छत्तीसगढ़ के चावल से होगा कैंसर का इलाज !

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क्या आप सोच सकते हैं कि जिस चावल को हम रोजाना खाते हैं उसकी एक प्रजाति से कैंसर जैसी लाइलाज समझी जाने वाली बीमारी का इलाज भी हो सकता है.

सुनकर चौंक गए ना आप?

लेकिन ये सच है. छत्तीसगढ के चावल से होगा कैंसर का इलाज.  दरअसल रायपुर स्थित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की जेनेटिक एंड प्लांट ब्रीडिंग विभाग ने बस्तर की विलुप्त होती चावल की एक किस्म पर रिसर्च किया है. अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि  इस चावल के सेवन से कैंसर की कोशिकाओं को ख़त्म किया जा सकता है. इसलिए इस चावल को संजीवनी नाम दिया गया है.

संजीवनी चावल का पेटेंट करा लिया गया है और विश्वविद्यालय की ओर से इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों दुनिया के सामने लांच करने की तैयारी हो रही है .

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर दीपक शर्मा और रिसर्च स्कॉलर सलाखा जॉन ने भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के रेडिएशन बायोलॉजी एंड हेल्थ साइंस विभाग के साथ मिलकर एक शोध किया. साल 2016 में धान की एक किस्म की मेडिसिनल प्रॉपर्टी पर यह शोध शुरू किया गया था. अब इसके चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं.

पता चला है कि संजीवनी धान में इम्मुनो बूस्टर के साथ कैंसर सेल को ख़त्म करने के गुण पाए गए हैं. खासकर ब्रैस्ट कैंसर के लिए ये ज्यादा कारगर है.  संजीवनी चावल का भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में चूहों पर भी परीक्षण किया गया जिसके काफी अच्छे परिणाम देखने को मिले. इतना ही नहीं सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टिट्यूट ने भी संजीवनी चावल में कैंसर से लड़ने के गुण पाए.

 अब जनवरी से टाटा मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल में संजीवनी चावल का मेडिसिनल ह्यूमन ट्रायल शुरू करने की तैयारी है. 

अबतक के रिसर्च से पता चला है कि संजीवनी चावल में 213 तरह के बायोकैमिकल पाए जाते हैं. इनमें से सात  तरह के केमिकल कैंसर रोधी माने जाते हैं.

छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है. यहां धान कई सारी वेरायटी पाई जाती है. धान की फसल यहां की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है. अब इसमें एक और आयाम जुड़ने जा रहा है. संजीवनी दुनिया की पहली चावल की किस्म है जिसका मेडिसिनल उपयोग होगा. उम्मीद की जा रही है कि अगले दो से तीन साल में संजीवनी चावल का मेडिसिनल उपयोग होना शुरू हो जाएगा.


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