क्षेत्रीय विपक्षी दलों में बनती एकजुटता की काट की जुगत में अब भाजपा
नई दिल्ली, 13 जनवरी (हि.स.)। भाजपा के रणनीतिकारों ने राज्यों में बन रही विपक्षी दलों की एकजुटता की काट के लिए अपने सहयोगी दलों से संबंध मधुर करने की कोशिशें तेज कर दी हैं । इसके लिए पहले वाला व्यवहार छोड़कर अटल बिहारी वाजपेयी की तरह सबके साथ सौहार्द बनाने की कोशिश शुरू कर दी गई है। यही वजह है कि आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री व तेलुगुदेशम प्रमुख चन्द्रबाबू नायडू द्वारा भाजपा का साथ छोड़ देने के बाद घबड़ाये भाजपा के शीर्षद्वय ने बिहार में जदयू से झुककर तालमेल भी किया। भाजपा ने 2014 में बिहार में मात्र 02 लोकसभा सीटें जीती जदयू के लिए 17 सीटें छोड़ दी । इसके लिए उसे अपनी जीती हुई 22 सीटों में से 05 छोड़नी पड़ी। लोजपा के परिवारवादी, खानदानवादी रुख के बावजूद रामविलास पासवान के लिए लोकसभा की 6 के अलावा राज्य सभा की भी एक सीट छोड़ दी।
वरिष्ठ पत्रकार डा. हरि देसाई का कहना है कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान विधानसभा चुनावों में हार ने भाजपा शीर्षद्वय को सबक सीखा दिया है । सो बिहार की तरह ही झुककर महाराष्ट्र में भी शिवसेना के साथ गठबंधन बचाये रखने की कोशिश होने लगी है। राज्य में भाजपा के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस से भाजपा के पीयूष गोयल तक इसके लिए रात – दिन लग गये हैं। फिर भी शिवसेना राज्य में शिवसेना , केन्द्र में भाजपा के वाजपेयी के समय वाले गठबंधन को लागू करने की अपनी मांग पर अड़ी है, जिसके कारण भाजपा के आला नेता चिंतित हैं।
पूर्व सांसद हरिकेश बहादुर का कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा के कई सहयोगी दल एक –एक करके अलग हो गये हैं | कई और ने अलग होने की मंशा तक जतानी शुरू कर दी है। अभी तक बिहार में रालोसपा, हम, असम में अगप, जम्मू कश्मीर में पीडीपी, आंध्र प्रदेश में तेदेपा ने भाजपा व राजग का साथ छोड़ दिया है। देश के सबसे बड़े प्रदेश व सबसे अधिक 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी व अपना दल ने आंख दिखानी शुरू कर दी है। झारखंड में आजसू, मेघालय में एनपीपी और महाराष्ट्र में शिव सेना ने अपनी शर्तों पर समझौता बरकरार रखने का दबाव बना दिया है। यदि भाजपा ने इनकी शर्तें नहीं मानी तब ये सभी दल भाजपा से गठबंधन तोड़कर, राजग से अलग होकर चुनाव लड़ सकते हैं। इस तरह 2019 का लोकसभा चुनाव होने के पहले भाजपा के सहयोगी दलों का साथ छोड़ने का सिलसिला उसी तरह शुरू हो गया है जिस तरह 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस के सहयोगियों ने छोड़ा था। इससे चिंतित भाजपानीत केन्द्र सरकार ने क्षेत्रीय दलों को डराने व पुचकारने का काम एक साथ शुरू कर दिया है। यह कि राज्य में गैरभाजपा दलों से गठबंधन किये तो परेशान होना पड़ेगा | भाजपा के साथ रहोगे तो सत्ता में सहभागी होवोगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी तमिलनाडु के दो प्रमुख दलों, द्रमुक व अन्नाद्रमुक सहित अन्य ऐसे सभी दलों को जो वाजपेयी के समय राजग में थे, संदेश दिया है कि उनके लिए राजग में रास्ता खुला हुआ है। उनका यह संदेश मात्र द्रमुक या अन्नाद्रमुक के लिए नहीं बल्कि तेदेपा, बहुजन समाज पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, बीजू जनता दल, जेडीएस, हम, रालोसपा, झामुमो जैसे दलों के लिए भी है। इस बारे में भाजपा सांसद लाल सिंह बड़ोदिया का कहना है कि हर गठबंधन में कुछ न कुछ लगा रहता है । राजग परिवार में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है । जैसे परिवार में सबसे बड़े व्यक्ति को सबका ध्यान रखना पड़ता है ,उसी तरह से भाजपा भी अपने सहयोगी दलों का ध्यान रखती है। वैसे सभी परिवार में कुछ न कुछ तो होता ही रहता है।