गंगा पुल के रास्ते अंग से जुड़ा मिथिलांचल और फरकिया, झूम उठे लोग

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बेगूसराय, 11 फरवरी (हि.स.)।बिहार में गंगा नदी पर बेगूसराय और मुंगेर के बीच बने रेल-सह-सड़क पुल (श्रीकृष्ण सिंह सेतु) के सड़क मार्ग का उद्घाटन होते ही मिथिलांचल और अंग क्षेत्र के साथ-साथ फरकिया और सीमांचल में जश्न का माहौल है।

पुल के पहुंच पथ परियोजना का लोकार्पण होते ही लोगों ने कहा कि आजादी के बाद से संजोग गया सपना साकार हो गया। अब विकास की रफ्तार, व्यापार, कारोबार, समृद्धि के नए युग और नए सवेरा का आगाज हो गया है। यह पुल सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, वैवाहिक जुड़ाव के ऐतिहासिक सफर के आगाज का भी साक्षी बन गया है। अब बेगूसराय और खगड़िया का दूध, दही, मछली, मक्का आसानी से कुछ ही मिनटों में अंग क्षेत्र के लोगों को तो भागलपुरी कतरनी, बासमती चुरा, चावल की खुशबू से मिथिलांचल, फरकिया और सीमांचल के हर घर के रसोई में खुशबू देगा।

दक्षिण बिहार, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के लोग कम समय में बिहार के एकलौते रामसर साइट बेगूसराय के काबर झील और जयमंगला गढ़ का दीदार करेंगे। मुंगेर का किला, चंडिका स्थान, ऋषिकुंड, सीताचरण, योगनगरी, सुल्तानगंज, भागलपुर, बांका, मंदारहिल, बासुकीनाथ, देवघर, दुमका, साहेबगंज एवं तारापीठ डायरेक्ट जुड़ जाएगा। मुंगेर के ऐतिहासिक किला एवं मुंगेर योग विश्वविद्यालय में आने वालों की संख्या में वृद्धि होगी।

इस पुल के बन जाने से मुंगेर से खगड़िया के बीच की दूरी एक सौ किलोमीटर एवं मुंगेर से बेगूसराय के बीच की दूरी काफी कम हो गई है। इस पुल के निर्माण से पहले स्थानीय लोगों को उत्तर बिहार में जाने के लिए 70 किलोमीटर दूर मोकामा के राजेन्द्र पुल तथा 75 किलोमीटर दूर भागलपुर के बिक्रमशिला पुल का उपयोग करना पड़ता था। लेकिन अब दक्षिण बिहार एवं पूर्वी उत्तर बिहार का सीधा जुड़ाव होगा। प्रदेश में निवेश को प्रोत्साहन तथा औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिलेगा। कृषि एवं स्थानीय उत्पादों को बड़े बाजारों तक पहुंचाने में सुविधा होगी। समय तथा ईंधन की बचत एवं प्रदूषण में कमी आयेगी। उल्लेखनीय है कि 25 दिसंबर 2002 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने बेगूसराय और मुंगेर के बीच गंगा नदी पर पुल का शिलान्यास किया था।

वाजपेयी जी की सोच थी कि इस रेल सह सड़क पुल के बन जाने से मिथिला, फरकिया और अंग प्रदेश एक दूसरे से जुड़ जाएगें। करोड़ों लोग इससे लाभान्वित होंगे। पुल के निर्माण से इस पिछड़े क्षेत्र का समग्र विकास होगा। शिक्षा, रोजगार और व्यापार में भी आमूलचूल परिवर्तन होगा। 2002 में जिस समय दिल्ली से रिमोट दबाकर इस पुल का शिलान्यास किया गया था, उस समय लागत थी 927 करोड़ और पांच वर्ष यानी 2007 में यह पुल बनकर तैयार हो जाना था। लेकिन शिलान्यास के 14 वर्ष बाद 12 मार्च 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस पुल पर मालगाड़ी चलाकर रेल मार्ग का शुभारंभ किया और ठीक एक महीना बाद 12 अप्रैल 2016 को डीएमयू सेवा के माध्यम से सवारी गाड़ी का परिचालन शुरू किया गया। लेकिन सड़क मार्ग शुरू नहीं हो सका था, इसके बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सम्मिलित प्रयास से पहुंच पथ बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण द्वारा प्रधानमंत्री गतिशक्ति योजना से इसे जोड़कर आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में युद्ध स्तर पर 696 करोड़ की लागत से 14.5 किलोमीटर लंबा पहुंच पथ बनाया गया।


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