क्या पीओके को मुक्त कराने का सही समय आ गया है

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पाकिस्तान के जन्म जितना ही पुराना है कश्मीर विवाद। इसे लेकर भारत और पाक की सेनाएं जितनी बार आमने-सामने हुई, भारतीय सेना ने पाकिस्तानी मंसूबों पर हर बार पानी फेर दिया। बार-बार मुंह की खाने के बावजूद पाकिस्तान नए सिरे से अपनी हरकतों को अंजाम देने में जुट जाता है। ताजा घटनाक्रम को देखते हुए यह सवाल अहम हो गया है कि पाक अधिकृत कश्मीर यानी पीओके की मुक्ति का सही समय यही है?

भारत की स्वतंत्रता की सुगबुगाहट और अलग राष्ट्र की अपनी मांग के बीच मोहम्मद अली जिन्ना की नजर कश्मीर पर भी थी। पाकिस्तान में कश्मीर के विलय का सपना पाले जिन्ना के लिए मुश्किल ये थी कि जम्मू-कश्मीर रियासत के महाराजा हरि सिंह कश्मीर को स्वतंत्र रखकर उसे पूरब का स्विट्जरलैंड बनाने की चाहत रखते थे। देश का विभाजन हुआ, पाकिस्तान का जन्म हुआ लेकिन जिन्ना ने कश्मीर को हासिल करने के लिए हर पैंतरा आजमाने की ठान ली। महाराजा हरि सिंह से कश्मीर के भारत में विलय की बातचीत चल रही थी, इसपर वे कोई निर्णय लेते इससे पहले ही अक्टूबर 1947 में जिन्ना ने जम्मू-कश्मीर पर गुप्त आक्रमण कर दिया। लड़ने वाले कबाइली और कबालियों के वेश में पाकिस्तानी सेना के अफसर व पूर्व सैनिक थे। इसे ऑपरेशन गुलमर्ग का नाम दिया गया। पहला हमला दोमल और मुजफ्फराबाद पर हुआ। इसके बाद गिलगित, स्कार्दू, हाजीपुर दर्रा, पुंछ, राजौरी, झांझरपुर, छम्ब और पीर पंजाल की पहाड़ियों पर हमला हुआ। हमलावरों का इरादा इन रास्तों के जरिए श्रीनगर पर कब्जा जमाने का था।

संकट की इस घड़ी में महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी और बिना शर्त भारत में विलय की पेशकश की। 26 अक्टूबर 1947 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर होने के साथ ही जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया। भारतीय सेना जम्मू-कश्मीर पहुंचती, उससे पहले ही घुसपैठिए कबाइली जम्मू-कश्मीर के एक बड़े भूभाग पर कब्जा जमा चुके थे। भारतीय सेना ने बहादुरी के साथ मुकाबला करते हुए नवंबर महीने तक कबाइलियों को घाटी से लगभग खदेड़ दिया। घुसपैठिए मीरपुर, कोटली व पुंछ तक सीमित रह गए तभी पाकिस्तान सेना प्रत्यक्ष रूप से ऊरी, टिटवाल और कश्मीर के अन्य सेक्टरों में युद्ध के लिए पहुंच गई। कारगिल, जोजिला दर्रे पर भारतीय टैंकों ने पाकिस्तानी सेना पर जमकर कहर बरपाया। 9 नवंबर को बारामूला और उसके चार दिनों बाद ऊरी को हमलावरों से मुक्त करा लिया गया।

