जाते-जाते भी बहुत कुछ संदेश दे गया प्रयागराज कुंभ
महाशिवरात्रि पर यूं तो देश की सभी पवित्र नदियों में श्रद्धालुओं ने स्नान किया। सभी शिवालयों में भक्तों ने देवाधिदेव भगवान शिव का जलाभिषेक किया। उनका अर्चन-बंदन कर अपनी और संसार के कल्याण की कामना की। विश्वनाथ मंदिर, महाकाल, गोला गोकर्णनाथ, बाबा वैद्यनाथ, वासुकीनाथ समेत देश के सभी द्वादश ज्योतिर्लिंगों और उप ज्योतिर्लिंगों का बड़ी तादाद में भक्तों ने जलाभिषेक किया। गंगा-यमुना, सरस्वती के प्रयागराज स्थित पवित्र त्रिवेणी संगम में स्नान-दान के साथ ही कुंभ मेले का समापन हो गया। कुंभ मेला प्रशासन ने भी जैसे गंगा नहा लिया।
यह मेला कई मायने में अहम रहा। इस मेले में कई कीर्तिमान बने। ऐसे-ऐसे विलक्षण काम और प्रयोग हुए कि कहिए मत। कोई भी प्रयोग काटने-बराने लायक नहीं रहा। इस मेले ने श्रद्धालुओं की आमद का भी कीर्तिमान बनाया। 24-25 करोड़ श्रद्धालुओं की उपस्थित कम महत्वपूर्ण नहीं होती। मकर संक्रांति के दिन से महाशिवरात्रि के दिन तक प्रयागराज में श्रद्धालुओं का रेला उमड़ता रहा।
प्रयागराज कुंभ अपने समापन के दिन भी एकजुटता का पाठ पढ़ा गया है। वेद के उस मंत्र की याद दिला गया है जिसमें कहा गया है कि साथ-साथ चलो, साथ-साथ बोलो, साथ-साथ करें। ‘संगच्छध्वं संबदध्वं सं वो मनांसि जानताम।’ इस बार का कुंभ इस मायने में भी बेहद अहम रहा कि वह अपनी विचारात्मकता और सकारात्मकता के लिए भी जाना गया। कुंभ से पहले भी यहां कई कुंभों का आयोजन हुआ। उसमें संस्कृति कुंभ, युवा कुंभ, समरसता कुंभ और नारी शक्ति कुंभ महत्वपूर्ण रहे। सांस्कृतिक कार्यक्रमों की गंगा यहां समानांतर बहती रही। साधु-संतों के अखाड़ों में धर्म, ज्ञान और अध्यात्म की त्रिवेणी बहती रही। कुंभ में बड़ी संख्या में नए साधु बने। विदेशी श्रद्धालु भी यहां आकर भारतीय संस्कृति के रंग में रच-बस गए। उन्होंने संन्यास का मार्ग, प्रवज्या का मार्ग अपना लिया। नागा साधुओं की दिनचर्या नजदीक से देखने का आनंद ही अलौकिक था। इस कुंभ में आकाश मार्ग से पुष्प वर्षा तो होती ही रही। इन्द्रदेव ने भी श्रद्धालुओं का स्वागत किया। इससे जाहिर तौर पर ठंड भी बढ़ी। घाट पर भी कुछ फिसलन हुई लेकिन श्रद्धालुओं की आस्था भी खूब परीक्षित हुई। त्याग-तपस्या की आग में तपकर कुंदन बनी। मौसम खराब होने के बाद भी शिविरार्थियों और कल्पवासियों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई। कई अखाड़ों में विदाई समारोह तो वसंत पंचमी को ही हो गया था लेकिन वे शिवरात्रि तक मेला क्षेत्र में बने रहे।
यह कुंभ अपनी आध्यात्मिकता के लिए तो जाना ही गया। अपनी कलात्मकता, साहित्यिकता, दार्शनिकता और चिंतनात्मकता के लिए भी जाना गया। इस कुंभ मेले में देश-विदेश की बड़ी सहभागिता रही। इतना बड़ा धार्मिक समागम योगी आदित्यनाथ सरकार की बड़ी उपलब्धि रही। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का तो एक पैर जैसे प्रयागराज में ही रहा। ऐसे कई अवसर आए जब उन्होंने प्रयागराज में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। योगी कैबिनेट की बैठक और पूरी कैबिनेट का स्नान राजनीतिक हल्कों में भी चर्चा का केंद्र रहा। उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के राज्यपालों ने भी संगम में डुबकी लगाई। कई राज्यों के मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री भी खुद को संगम में डुबकी लगाने से रोक नहीं पाए। कोई भी वीवीआईपी आया हो और उसने मां गंगा की आरती न की हो, लेटे हनुमान जी का आशीर्वाद न लिया हो, अक्षयवट और सरस्वती कूप के र्दान न किए हों, ऐसा हुआ नहीं। एक गीत है कि ‘राम नाम नदिया सुगम बहल जाए ओमें कोइ-कोइ नहाय। ’ लेकिन गंगा-यमुना के पवित्र संगम में