आर्थिक मोर्चे पर सकारात्मक संकेत
जीडीपी के आंकड़ों ने लगातार दूसरी तिमाही में तेजी दिखाकर अर्थव्यवस्था को लेकर जतायी जा रही सभी चिंताओं को आधारहीन साबित कर दिया है। इस वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के आंकड़ों से साफ हो गया है कि नोटबंदी और जीएसटी के दुष्प्रभावों से मुक्त होकर अर्थव्यवस्था एक बार फिर दौड़ने के लिए तैयार है। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय से जारी इन आंकड़ों में अर्थव्यवस्था के लिए संवेदनशील सेक्टर्स से भी सकारात्मक नतीजे या संकेत आये हैं। तीसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 7.2 फीसदी पर पहुंच गयी है। पिछली पांच तिमाहियों में ये आंकड़ा सर्वोच्च स्तर पर है। भारत की विकास दर भी एक बार फिर दुनिया में सबसे तेज हो गयी है। 7.2 फीसदी की विकास दर हासिल कर अपने हमने चीन को भी पीछे छोड़ दिया है, जिसकी विकास दर 6.8 फीसदी आंकी जा रही है। इन आंकड़ों का सकारात्मक संकेत ये भी है कि भारत एक बार फिर पूरे विश्व में सबसे तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बनने का दावा करने की स्थिति में आ गया है। हालांकि भारत सरकार के इस दावे पर नोटबंदी और जीएसटी की वजह से विपक्ष सवालिया निशान लगाता रहा है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष विवेक देबरॉय का कहना है कि विकास की मौजूदा दरों से स्पष्ट है कि सरकार ने अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में जो सुधारात्मक कदम उठाये हैं, वे अब अपना असर दिखाने लगे हैं। अगली तिमाही में भी इनका सकारात्मक असर नजर आयेगा, जिसके परिणामस्वरूप पूरे वित्त वर्ष के लिए जीडीपी की वृद्धि दर में और भी सुधार हो सकता है। दरअसल दूसरी तिमाही के आंकड़ों के आधार पर सीएसओ ने पूरे साल के लिए जीडीपी में 6.5 फीसदी की दर से विकास होने का अनुमान रखा था। तीसरी तिमाही के आंकड़े आने के बाद भी इसमें मामूली सुधार ही किया गया है और अभी विकास दर के 6.6 फीसदी के स्तर पर रहने का आकलन किया गया है। हालांकि रेटिंग एजेंसी क्रिसिल का कहना है कि 2016-17 से देश की अर्थव्यवस्था में जिस तरह से लगातार चार बार गिरावट की स्थिति बनी, उसकी वजह से सीएसओ पूरे साल के लिए विकास दर का आकलन करते वक्त अतिरिक्त सावधानी बरत रहा है। लेकिन यदि कोई बड़ी नकारात्मक बात नहीं हुई तो चौथी तिमाही के बाद भारत में जीडीपी वृद्धि दर सात फीसदी तक भी पहुंच सकती है। तीसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर में आयी तेजी की एक वजह निवेश की मांग का बढ़ना भी रहा है। इसके पहले के वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में निवेश की मांग 7.4 फीसदी थी, जो कि बाद की दो तिमाहियों में शून्य से भी नीचे गिरकर ऋणात्मक हो गयी थी। निवेश की मांग के ऋणात्मक होने से भी जीडीपी वृद्धि दर पर नकारात्मक असर पड़ा। लेकिन इस वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में निवेश की मांग छलांग लगाकर 12 फीसदी पर पहुंच गयी है। इस आंकड़े से स्पष्ट है कि देश में निवेश-चक्र एक बार फिर संतुलन की स्थिति में पहुंच गया है। कहना होगा कि आर्थिक मोर्चे पर केंद्र सरकार की ओर से लिये गये कड़े फैसलों की वजह से 2016-17 से ही अर्थव्यवस्था में निजी निवेश काफी कम हो गया था। कैलेंडर वर्ष 2017 में कई निवेशकों ने अपने उपक्रमों को समेटने तक का फैसला कर लिया था। लेकिन अब स्थिति में बदलाव आया है और निवेश का रुख सकारात्मक हो गया है। पिछली तीन तिमाहियों के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि अर्थव्यवस्था लगातार सुदृढ़ हो रही है। 