पूरा कश्मीर खाली कराए जाने से पहले ही लॉर्ड माउंटबेटन से प्रभावित जवाहरलाल नेहरू 30 दिसंबर 1947 को मामला संयुक्त राष्ट्र में ले गए। विदेश सेवा के एक अधिकारी चंद्रशेखर दास गुप्ता जो 1993-1996 तक चीन में भारत के राजदूत रहे, अपनी पुस्तक `वॉर एंड डिप्लोमेसी इन कश्मीर 1947-48′ में लिखते हैं कि उस समय भारत में कैबिनेट की डिफेंस कमेटी की बैठक माउंटबेटन ले रहे थे न कि प्रधानमंत्री नेहरू। 13 अगस्त 1948 में संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव पारित किया गया और 1 जनवरी 1949 को युद्धविराम की घोषणा हो गई। जो सेनाएं जिस क्षेत्र में थीं, उसे युद्धविराम रेखा मान लिया गया। तबतक भारतीय सेना ने 8,42,583 वर्ग किमी क्षेत्र पर दोबारा कब्जा कर लिया था लेकिन कुछ भाग पाकिस्तान के कब्जे में रह गया, जिसे आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी पीओके कहा जाता है। उस समय जो सीजफायर लाइन थी वही बाद में लाइन ऑफ कंट्रोल बन गई।

13 अगस्त 1948 को संयुक्त राष्ट्र में पारित प्रस्ताव में कहा गया था कि पाकिस्तान कश्मीर के कब्जा किए गए हिस्सों से अपनी सेनाएं हटाएगा, यहां से विस्थापित हुए लोगों को वापस उनके स्थानों पर बसाया जाएगा। उसके बाद लोगों की राय जानने के लिए जनमत संग्रह कराया जाएगा। परंतु पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को धता बताते हुए पीओके से अपनी सेना नहीं हटाई। यहां तक कि कबाइलियों को वहां बसाकर उस क्षेत्र की पूरी डेमोग्राफी बदल दी। साथ ही वहां आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर स्थापित कर दिए।

आज वह भारत की जमीन को भारत के ही विरुद्ध आतंकी पैदा करने और आतंकवाद फैलाने के लिए इस्तेमाल कर रहा है। आज वहां 55 से अधिक आतंकी प्रशिक्षण शिविर चल रहे हैं। ऊरी हमले के बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जैश-ए-मोहम्मद सहित कुछ दूसरे आतंकी शिविर पीओके के अंदरूनी हिस्से में शिफ्ट हो गए लेकिन अब वे फिर से एलओसी के पास आ गए हैं। सीमा से लगते हुए कई लॉन्चिंग पैड भी हैं जहां से आतंकी घुसपैठ कर भारत में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देते हैं। 2014 के बाद जिस तरह से सीमा पर चौकसी बढ़ी और सुरक्षा बलों को घुसपैठियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने की खुली छूट मिली है उससे घुसपैठ के मामलों में कमी आई है। ऐसे में आतंकी सरगनाओं ने जिहाद के नाम पर कश्मीरी युवाओं को बहकाकर उन्हें आतंकी गतिविधियों के लिए तैयार करना शुरू कर दिया। पुलवामा में सुरक्षाबलों पर हमला करने वाला आदिल अहमद डार घाटी का ही युवक था जो दो साल पहले ही जैश-ए-मुहम्मद के संपर्क में आया था।प्रत्यक्ष युद्ध में चार बार मुंह की खाने के बाद पाकिस्तान अब भारत के खिलाफ अप्रत्यक्ष युद्ध का सहारा ले रहा है।

ऐसे में सवाल है कि क्या भारत को अब पीओके की मुक्ति का प्रयास तेज कर देना चाहिए? 22 फरवरी 1994 में संसद के दोनों सदनों ने एक प्रस्ताव पारित कर पीओके को देश का अभिन्न हिस्सा बताते हुए उसके भारत में विलय का संकल्प लिया था और पीओके में चल रहे आतंकी शिविरों को लेकर चिंता जताई थी। प्रस्ताव में पाकिस्तान से पीओके खाली करने की भी मांग की गई थी। 1994 के बाद पहली बार किसी सरकार ने पीओके की सुध ली है और सर्जिकल व एयर स्ट्राइक के जरिए वहां चल रहे आतंकी शिविरों को नष्ट किया है। इसलिए यही उचित समय है जब सरकार को पीओके को अपने कब्जे में लेने की कोशिशें तेज कर देनी चाहिए।


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