जदातर लोगों ने स्नान किया। जो किन्हीं कारणों से नहीं जा पाए, उन्होंने हर क्षण खुद को संगम में गोते लगाते पाया। उनका मन एक तरह से कुंभ में ही लगा और रमा रहा। इस कुंभ में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के कई मानक स्थापित हुए। स्वच्छताकर्मियों के तो खुद प्रधानमंत्री ने पैर पखारे। भारत के राजनीतिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब किसी प्रधानमंत्री ने स्वच्छताकर्मियों के पद प्रच्छालन किए हों। कुछ लोग इसे राजनीतिक नौटंकी भी कह सकते हैं लेकिन इस तरह की नौटंकी करने के लिए भी साहस की जरूरत होती है। सामाजिक समरसता और अस्पृश्यता निवारण का इससे बड़ा उदाहरण और कोई नहीं हो सकता।
इस मेले में धर्म संसद भी हुई और परम धर्म संसद भी। राम मंदिर निर्माण का मुद्दा भी उठा। यह कुंभ संदेशों के नाम रहा। उपदेशों के नाम रहा। ज्ञान, कर्म और वैराग्य यहां अपनी पराकाष्ठा पर रहा। कलाकारों ने भी अपनी कला के माध्यम से न केवल मनोरंजन किया बल्कि लोगों को स्वच्छता अभियान के प्रति भी जागृत किया। कुंभ का हर दिन आयोजनों के नाम रहा। अब हमें देश की एकता, अखंडता, अक्षुण्णता और सांस्कृतिक परंपरा को यूं ही बनाए रखने के लिए यह हमसे विदा हो रहा है। अगले कुंभ में हम फिर मिलेंगे लेकिन प्रयागराज के संदेशों की लौ अपने हृदय में अनवत जलाए रखनी होगी।
मौजूदा समय देश के कल्याण पर चिंतन करने का है। सौभाग्य से कुंभ में इस पर बहुत कुछ रोशनी पड़ी भी है और इस रोशनी को देश-दुनिया में फैलाना हम सभी का कर्तव्य भी है। बूंद-बूंद से घड़ा भरता है और बूंद-बूंद के रिसने से घड़ा खाली हो जाता है। भरने के लिए खाली होना होता है लेकिन अपनी पात्रता हर हाल में बनाए रखनी होती है। नवता का दूसरा नाम ही कुंभ है। श्यामपट भरा हो तो उस पर नया नहीं लिखा जा सकता। नया लिखना हो तो श्यामपट पर डस्टर घुमाना पड़ेगा। नया करना है तो अनावश्यक को छोड़ें और आवश्यक का वरण करें। ‘सार-सार को गहि रहे थोथा देई उड़ाय।’ जीवन में संतत्व का संचार करें। स्नेह-सहयोग से दिल आपूर्त करें, करुणा और दया को जीवन का स्थायी भाव बनाएं। सकारात्मकता की निर्झरिणी फूट पड़ेगी। यही इस कुंभ का संदेश भी है।
यह मेला कई मायने में अहम रहा। इस मेले में कई कीर्तिमान बने। ऐसे-ऐसे विलक्षण काम और प्रयोग हुए कि कहिए मत। कोई भी प्रयोग काटने-बराने लायक नहीं रहा। इस मेले ने श्रद्धालुओं की आमद का भी कीर्तिमान बनाया। 24-25 करोड़ श्रद्धालुओं की उपस्थित कम महत्वपूर्ण नहीं होती। मकर संक्रांति के दिन से महाशिवरात्रि के दिन तक प्रयागराज में श्रद्धालुओं का रेला उमड़ता रहा।
प्रयागराज कुंभ अपने समापन के दिन भी एकजुटता का पाठ पढ़ा गया है। वेद के उस मंत्र की याद दिला गया है जिसमें कहा गया है कि साथ-साथ चलो, साथ-साथ बोलो, साथ-साथ करें। ‘संगच्छध्वं संबदध्वं सं वो मनांसि जानताम।’ इस बार का कुंभ इस मायने में भी बेहद अहम रहा कि वह अपनी विचारात्मकता और सकारात्मकता के लिए भी जाना गया। कुंभ से पहले भी यहां कई कुंभों का आयोजन हुआ। उसमें संस्कृति कुंभ, युवा कुंभ, समरसता कुंभ और नारी शक्ति कुंभ महत्वपूर्ण रहे। सांस्कृतिक कार्यक्रमों की गंगा यहां समानांतर बहती रही। साधु-संतों के अखाड़ों में धर्म, ज्ञान और अध्यात्म की त्रिवेणी बहती रही। कुंभ में बड़ी संख्या में नए साधु बने। विदेशी श्रद्धालु भी यहां आकर भारतीय संस्कृति के रंग में रच-बस गए। उन्होंने संन्यास का मार्ग, प्रवज्या का मार्ग अपना लिया। नागा साधुओं की दिनचर्या नजदीक से देखने का आनंद ही अलौकिक था। इस कुंभ में आकाश मार्ग से पुष्प वर्षा तो होती ही रही। इन्द्रदेव ने भी श्रद्धालुओं का स्वागत किया। इससे जाहिर तौर पर ठंड भी बढ़ी। घाट पर भी कुछ फिसलन हुई लेकिन श्रद्धालुओं की आस्था भी खूब परीक्षित हुई। त्याग-तपस्या की आग में तपकर कुंदन बनी। मौसम खराब होने के बाद भी शिविरार्थियों और कल्पवासियों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई। कई अखाड़ों में विदाई समारोह तो वसंत पंचमी को ही हो गया था लेकिन वे शिवरात्रि तक मेला क्षेत्र में बने रहे।
