किसको परेशान करेगा सपा-बसपा का गठबंधन

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नई दिल्ली, 12 जनवरी (हि.स.)। लखनऊ में आज शनिवार को 12 बजे होने वाला सपा- बसपा का महागठबंधन किसका 12 बजाएगा, यह तो मई 2019 में लोकसभा चुनाव परिणाम आने पर पता चलेगा। लेकिन अभी से इसकी धमक इतनी है कि बहुत से महाबलशालियों की धड़कन बढ़ गई है। इसकी तोड़ के लिए तरह-तरह की तरकीबें निकाली जानें लगी हैं| यह अलग बात है कि कोई कारगर साबित नहीं हो रही हैं। इसकी वजह क्या है, क्यों नहीं कारगर साबित हो पा रही हैं? इस सवाल पर उ.प्र. के पूर्व मंत्री सुरेन्द्र का कहना है,“ वजह है बहुजन समाज पार्टी (बसपा) व समाजवादी पार्टी (सपा) का विशाल वोट बैंक। जो सपा व बसपा के गठबंधन होते ही एकजुट होकर बहुत बड़ी ताकत बन जाएंगे। यदि इस गठबंधन का विस्तार कांग्रेस व रालोद तक हो जाए तब तो यह केमिस्ट्री या समीकरण उ.प्र. में किसी भी अवरोध को तोड़ते हुए लोकसभा की 80 सीटों में से 75 सीटों तक पर जीत हासिल कर सकता है। इसके लिए चाहे तो आप 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में उक्त सभी दलों को मिले मतों को देख लें। उन्हें जोड़ दें, तो जो जोड़ बनता है वह राज्य में सबसे अधिक सीट जीतने वाली महाबलशाली पार्टी को मिले वोट से अधिक हो रहा है।” सुरेन्द्र का कहना है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में उ.प्र. में भाजपा को 42.3 प्रतिशत वोट और 71 सीटें , सपा को 22.2 प्रतिशत वोट और 05 सीटें,बसपा को 19.6 प्रतिशत वोट और एक भी सीट नहीं, कांग्रेस को 07.5 प्रतिशत वोट और 02 सीटें मिले थे। सपा को मिले 22.2 प्रतिशत वोट,बसपा को मिले 19.6 प्रतिशत वोट व कांग्रेस को मिले 07.5 प्रतिशत वोट का जोड़ हो जाता है 49.3 प्रतिशत होता है, जो कि भाजपा को मिले मतों से 49.3 – 42.3 = 07 प्रतिशत अधिक हो जाता है। यदि इन तीनों दलों का गठबंधन हो गया तब तो 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य में भाजपा को सीटों के लाले पड़ जाएंगे। यदि इसमें से कांग्रेस को मिले 07.5 प्रतिशत मतों को घटा भी दें तब भी सपा व बसपा को मिले मतों का जोड़ 41.8 प्रतिशत होता है। यदि केवल सपा व बसपा ही मिलकर चुनाव लड़ते हैं, तो दोनों के मतदाताओं की एकजुटता और फ्लोटिंग मत इनकी तरफ आने के चलते इनको मिलने वाले वोट कुछ प्रतिशत और बढ़ जाएंगे। इसके कारण भाजपा राज्य में 71 से 22 से 26 पर सिमट सकती है। यही वजह है कि महाबलशाली पार्टी व उसके हुक्मरान इस गठबंधन की धमक से परेशान हो गये हैं और इसे परवान नहीं चढ़ने देने, मजबूत व प्रभावी नहीं होने देने के लिए सपा व बसपा के मालिकों के पीछे सीबीआई, आयकर से लगायत प्रवर्तन निदेशालय तक को लगा दिया गया है।
इस बारे में उ.प्र. के वरिष्ठ पत्रकार नवेन्दु का कहना है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश व बसपा अध्यक्ष मायावती तथा इन दोनों के परिजनों को घेरने के लिए एक महिला आईएएस अफसर सहित 11 लोगों के 14 परिसरों, कार्यालयों पर सीबीआई का छापा पड़ा। इसका खुलासा सत्ताधारी नेताओं व सीबीआई के बयान से हो गया, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री व सपा अध्यक्ष अखिलेश से भी जल्दी ही पूछताछ किये जाने की बात कही गई। इसके बाद प्रवर्तन निदेशालय ने 11 जनवरी 2019 को एक पूर्व विधायक के यहां छापा मारा और उसके मार्फत अखिलेश व मायावती को लपेटने की संभावना जताई जाने लगी। इसी वजह से 11 जनवरी को दोपहर बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश व बसपा महासचिव सतीश चन्द्र मिश्रा के हस्ताक्षर से अगले दिन 12 जनवरी 2019 को दिन के 12 बजे गठबंधन के बारे में संयुक्त संवाददाता सम्मेलन करने की प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई।
पत्रकार नवेन्दु का कहना है कि सपा व बसपा नेताओं को सूचना मिल गई थी कि उनसे एक-दो दिन में सीबीआई व ईडी पूछताछ कर सकती है, गिरफ्तारी भी हो सकती है। यह हो इसके पहले ही गठबंधन के बारे में बताने के लिए संवाददाता सम्मेलन करने की रणनीति बनी, ताकि यदि अखिलेश, मायावती या उनके परिजनों की गिरफ्तारी भी हो जाती है, तो दोनों ही दलों के कार्यकर्ता एकजुट होकर इसका विरोध कर सकें, चुनाव में एकजुट रह सकें। उनको यह पता चल सके कि दोनों ही दल मिलकर अगला चुनाव लड़ने वाले हैं। सो कार्यकर्ता किसी के बहकावे में नहीं आएं, डराने से नहीं डरें। इस तरह उ.प्र. अब लोकसभा चुनाव का कुरूक्षेत्र बनता जा रहा है। इसकी धमक दो दिन से दिल्ली के रामलीला मैदान में भी सुनाई दे रही है।
इस बारे में सपा सांसद रवि वर्मा का कहना है कि सपा अध्यक्ष व बसपा अध्यक्ष जो भी कर रहे हैं, राज्य व पार्टी के हक में कर रहे हैं। सबको पता है कि लोकसभा चुनाव जब सिर पर है तो सीबीआई, आयकर, ईडी के छापे क्यों मरवाये जाने लगे हैं। इस पर एक भाजपा सांसद का कहना है, अपने बचाव में बसपा व सपा नेता चाहे जो करें, कहें, लेकिन वे बचने वाले नहीं हैं।


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