क्यों भारत से खार खाता है इमरान का वजीर? : आर.के.सिन्हा
वैसे तो चेहरे-मोहरे से पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी सुसंस्कृत जैसे ही लगते हैं। वे एक विदेश मंत्री हैं, इसलिए उनसे अपेक्षा भी की जाती है कि वे तोल-मोल कर बोलेंगे भी। पर वे हैं कि सड़क छाप अंदाज में आचरण से बाज ही नहीं आते। वे लगातार भारत विरोधी बयानबाजी करते रहते हैं। लगता तो यह है कि उन्होंने अपने देश के विदेश मंत्रालय को भारत के खिलाफ जहर उगलने का केन्द्र बना दिया है।
पाकिस्तान में नवाज शरीफ के प्रधानमंत्रित्व काल में जो काम वहां के सेना प्रमुख राहील शरीफ करते थे, उसे अब इमरान खान की सरकार में कुरैशी करते हैं। इमरान खान सरकार के सत्तासीन होने के बाद उनका एक सूत्री एजेंडा भारत विरोध ही चल रहा है। उन्हें तो भारत के आतंरिक मामलों पर टिप्पणी करने से लेकर कश्मीर के अलगाववादी नेताओं से बात करना ही पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय का काम लगता है।
विगत दिनों कुरैशी के कश्मीर के अलगाववादी नेताओं से फोन पर गुफ्तुगू करने पर तगड़ा बवाल मच चुका है। इसके बाद वे सफाई देते फिर रहे हैं कि “उनका भारत के आंतरिक मसले में हस्तक्षेप का कोई इरादा नहीं है।” अब जरा सोच लीजिए कि एक देश का विदेश मंत्री, कश्मीरी नेताओं से फोन पर बात करने के बाद कहता है कि वो भारत के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं दे रहे हैं। अब उनकी इस सफाई पर कौन यकीन करेगा कि वे भारत के आतंरिक मसलों पर दिलचस्पी नहीं लेते। क्या हुर्रियत नेता, पाकिस्तानी नागरिक हैं जो कुरैशी उनसे बात करते रहते हैं? यह तो सिद्ध हो ही चुका है कि उन्होंने हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक से फोन पर कश्मीर मुद्दे पर बात की थी।
मीरवाइज उमर फारूक से बात करने के बाद उन्होंने हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी से भी बात की। कुरैशी, जो अपने को मुल्तान के एक सूफी खानदान से संबंध रखने का दावा करते हैं, हुर्रियत नेताओं से क्या बात करे रहे थे? क्या सूफी भजन गा रहे थे? उनसे इतनी तो उम्मीद की ही जाती है कि वे सफ़ेद झूठ नहीं बोलेंगे क्योंकि उनका संबंध एक धार्मिक परिवार से है। पर वे इस छोटी सी बात को भी नहीं समझ पा रहे हैं। अब वे यह न भूलें कि कश्मीर सदैव से भारत का अंग है और बना रहने वाला है। इस मसले पर भारत की 125 करोड़ जनता एक है। इस बिन्दु पर देश में कहीं कोई विवाद नहीं है। इसलिए कुरैशी साहब ख्वाबों की दुनिया से निकलकर ज़रा असली दुनिया में आ जाइए! आप समझ जाएं तो बेहतर रहेगा कि कश्मीर पर किसी ने टेढ़ी नजर से देखा तो उसकी दोनों आंखें निकाल ली जाएंगी।
कुरैशी के बिगड़े बोल के कारण ही बीते दिनों नई दिल्ली में पाकिस्तान के राजदूत सुहैल महमूद को तलब किया गया था। भारत के विदेश सचिव विजय गोखले ने कुरैशी की हरकतों पर कहा था कि इससे दोनों देशों के संबंधों को सुधारने में मदद नहीं मिलेगी। आपको याद ही होगा कि पिछले वर्ष के दिसंबर महीने में कुरैशी ने कहा था कि उनके पीएम इमरान खान ने करतारपुर कॉरिडोर मसले पर गुगली फेंककर भारत को फंसा दिया है। इसके चलते ही भारत को दो मंत्रियों को करतारपुर कॉरिडोर में हिस्सा लेने के लिए भेजना पड़ा। कुरैशी के उस बयान पर भी खासा कूटनीतिक विवाद गरमा गया था। एक तरह से उनका गुगली वाला बयान स्पष्ट कर रहा था कि पाकिस्तान को सिखों की भावनाओं की कद्र नहीं है। वो तो करतारपुर कॉरिडोर के मसले पर सियासत कर रहा है।
