आर के सिंह को मिल रही कड़ी टक्कर,उलट फेर का इतिहास दुहरा सकता है आरा

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आरा,06 अप्रैल(हि. स.)।आरा संसदीय चुनाव में यहां के मतदाताओं ने आजादी के बाद लगातार पांच बार जहां एक ही उम्मीदवार को संसद पहुंचाया मगर 1980 के बाद मतदाताओं के बदले मूड ने प्रत्याशियों को हराने- जिताने में अपनी भूमिका निभानी शुरू कर दी।तब से लेकर अब तक कोई भी सांसद लगातार जीत का स्वाद नही चख सका।
1980 के बाद आरा संसदीय सीट पर हर बार सांसदों को बदलने का सिलसिला जारी है।
कहते हैं कि तवा पर की रोटी अगर पलटी नहीं जाय तो वह जल जाती है।आरा की जनता ने शायद इससे सीख ले ली है और वे सांसदों को बदलने के लिए वोट डाल देते हैं।
देश मे हुए पहले आम चुनाव से लेकर 1971 तक आरा संसदीय क्षेत्र से लगातार बलिराम भगत चुनाव जीतते रहे।इस बीच उनका कोई प्रतिद्वंद्वी उन्हें हरा नहीं सका।
वर्ष 1977 और 1980 में आरा से दो बार चंद्रदेव प्रसाद वर्मा ने जीत दर्ज की।चंद्रदेव प्रसाद वर्मा ने क्रमशः भारतीय लोक दल और जनता पार्टी सोशलिस्ट के टिकट पर जीत हासिल की।इसके बाद से वर्ष 2014 के पिछले लोकसभा चुनाव तक हर बार सांसद बदलते रहे।
पिछले चुनाव में राजनीति से दूर- दूर तक नाता नहीं रखने वाले देश के पूर्व गृह सचिव आर के सिंह ने भाजपा का टिकट लेकर चुनाव लड़ा और जीत गए।इसके पूर्व वर्ष 2004 में राजद की कांति सिंह तो वर्ष 2009 में जदयू की मीना सिंह ने आरा सीट पर जीत दर्ज की थी।
आरा के लिए आश्चर्य ही कहा जाएगा कि पांच साल के लिए चुने अपने सांसद को मतदाताओं ने तीन साल बाद हुए चुनाव में ही बदल दिया।ऐसा एक बार नहीं बल्कि तीन तीन बार हुआ।
वर्ष 1996 से 1999 के बीच लगातार तीन लोकसभा चुनाव हुए और 1996 में जनतादल के चन्द्र देव प्रसाद वर्मा,1998 में समता पार्टी के हरिद्वार सिंह और 1999 में राजद के राम प्रसाद सिंह चुनाव जीते।
मध्यावधि चुनाव के दौरान भी आरा के लोगों ने पांच साल के लिए चुने अपने सांसद को समय से पहले ही बाहर का रास्ता दिखा दिया।
आरा सीट पर कांग्रेस का 1984 तक परचम लहरता रहा जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर में बलिराम भगत चुनाव जीत गए थे।
कांग्रेस के लिए आरा में यह आखरी जीत रही।इसके बाद कांग्रेस चुनाव जीतना तो दूर लड़ना भी भूल गई।कांग्रेस ने अपने दम खम पर चुनाव लड़ा भी तो अस्तित्व बचाने की लड़ाई में भी वह पिछड़ गई।
वर्ष 1989 में आइपीएफ के रामेश्वर प्रसाद ने आरा सीट जीती तो वर्ष 1991 में शेर ए बिहार कहे जाने वाले रामलखन सिंह यादव और कोयलांचल के माफिया सूरज देव सिंह आरा सीट पर टकराये थे।हालांकि चुनाव के बाद और मतगणना के पूर्व सूरज देव सिंह की हार्ट अटैक से मौत हो गई और गिनती के बाद रामलखन सिंह यादव निर्वाचित घोषित किये गए थे।
लोकसभा के इस चुनाव में भी एनडीए उम्मीदवार और भाजपा नेता आर के सिंह को भाकपा माले के उम्मीदवार राजू यादव से कड़ी टक्कर मिल रही है।
देखना है कि आर के सिंह अपना सीट बचाने में सफल हो पाते हैं कि तवे की रोटी को जलने से बचाने के प्रयासों में मतदाता राजू यादव को संसद भेजते हैं।


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