आम्रपाली मामले में सुप्रीम कोर्ट तल्ख, कहा-ऐसा रियल एस्टेट फ्रॉड अब तक नहीं देखा
कंपनी और उसके निदेशकों के बैंक खातों का फॉरेंसिक ऑडिट करने का आदेशकोर्ट ने कहा कि अगर 100 लोगों को जेल भेजना पड़ा तो ये भी किया जाएगा
नई दिल्ली, 04 सितम्बर (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने आम्रपाली के अधूरे प्रोजेक्ट के मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि ऐसा रियल एस्टेट फ्रॉड अबतक नहीं देखा है।
कोर्ट ने मंगलवार को कंपनी और उसके निदेशकों के बैंक खातों का फॉरेंसिक ऑडिट करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने बैंक ऑफ बड़ौदा को स्वतंत्र ऑडिटर के नाम सुझाने का आदेश दिया है। इस मामले पर अगली सुनवाई 6 सितंबर को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट ने कहा कि अगर 100 लोगों को जेल भेजना पड़ा तो ये भी किया जाएगा ।
सुनवाई के दौरान नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कंपनी (एनबीसीसी ) ने कोर्ट को बताया कि आम्रपाली के सभी प्रोजेक्ट पूरे करने में करीब 8500 करोड़ रुपए लगेंगे। आम्रपाली की संपत्तियों को बेच कर इन पैसों का बंदोबस्त कर पाना मुश्किल है। बैंक से फंड लेने की कोशिश की जा सकती है लेकिन उसमें भी दिक्कत आएगी ।
पिछले 21 अगस्त को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कंपनी (एनबीसीसी) से पूछा था कि प्रोजेक्ट कैसे और कब तक पूरे होंगे? कोर्ट ने आम्रपाली के निदेशकों से अपनी संपत्ति का ब्यौरा जमा करवाने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा था कि हम संपत्तियों को बेचने का आदेश दे सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रोजेक्ट में बिजली नहीं कटेगी। आम्रपाली खुद तीन करोड़ रुपये का बकाया चुकाये।
सुनवाई के दौरान जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने फ्लैट खरीददारों से तीन ऑडिटर्स के नाम सुझाने को कहा था। कोर्ट ने आम्रपाली के वकील से पूछा था कि प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए 5112 करोड़ के लिए आपके पास क्या व्यवस्था है। बायर्स के 2700 करोड़ रुपये जो आपने डाइवर्ट किये थे, पहले वो लाइए । पिछले 8 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने आम्रपाली समूह के प्रमोटर्स को चेतावनी दी थी कि वे कोर्ट से ज्यादा स्मार्ट न बनें अन्यथा इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। कोर्ट ने आम्रपाली समूह के प्रमोटर्स और निदेशकों से कहा था कि हम आपको बेघर कर देंगे और आपका एक-एक इंच बेच देगें, अगर आप अपने अधूरे प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए पांच हजार करोड़ रुपए का इंतजाम नहीं करेंगे।
दो अगस्त को लिए सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कारपोरेशन (एनबीसीसी) को आम्रपाली समूह के सभी अधूरे प्रोजेक्ट को टेकओवर करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने एनबीसी से एक महीने के भीतर इसके लिए समग्र योजना बनाने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने एनबीसीसी से पूछा कि इस काम को कितने दिनों में पूरा किया जा सकता है।
इस मामले पर सुनवाई के दौरान केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे। कोर्ट ने उन्हें फटकार लगाते हुए पूछा था कि आपको एनबीसीसी को आमंत्रित करने के लिए किसने अधिकृत किया? मीटिंग में निवेशकों का प्रतिनिधित्व किसने किया? क्या आपको सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश की जानकारी नहीं? क्या आम्रपाली से आपने रिकार्ड तलब किया ।
कोर्ट ने एनबीसीसी द्वारा आम्रपाली के अधूरे प्रोजेक्ट को पूरा करने संबंधी योजना की जानकारी मीडिया को विज्ञापन के जरिए देने की आलोचना की थी। कोर्ट ने कहा था कि जब मामला कोर्ट में लंबित है तो आपने ये विज्ञापन कैसे दे दिया। सुप्रीम कोर्ट ने आम्रपाली के वकील से पूछा कि हम आप पर विश्वास कैसे करें ? आप कोर्ट का आदेश नहीं मान रहे हैं। न बिजली, न पानी, न लिफ्ट। आपको पता नहीं कि आप किस मुसीबत में हैं ।
एक अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने आम्रपाली की सभी कंपनियों और निदेशकों के खाते फ्रीज करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने सभी कम्पनियों और निदेशकों की सम्पत्ति भी जब्त करने का आदेश दिया था । कोर्ट ने कहा था कि लगता है कि कोर्ट के साथ गंभीर फ्रॉड खेला जा रहा है। फिलहाल हर कोई हमारे शक के दायरे में है।
कोर्ट ने नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कंपनी (एनबीसीसी) के चेयरमैन और केंद्रीय शहरी आवास मंत्रालय के सचिव को भी तलब किया था। कोर्ट ने आम्रपाली के प्रोजेक्ट टेकओवर करने को लेकर एनबीसीसी के साथ हुई बैठक को भी गुमराह करने की कोशिश करार दिया। कोर्ट ने पूछा था कि जब हम सुनवाई कर रहे हैं तो समानांतर कार्रवाई क्यों शुरू की गई ।
18 जुलाई को आम्रपाली समूह ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि केंद्र सरकार उसके प्रोजेक्ट टेकओवर कर सकती है। राष्ट्रीय भवन निर्माण निगम (एनबीसीसी) के साथ शुरुआती बातचीत हुई है। बैठक में नोएडा-ग्रेटर नोएडा के अधिकारी मौजूद थे। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बातचीत के लिए 10 दिन का समय दिया था ।
कोर्ट ने आम्रपाली के प्रमोटर्स को देश नहीं छोड़ने का आदेश दिया था। सुनवाई के दौरान एएसजी विक्रमजीत बनर्जी ने कहा कि कोर्ट ये साफ करे कि ये आम्रपाली समूह का प्रस्ताव है कि उसके प्रोजेक्ट्स सरकार ले सकती है। इसे कोर्ट के आदेश के तौर पर नहीं देखा जाए।
17 मई को जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस यूयू ललित की बेंच ने साफ कहा था कि घर खरीददार तभी भुगतान करेंगे जब प्रोजेक्ट का निर्माण सौ फीसदी हो जाएगा। ये भुगतान पजेसन लेटर मिलने के तीन महीने के बाद किया जाएगा। कोर्ट ने सी वर्ग वाले प्रोजेक्ट्स को दूसरे प्रोजेक्ट्स के साथ बदलने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि जो लोग फ्लैट बदलना नहीं चाहते हैं वे पैसों की वापसी के लिए आवेदन दे सकते हैं।
पहले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने आम्रपाली और को-डेवलपर से करोड़ों रुपये साइफन करने का ब्यौरा देने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने सख्त लहजे में पूछा कि रुपया कहाँ से आया और किन कम्पनियों को दिया गया? रकम किस रूप में दी गई, किसी काम के लिए एडवांस या फिर उधारी या किसी अन्य बहाने से। सुनवाई के दौरान फ्लैट खरीदारों की ओर से दलील दी गई थी कि सहारा, यूनिटेक और जेपी की तरह आम्रपाली और इसके निदेशकों की निजी संपत्ति भी अटैच कर दी जाये। इनसे कम से कम 500 करोड़ रुपये जमा कराए जाएं तब ये प्रोजेक्ट पूरे करेंगे।