जातीय क्षत्रपों के सहारे चुनावी नैय्या पार लगाने की जुगत
जयपुर, 13 अप्रैल (हि.स.)। लोकसभा चुनाव की मतदान के लिए तय तिथियां ज्यों-ज्यों नजदीक आ रही है, त्यों-त्यों भाजपा व कांग्रेस के रणनीतिकार अपने उम्मीदवारों को विजयश्री का वरण करने के लिए नई-नई रणनीति बना रहे हैं। अब चुनाव से पहले भाजपा और कांग्रेस जातीय क्षत्रपों को अपने पाले में करने में जुटी हैं। हर सीट पर जिताऊ उम्मीदवार की तलाश खत्म होने के बाद अब सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लिया जा रहा है। इसमें भाजपा प्रतिद्वंदी दल कांग्रेस से कई कदम आगे निकल चुकी हैं।
भाजपा ने लोकसभा चुनाव से पहले जाट नेता और नागौर की राजनीति में वर्चस्व रखने वाले हनुमान बेनीवाल, गुर्जर नेता किरोड़ीसिंह बैंसला को अपने पाले में किया हैं, वहीं कांग्रेस अब तक केवल ब्राह्मण नेता घनश्याम तिवाड़ी को ही अपने पाले में कर चुकी हैं। यह बात अलग है कि भाजपा के बीकानेर से उम्मीदवार अर्जुनराम मेघवाल के विरोध को लेकर स्थानीय राजनीति में बड़ा दखल रखने वाले राजपूत नेता देवीसिंह भाटी उससे छिटक चुके हैं। छिटकने के बावजूद उन्होंने मेघवाल के खिलाफ बड़ा मोर्चा खोल रखा हैं। इससे पार पाने के लिए भाजपा को यहां बड़ी मेहनत करनी होगी। राजस्थान की राजनीति में जाति हमेशा से ही बड़ा मुद्दा रहा है। राजनीतिक दल भले ही जातियों की राजनीति करने से इनकार करते रहे हो, लेकिन टिकट वितरण से लेकर प्रचार तक में हमेशा जातियों को साधने की कोशिश रहती हैं। राजनीतिक दलों ने पहली रणनीति के तहत हर सीट पर जातिगत आधार को देखते हुए मजबूत प्रत्याशी उतारे हैं। अब उसके बाद दूसरी रणनीति के तहत जातीय क्षत्रपों को साधने पर काम किया जा रहा है। इसी कड़ी में भाजपा ने पिछले दिनों खींवसर विधायक हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से नागौर सीट के लिए गठबंधन किया है। आरएलटीपी ने विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर कब्जा जमाया था। बेनीवाल का जाट समाज में प्रभाव है। गुर्जर आरक्षण आंदोलन के अगुआ कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का गुर्जर समाज में खासा प्रभाव है। प्रदेश की कई सीटों पर गुर्जर वोट बैंक काफी अहम है। मीणा समाज के बड़े नेता डॉ. किरोडीलाल मीणा को भाजपा विधानसभा चुनाव से पहले ही साधकर उनकी घर वापसी करवा चुकी है। भाजपा ने मीणा को राज्यसभा सांसद बनाया है। मीणा बहुल सीटों पर किरोड़ी मीणा की पकड़ काफी मजबूत मानी जाती है। इस कड़ी में भाजपा को एक बड़ा झटका भी लगा है। दिग्गज राजपूत नेता देवी सिंह भाटी ने बीकानेर में टिकट वितरण को लेकर नाराजगी के चलते इस्तीफा देकर पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। दूसरी तरफ कांग्रेस को अपने मिशन 25 को साकार करने में पसीने बहाने पड़ रहे हैं। कांग्रेस ने भाजपा खेमा छोडक़र खुद की भारत वाहिनी पार्टी बनाने वाले वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाड़ी को अपने खेमे में शामिल किया है। तिवाड़ी ब्राह्मण समाज पर अपनी अच्छी पकड़ रखते हैं, लेकिन ब्राह्मण बाहुल्य सीटों पर कांग्रेस तिवाड़ी के नाम को भुना नहीं पाई हैं। विधानसभा चुनाव से पहले बनी तिवाड़ी की पार्टी ने दर्जनों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन वे जीत का वरण नहीं कर पाए।