अब ताजा मामला ब्रिटेन के हाउस ऑफ कामंस का है। वहां पर कश्मीर की स्थिति पर एक सम्मेलन हुआ। उसे कुरैशी जी ने भी संबोधित किया। यहां तक तो सब ठीक है, पर खबर है कि उनके इशारों पर वहां भारतीय मीडिया को आने की अनुमति नहीं दी गई, ताकि वो उसे कवर कर सके। यानी कुरैशी अब छिछोरेपन की सारी सीमाओं को लांघ रहे हैं। वे तो विदेश मंत्री के बनने लायक ही नहीं हैं।
दरअसल राहील शरीफ के रिटायर होने के बाद उम्मीद थी कि पाकिस्तान के नए आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा अब भारत के खिलाफ बयानबाजी करेंगे। वे राग कश्मीर छेड़ते रहेंगे, पर पर वे तो अब कमोबेश चुप ही रहते हैं। जनरल शरीफ बयानवीर थे। वे भारत विरोधी बयानबाजी ही करते थे। राहील शरीफ के पूर्वज राजपूत थे। वे अपने को बड़े फख्र के साथ राजपूत खानदान का वीर बताते थे। इस तरह से वे खुलेआम मानते थे कि उनके पुरखे हिन्दू ही थे। इसके बावजूद वे घनघोर भारत विरोधी थे। उनके नाम के साथ “शरीफ” आना संयोग मात्र ही था।
तो क्या माना जाए कि इमरान खान ने राहील शरीफ की जिम्मेदारी अब कुरैशी को सौंपी हुई है। कम से कम संकेत तो यही हैं। फिलहाल पाकिस्तान में कश्मीर के मसले को कुरैशी ही पूरे दम-ख़म से उठाते हैं। अब ये समझ नहीं आता कि वे कश्मीर पर भारत से क्या उम्मीद करते हैं? क्या उन्हें पता है कि भारत में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को भी अपने साथ मिलाने को लेकर एक राय है। इस बारे में संसद के दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया हुआ है।
क्रिकेट से सिय़ासत की पिच पर नाम कमाने वाले इमऱान खान के वजीरे आजम बनने के बाद लग रहा था कि पाकिस्तान भी अब एक आधुनिक देश बनेगा। वे भी नया पाकिस्तान बनाने की बातें कर रहे थे। पर इमऱान सरकार हर मसले पर कठमुल्लों के आगे झुक रही है। वहां पर धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर लगातार प्रहार हो रहे हैं। उनका विदेश मंत्रालय अपने देश में विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने की बजाय कश्मीर जैसे घिसे-पिटे मसलों को उठा रहा है।
अपने को सारी दुनिया के मुसलमानों का संरक्षक कहने वाला पाकिस्तान चीन में मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों पर मातमवाली चुप्पी साधे हुए है। चीन अपने मुस्लिम बहुल शिनजियांग प्रांत में बसे मुसलमानों पर खुल्लम-खुल्ला जुल्मों-सितम ढहा रहा है। पर मजाल है कि पाकिस्तान ने एक बार भी विरोध जताया हो। वहां पर मुसलमानों पर जुल्म वहां की शासक कम्युनिस्ट पार्टी के इशारों पर हो रहा है। पर पाकिस्तान के टीवी चैनल सोए हुए हैं। वहां कहीं कोई प्रतिक्रिया सुनाई नहीं दे रही है। शाह महमूद कुरैशी भी चीन के खिलाफ बोलने की हिमाकत नहीं कर रहे हैं। शिनजियांग प्रांत के मुसलमानों को री-एजुकेशन कैंपों में ले जाकर कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा से रू-ब-रू करवाया जा रहा है। यानी इस्लाम छोड़ने पर मजबूर किया जा रहा है। इन शिविरों में दस लाख से अधिक मुसलमान हैं। इन शिविरों में इनसे अपने धर्म इस्लाम की खुलेआम निंदा के लिए कहा जाता है। इन्हें डराया-धमकाया जाता है। यह सब नहीं करने पर यातनाएं दी जाती हैं। ये सब कुछ इसलिए हो रहा है ताकि चीनी मुसलमान कम्युनिस्ट विचारधारा को अपना लें। वे इस्लाम की मूल शिक्षा से सदा के लिए दूर हो जाएं। पर इमरान खान या कुरैशी को चीनी मुसलामानों से क्या सरोकार है? उन्हें तो कश्मीर पर ही बकवास जारी रखनी है।