आरटीआई के दायरे में चीफ जस्टिस का दफ्तर? अटार्नी जनरल ने कहा-जजों की संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक हो

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नई दिल्ली, 03 अप्रैल (हि.स.)। चीफ जस्टिस का दफ्तर सूचना के अधिकार के तहत आता है या नहीं? इस मसले पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने सुनवाई की। आज दिन भर अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री की तरफ से दलीलें रखीं। उन्होंने कहा कि जजों की नियुक्ति पर कॉलेजियम जिन तथ्यों पर विचार करती है, उनकी सूचना सार्वजनिक न हो। उन्होंने कहा कि जजों की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक होना चाहिए। इस मामले पर 4 अप्रैल को भी सुनवाई होगी। गुरुवार को याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील प्रशांत भूषण अपनी दलीलें रखेंगे।

न्यायपालिका को आरटीआई के तहत लाने के जिन मामलों की सुनवाई हो रही है, उनमें एक मामला 2009 के केंद्रीय सूचना आयोग के उस निर्देश का है, जिसमें जस्टिस एचएल दत्तु, जस्टिस एपी गांगुली और जस्टिस आरएम लोढ़ा की नियुक्ति से संबंधित संवैधानिक प्राधिकारों के पत्र व्यवहार का खुलासा करने को कहा गया था। इन जजों की निययुक्ति जस्टिस एपी शाह, जस्टिस एके पटनायक और जस्टिस वीके गुप्ता की वरिष्ठता दरकिनार कर की गई थी। केंद्रीय सूचना आयुक्त ने अपने आदेश में एसपी गुप्ता के केस पर सात सदस्यीय संविधान बेंच के फैसले का हवाला दिया था। सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल ने कहा कि एसपी गुप्ता के केस का फैसला आदर्शवादी था। एसपी गुप्ता के केस पर फैसला 1981 में सुनाया गया था और उस समय आरटीआई का कानून नहीं था। इसलिए उस केस के आधार पर कोई फैसला नहीं किया जा सकता है।

अटार्नी जनरल ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता को ध्यान में रखते हुए इस एक्ट से बाहर भी जो चलन में रहा है, उसका ख्याल रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जजों की नियुक्ति से जुड़ी सूचना को अलग वर्ग में रखा जाना चाहिए और उसे गोपनीय रखा जाना चाहिए ताकि क़ॉलेजियम के काम करने की स्वतंत्रता बरकरार रहे। किसी जज को नियुक्त करने या नहीं करने के बारे में फाइल नोटिंग्स का खुलासा करना जनहित में नहीं है। किसी जज की नियुक्ति व्यक्तिगत चरित्र की है, इसलिए उसकी सूचना के खुलासे पर आरटीआई की धारा 8 (आई)(जे) के तहत छूट मिलनी चाहिए।


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