2017-18 की पहली तिमाही में जीडीपी दर 5.7 फीसदी तक जरूर गिरी हुई थी, लेकिन उसी वक्त कई सेक्टर्स तेजी का रुझान दिखाने लगे थे। यही वजह है कि दूसरी तिमाही में इसमें 0.6 फीसदी की और तीसरी तिमाही में 0.9 फीसदी की उछाल आयी। ऐसी ही रफ्तार बनी रही तो आखिरी तिमाही में विकास दर 1.1 फीसदी से लेकर 1.3 फीसदी तक रह सकती है। ऐसे भी केंद्र में एनडीए सरकार बनने के बाद से जीडीपी दर सकारात्मक दिशा में बढ़ रही थी, लेकिन 2016-17 से ही इसमें गिरावट का दौर शुरू हुआ । उस साल पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 7.9 फीसदी के उच्च स्तर पर थी, लेकिन दूसरी तिमाही में ये गिरकर 7.5 और तीसरी तिमाही में 7 फीसदी पर आ गयी। नोटबंदी लागू होने के बाद आखिरी तिमाही और उसके बाद 2017-18 की पहली तिमाही के दौरान अर्थव्यवस्था में स्पष्ट गिरावट आयी। उस दौरान जीडीपी वृद्धि दर गिरकर क्रमशः 6.1 फीसदी और 5.7 फीसदी रह गयी। यानी 2016-17 की पहली तिमाही और 2017-18 की पहली तिमाही के मध्य जीडीपी वृद्धि दर में 2.2 फीसदी की बड़ी गिरावट दर्ज की गयी। केंद्र की मौजूदा सरकार के कार्यकाल के दौरान जीडीपी दर में ये सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गयी और इसके बाद ही कहा जाने लगा कि देश फिलहाल कड़े आर्थिक सुधारों का सामना नहीं कर सकता। लेकिन अब स्थिति बदल गयी है और आलोचक भी मानने लगे हैं कि देश की अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है। एक तथ्य ये भी है कि नोटबंदी के बाद मैनुफैक्चरिंग सेक्टर और कंस्ट्रक्शन सेक्टर पर काफी दबाव की स्थिति बन गयी थी। इसके साथ ही उस पूरे दौर में एग्रीकल्चर सेक्टर का प्रदर्शन भी औसत से भी नीचे रहा था। लेकिन इस तिमाही के जो आंकड़े सामने आये हैं, उनमें मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में 8.1 फीसदी, कंस्ट्रक्शन सेक्टर में 6.8 फीसदी और एग्रीकल्चर सेक्टर में 4.1 फीसदी की वृद्धि दर दर्ज की गयी है। इन तीनों सेक्टर्स में एग्रीकल्चर की स्थिति अभी भी संतोषजनक नहीं मानी जा सकती है। ये ठीक है कि कृषि मंत्रालय ने इस साल रिकॉर्ड पैदावार होने का अनुमान जताया है, लेकिन ये भी सच है कि भारत में 72 फीसदी खेती मानसून पर निर्भर करती है। ऐसे में सरकार मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाकर रिकॉर्ड पैदावार होने का दावा भले ही कर ले, लेकिन इसको लेकर निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता है। इसी तरह पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत में लगातार आ रही तेजी भी आने वाले समय में चालू खाते के घाटे को बढ़ा सकती है। घरेलू मोर्चे पर सार्वजिनक क्षेत्र के बैंकों का बढ़ता एनपीए भी चिंताजनक तस्वीर पेश कर रहा है। हाल के बैंकिंग स्कैम के खुलासे से भी अर्थव्यवस्था के इस अहम क्षेत्र का खोखलापन नजर आया है। इन तथ्यों के बावजूद जीडीपी के आंकड़े एक आशाजनक संकेत दे रहे हैं और मानना चाहिए कि भारत जल्द ही दुनिया में सबसे तेज रफ्तार से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था वाले देश के रूप में स्थापित हो जायेगा। हालांकि इसके लिए अर्थव्यवस्था के सभी मोर्चों पर सरकार को संभलकर सुधारात्मक प्रबंध करने होंगे।