एबीवीपी ने लोकसभा में पारित नागरिकता संशोधन विधेयक-2016 का किया स्वागत
नई दिल्ली, 13 जनवरी (हि.स.)। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्(एबीवीपी) ने पड़ोसी देशों के पीड़ित अल्पसंख्यक शरणार्थियों की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए लोकसभा में पारित नागरिकता संशोधन विधेयक-2016 का स्वागत किया है। परिषद का कहना है कि देश की आजादी के बाद से ही बुनियादी मानवाधिकारों के लिए दशकों तक इन प्रताड़ित शरणार्थियों को जूझना पड़ा है।
एबीवीपी के राष्ट्रीय महामंत्री आशीष चौहान ने रविवार को कहा कि हम इस विधेयक का हार्दिक स्वागत करते हैं। पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों को ध्यान में रखते हुए, राज्यसभा में इस विधेयक को शीघ्र ही पारित किया जाना चाहिए ताकि इस विधेयक को लागू करने के रास्ते खुले सकें। उन्होंने कहा कि एबीवीपी हमेशा से पूर्वोत्तर के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है तथा पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक संरक्षण के लिए हमेशा कार्यरत रहेगी।
आशीष चौहान ने कहा कि परिषद् देशवासियों से आग्रह करती है कि कुछ लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली विभाजनकारी रणनीति के शिकार न हों और शांति बनाए रखने में अपनी भूमिका तय करें। राजनीतिक दलों को भी अपनी क्षुद्र वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्र के बारे में सोचना चाहिए। चौहान ने कहा कि एबीवीपी पूर्वोत्तर राज्यों में अपना आधार खो चुके असामाजिक तत्वों द्वारा जनभावनाओं को नजरअंदाज करते हुए नागरिकता संशोधन विधेयक और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर(एनआरसी) के मुद्दे का नाजायज ढंग से इस्तेमाल करते हुए अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए किए जा रहे झूठे प्रचार की निंदा करती है।
चौहान ने कहा कि लम्बे समय से प्रतीक्षित यह विधेयक अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भारत आए सिख, जैन, बौद्ध, हिंदू, पारसी और ईसाई शरणार्थियों, जो लंबे समय से पूरे भारत में विभिन्न स्थानों पर रह रहे हैं, को भारतीय नागरिकों के भांति ही समानता देगा तथा न्याय के लिए सक्षम करेगा। इन अल्पसंख्यकों का पांथिक उत्पीड़न करते हुए विधिवत राज्य द्वारा संरक्षित कट्टरपंथियों ने उपरोक्त देशों में इन पर अत्याचार कर इनकी जनसंख्या का स्तर बड़ी मात्रा में घटा दिया है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय गृहमंत्री ने असम और पूर्वोत्तर क्षेत्र के अन्य राज्यों में लोगों की चिंताओं को सदन पटल पर संबोधित करते हुए यह स्पष्ट किया है कि भारत में आने वाले शरणार्थी केवल किसी एक विशेष राज्य के नहीं बल्कि पूरे देश की जिम्मेदारी है।