कीर्ति आजाद के लिए आसान नहीं है धनबाद से दिल्ली की राह

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रांची, 18 अप्रैल (हि.स.)। कार्यक्षेत्र नहीं होने के बावजूद झारखंड से देश के कई चर्चित चेहरों ने यहां से अपनी चुनावी किस्मत आजमाई और मतदाताओं ने उन्हें जीत का इनाम भी दिया। इन चेहरों में मुंबई के मेयर व ब्राजील में उच्चायुक्त रह चुके मीनू मसानी, ओबेरॉय होटल समूह के संस्थापक मोहन सिंह ओबेरॉय और फिल्म स्टार नीतीश भारद्वाज शामिल हैं। दूसरा तथ्य यह भी है कि कई चर्चित चेहरों को यहां से हार का मुंह भी देखना पड़ा है। जिसमें प्रमुख रूप से पूर्व केंद्रीय मंत्री केके तिवारी और फिल्म निर्माता व निर्देशक इकबाल दुर्रानी का नाम शामिल है। ऐसे में यह चर्चा आम है कि एक पूर्व क्रिकेटर और तेजतर्रार नेता की पहचान रखनेवाले कीर्ति आजाद धनबाद की सीट पर जीत दर्ज करा पाएंगे या नहीं।
इसबार धनबाद संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। कपिलदेव के नेतृत्व वाली 1983 की विश्वकप विजेता क्रिकेट टीम के सदस्य रहे कीर्ति आजाद एक राजनीतिक परिवार से आते हैं। उनके पिता भागवत झा आजाद बिहार के मुख्यमंत्री थे। वैसे तो आजाद मूल रूप से गोड्डा के निवासी हैं लेकिन धनबाद लोकसभा क्षेत्र से वह ठीक से परिचित नहीं हैं। भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए कीर्ति आजाद की संगठन पर भी अभी मजबूत पकड़ नहीं है। ऐसे में कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं से समन्वय बनाने में उन्हें दिक्कत हो सकती है। आजाद को कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी से भी दो-चार होना पड़ सकता है। धनबाद सीट पर कांग्रेस के सम्भावित उम्मीदवार ददई दुबे थे लेकिन अंतिम क्षणों में उनका टिकट कट गया और यह सीट आजाद को दे दी गयी। इस कारण ददई दुबे खुद तो सामने नहीं आ रहे हैं लेकिन उनके समर्थक पहले दिन से आजाद का विरोध कर रहे हैं। आजाद के धनबाद आगमन पर उन्हे काले झंडे भी दिखाये गये थे।
आजाद बिहार के दरभंगा से सांसद हैं। 1999, 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा के टिकट पर जीत हासिल की। क्रिकेट से राजनीति में आने के बाद पहली बार वह 1993 में दिल्ली से विधायक भी बने थे। वह हाल ही में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं और धनबाद से चुनाव लड़ रहे हैं। धनबाद में आजाद का मुकाबला भाजपा के पीएन सिंह से होगा। पीएन सिंह 2014 के लोकसभा चुनाव में दो लाख 92 हजार 954 मतों से रिकार्ड जीत हासिल कर दूसरी बार संसद में पहुंचे थे। उस चुनाव में पीएन सिंह को पांच लाख 43 हजार 951 मत प्राप्त हुए थे, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के अजय कुमार दूबे को दो लाख 50 हजार 537 वोट मिले थे।
धनबाद संसदीय क्षेत्र का चुनावी इतिहास उथल-पुथल का रहा है। यहां के मतदाताओं की पसंद समय-समय पर बदलती रही है। आजादी के बाद कई चुनाव तक यहां कांग्रेस का वर्चस्व रहा है। 1977 के कांग्रेस विरोधी लहर के बाद यहां वामपंथी मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) का दबदबा रहा। मासस के केके राय यहां से 1977, 1980 और 1989 में सांसद चुने गये। इस बीच 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति लहर में यहां से कांग्रेस के शंकर दयाल सिंह चुनाव जीते थे। उसके बाद से धनबाद में भाजपा का जलवा रहा है। 1991, 1996 और 1999 में यहां से भाजपा की रीता वर्मा ने लगातार चार बार जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के चंद्रशेखर दूबे उर्फ ददई दूबे ने 2004 में भाजपा से यह सीट छीनी थी। लेकिन 2009 में पीएन सिंह ने इस सीट पर फिर से भाजपा को काबिज करा दिया। तब से यहां भाजपा का कब्जा बरकरार है।
इन सबसे के बीच कीर्ति आजाद के लिए कुछ सकारात्मक पक्ष भी है। गोड्डा के रहनेवाले कीर्ति आजाद की राजनीति के अलावा क्रिकेट खिलाड़ी के रूप में राष्ट्रीय पहचान है। उनके साथ अच्छा-खासा राजनीतिक तजुर्बा भी है। उनके पिता भागवत झा आजाद ने धनबाद में कोल माफिया के खिलाफ अभियान चलाया था। कांग्रेस के किसी गुट विशेष का नहीं होने का लाभ उन्हें मिल सकता है। धनबाद के लिए नया चेहरा होने के कारण वह एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर से भी दूर हैं।
झारखंड ने कर्मक्षेत्र नहीं होने के बावजूद अलग-अलग दौर में कई ऐसे उम्मीदवारों को जिताकर दिल्ली भेजा है। मीनू मसानी ने 1957 में हुए लोकसभा के दूसरे चुनाव में झारखंड पार्टी के उम्मीदवार के रूप में रांची से जीत हासिल की थी। उस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के इब्राहिम अंसारी को हराया था। ओबेरॉय होटल के मालिक मोहन सिंह ओबेरॉय 1968 में हजारीबाग लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव में कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल कर संसद पहुंचे थे। इसके पूर्व 1962 के आम चुनाव में वह गोड्डा से लड़े थे लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। उसी तरह 90 के दशक के लोकप्रिय टीवी सीरियल महाभारत में श्रीकृष्ण की भूमिका निभाने वाले नीतीश भारद्वाज 1996 में भाजपा के टिकट पर जमशेदपुर लोकसभा सीट पर जीत हासिल कर सांसद बने थे। उस चुनाव में भारद्वाज ने जनता दल के उम्मीदवार इंदर सिंह नामधारी को हराया था।
हालांकि कुछ उम्मीदवारों को झारखंड की सीटों पर मायूसी भी हाथ लगी। 1999 के चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री केके तिवारी बिहार के बक्सर से आकर रांची से चुनाव लड़ा था और भाजपा के रामटहल चौधरी से हार गये थे। 1999 के इसी चुनाव में फिल्म निर्माता इकबाल दुर्रानी बसपा के टिकट पर गोड्डा से चुनाव लड़े थे लेकिन उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा था। उस चुनाव में भाजपा के जगदंबी प्रसाद यादव जीते थे।


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