एशिया-प्रशांत का एक बड़ा तबका बेहतर जिंदगी से महरूम : यूएनएस्केप रिपोर्ट
नई दिल्ली, 04 अप्रैल (हि.स.)। तेजी से होती आर्थिक वृद्धि के बावजूद बहुत से लोग पीछे छूट रहे हैं, जिनके पास एक बेहतर जिंदगी जीने का अवसर तक नहीं है। इसके अलावा पर्यावरण को हो रहा नुकसान घातक स्तर तक पहुंच रहा है, जिसका सीधा असर हमारे सर्वांगीण विकास पर पड़ रहा है। ये बातें संयुक्त राष्ट्र अवर महासचिव और यूएनएस्केप कार्यकारी सचिव अरमिडा सालसिआह अलिसजाहबाना ने गुरुवार को दिल्ली में एशिया-प्रशांत के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग (यूएनएस्केप) की वार्षिक रिपोर्ट, ‘सर्वे 2019: एम्बीशन्स बियांड ग्रोथ’ जारी करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि हमें विकास के अपने मॉडल के बारे में एक बार फिर सोचना होगा। 15 खरब अमेरिकी डॉलर यानी प्रति व्यक्ति प्रति दिन एक डॉलर के अतिरिक्त वार्षिक निवेश से देशों के लिए 2030 तक सतत् विकास लक्ष्य हासिल कर पाना संभव होगा। यूएन-एस्केप ने 2018 में एशिया प्रशांत के विकासशील देशों के संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5 प्रतिशत के बराबर निवेश का प्रस्ताव रखा है। जिसमें 669 अरब डॉलर मूल मानव अधिकारों के प्रति समर्थन और मानवीय क्षमताओं के विकास हेतु, 590 अरब डॉलर सबके लिए स्वच्छ ऊर्जा जुटाने और प्रकृति के साथ तालमेल से जीने हेतु, 196 अरब डॉलर परिवहन, सूचना व संचार टेक्नॉलॉजी (आईसीटी) और जल तथा स्वच्छता तक पहुंच बढ़ाने हेतु रखे गए। रिपोर्ट में व्यक्ति और पृथ्वी को प्राथमिकता देने पर जोर दिया गया।
रिपोर्ट में देखा गया है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक परिदृश्य कुल मिलाकर स्थिर है और मुद्रास्फीति का स्तर अपेक्षाकृत नीचा है। यूएन-एस्केप के दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम एशिया कार्यालय निदेशक नागेश कुमार ने नई दिल्ली में सर्वे- 2019 रिपोर्ट मीडिया के सामने रखते हुए कहा कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भारत और बांग्लादेश के नेतृत्व में, 7 प्रतिशत की ज़बर्दस्त आर्थिक वृद्धि दर के साथ दक्षिण एशिया, सबसे तेज़ी से आगे बढ़ते उपक्षेत्र के रूप में उभरा है। वैश्विक माहौल में बढ़ती अनिश्चितता और व्यापार तनावों में वृद्धि के साथ-साथ अनेक देशों में आगामी चुनावों के कारण बढ़ती राजनीतिक अनिश्चितता की वजह से नीतिगत दिशा और अति-आवश्यक ढाँचागत सुधारों की गति तेज़ करने की क्षमता सीमित कर दी है।
उन्होंने कहा कि जनांकिकीय संक्रमण के कारण दक्षिण एशिया में आने वाले कई वर्षों तक कामकाजी आयु की आबादी बढ़ती रहेगी, जिससे आबादी में युवाओं की संख्या बढ़ेगी। इसे देखते हुए श्रम शक्ति में शामिल होती आबादी के लिए पर्याप्त संख्या में रोज़गार की व्यवस्था करनी होगी ताकि लोगों को कम कुशल, कम आय वाले और कम मूल्य संवर्द्धित कार्यों के जाल में फंसने से बचाया जा सके। इस उपक्षेत्र में अधिक व्यापार एकीकरण और नए अफगानिस्तान वैमानिक गलियारे तथा बिमस्टेक बिजली ग्रिड जैसे ऊर्जा एवं परिवहन सम्पर्कों में अधिक निवेश की आवश्यकता है। इसके अलावा उपक्षेत्र में मानव पूँजी, कौशल विकास और सामाजिक बुनियादी सुविधाओं में निवेश बढ़ाना होगा तथा टिकाऊ औद्योगिकीकरण के ज़रिए उत्पादक क्षमताएं विकसित करनी होंगी ताकि जनांकिकीय लाभ का पूरा फायदा उठाया जा सके।