि जार्ज के भाषण के बाद मोरारजी सरकार को बनाए रखने के लिए राजनीतिक हलकों में माहौल बनता नजर आने लगा था। लेकिन जुलाई 1979 की उसी रात संसद से बाहर निकलने के कुछ घंटों बाद ही जॉर्ज ने उस चरण सिंह का साथ देने का एलान कर दिया, जिनके खिलाफ उन्होंने कुछ ही घंटों पहले संसद में भाषण दिया था।
सवाल यह था कि आखिर जॉर्ज ने यह कदम क्यों उठाया? आज की तरह उन दिनों सोशल मीडिया नहीं था। ना ही मीडिया के दूसरे हलकों ने भी इसकी पड़ताल करने की कोशिश नहीं की। लेकिन जार्ज ने यह कदम क्यों उठाया, इसका जिक्र उनकी सहयोगी और समता पार्टी की पूर्व अध्यक्ष जया जेटली ने अपनी आत्मकथा ‘ लाइफ अमॉंग स्कॉर्पियन्स’ में किया है। जया की बात की तस्दीक बिहार के वयोवृद्ध समाजवादी नेता और जनता दल यू बिहार के पूर्व अध्यक्ष रामजीवन सिंह भी करते हैं।
रामजीवन सिंह के मुताबिक, चरण सिंह के समर्थन में जॉर्ज के आने से वे खिन्न हो गए थे। तब जार्ज करोड़ो युवाओं के हीरो भी होते थे। अपने नेता के इस आचरण से दुखी रामजीवन ने कुछ दिनों बाद जॉर्ज से इस तबादला ए खयालात के बारे में पूछ लिया था। रामजीवन सिंह को जो जवाब जॉर्ज ने दिया था, उसकी जानकारी जया जेटली ने भी अपनी आत्मकथा में दी है। रामजीवन सिंह को जॉर्ज ने बताया था कि मोरारजी सरकार के समर्थन में जोरदार और तर्कदार भाषण देने के बाद जॉर्ज अपने घर पहुंचे तो वहां जनता पार्टी के तत्कालीन महासचिव मधु लिमये पहले से मौजूद थे। मधु लिमये ही वह शख्स थे, जिन्होंने जनता पार्टी में दोहरी सदस्यता का मामला उछाला था। उससे जनसंघ धड़े के नेता असहज हो गए थे। उससे कमजोर पड़ी मोरारजी सरकार के खिलाफ चरण सिंह ने जब बागी रूख अख्तियार किया तो मधु लिमये, चरण सिंह के साथ थे। महाराष्ट्र और मुंबई में जॉर्ज फर्नांडिस ने मधु लिमये के साथ ही संघर्ष किया था। इसलिए दोनों में गहरी दोस्ती थी। जॉर्ज ने रामजीवन सिंह को बताया था कि उस रात उनके घर पहुंच मधु लिमये ने उनसे मोरारजी का साथ छोड़ने का दबाव बनाया। जब वे नहीं माने तो उनके कमरे के दरवाजे पर खड़े हो गए और शर्त रख दिया कि या तो अब जार्ज की उनसे दोस्ती रहेगी या फिर जॉर्ज मोरारजी का साथ छोड़ेंगे।
इसके बाद भारी मन से जॉर्ज ने मोरारजी का साथ छोड़ दिया। इससे उनकी राजनीतिक हलकों में काफी किरकिरी हुई। उनकी साख को धक्का भी पहुंचा। दिलचस्प बात यह है कि मोरारजी का साथ छोड़ने के बावजूद चरण सिंह ने जार्ज को अपने मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी। जॉर्ज ने मधु लिमये के साथ अपनी दोस्ती के नाम पर अपनी साख को होम कर दिया। सुरेंद्र कुमार कहते हैं कि अगर जॉर्ज ने वह कदम नहीं उठाया होता तो उनकी साख को बट्टा नहीं लगता..हो सकता था कि भविष्य में वे देश के प्रधानमंत्री बनते…
लेकिन जॉर्ज साहब भी दोस्ती की मर्यादा नहीं भूले…अपनी इस राजनीतिक हाराकिरी का अंदरूनी तौर पर उन्हें भले ही मलाल रहा हो, सार्वजनिक तौर पर उन्होंने कभी अफसोस नहीं जताया..अगर वे ऐसा करते तो उनके दोस्त मधु लिमये की साख पर भी सवाल उठते


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