यह कुंभ अपनी आध्यात्मिकता के लिए तो जाना ही गया। अपनी कलात्मकता, साहित्यिकता, दार्शनिकता और चिंतनात्मकता के लिए भी जाना गया। इस कुंभ मेले में देश-विदेश की बड़ी सहभागिता रही। इतना बड़ा धार्मिक समागम योगी आदित्यनाथ सरकार की बड़ी उपलब्धि रही। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का तो एक पैर जैसे प्रयागराज में ही रहा। ऐसे कई अवसर आए जब उन्होंने प्रयागराज में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। योगी कैबिनेट की बैठक और पूरी कैबिनेट का स्नान राजनीतिक हल्कों में भी चर्चा का केंद्र रहा। उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के राज्यपालों ने भी संगम में डुबकी लगाई। कई राज्यों के मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री भी खुद को संगम में डुबकी लगाने से रोक नहीं पाए। कोई भी वीवीआईपी आया हो और उसने मां गंगा की आरती न की हो, लेटे हनुमान जी का आशीर्वाद न लिया हो, अक्षयवट और सरस्वती कूप के र्दान न किए हों, ऐसा हुआ नहीं। एक गीत है कि ‘राम नाम नदिया सुगम बहल जाए ओमें कोइ-कोइ नहाय। ’ लेकिन गंगा-यमुना के पवित्र संगम में जदातर लोगों ने स्नान किया। जो किन्हीं कारणों से नहीं जा पाए, उन्होंने हर क्षण खुद को संगम में गोते लगाते पाया। उनका मन एक तरह से कुंभ में ही लगा और रमा रहा। इस कुंभ में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के कई मानक स्थापित हुए। स्वच्छताकर्मियों के तो खुद प्रधानमंत्री ने पैर पखारे। भारत के राजनीतिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब किसी प्रधानमंत्री ने स्वच्छताकर्मियों के पद प्रच्छालन किए हों। कुछ लोग इसे राजनीतिक नौटंकी भी कह सकते हैं लेकिन इस तरह की नौटंकी करने के लिए भी साहस की जरूरत होती है। सामाजिक समरसता और अस्पृश्यता निवारण का इससे बड़ा उदाहरण और कोई नहीं हो सकता।
इस मेले में धर्म संसद भी हुई और परम धर्म संसद भी। राम मंदिर निर्माण का मुद्दा भी उठा। यह कुंभ संदेशों के नाम रहा। उपदेशों के नाम रहा। ज्ञान, कर्म और वैराग्य यहां अपनी पराकाष्ठा पर रहा। कलाकारों ने भी अपनी कला के माध्यम से न केवल मनोरंजन किया बल्कि लोगों को स्वच्छता अभियान के प्रति भी जागृत किया। कुंभ का हर दिन आयोजनों के नाम रहा। अब हमें देश की एकता, अखंडता, अक्षुण्णता और सांस्कृतिक परंपरा को यूं ही बनाए रखने के लिए यह हमसे विदा हो रहा है। अगले कुंभ में हम फिर मिलेंगे लेकिन प्रयागराज के संदेशों की लौ अपने हृदय में अनवत जलाए रखनी होगी।
मौजूदा समय देश के कल्याण पर चिंतन करने का है। सौभाग्य से कुंभ में इस पर बहुत कुछ रोशनी पड़ी भी है और इस रोशनी को देश-दुनिया में फैलाना हम सभी का कर्तव्य भी है। बूंद-बूंद से घड़ा भरता है और बूंद-बूंद के रिसने से घड़ा खाली हो जाता है। भरने के लिए खाली होना होता है लेकिन अपनी पात्रता हर हाल में बनाए रखनी होती है। नवता का दूसरा नाम ही कुंभ है। श्यामपट भरा हो तो उस पर नया नहीं लिखा जा सकता। नया लिखना हो तो श्यामपट पर डस्टर घुमाना पड़ेगा। नया करना है तो अनावश्यक को छोड़ें और आवश्यक का वरण करें। ‘सार-सार को गहि रहे थोथा देई उड़ाय।’ जीवन में संतत्व का संचार करें। स्नेह-सहयोग से दिल आपूर्त करें, करुणा और दया को जीवन का स्थायी भाव बनाएं। सकारात्मकता की निर्झरिणी फूट पड़ेगी। यही इस कुंभ का संदेश भी है।