आधुनिक भारत के दधीचि थे मनोहर पर्रिकर
(30 मार्च को मनोहर पर्रिकर की तेरहवीं पर विशेष)
आर.के.सिन्हा
मनोहर पर्रिकर का भौतिक शरीर भले ही अब हमारे बीच न रहा हो, पर वे सदियों तक इस देश के आमजन के दिलों में निवास करते रहेंगे। दर्दनाक और जानलेवा पैंक्रियाटिक कैंसर जैसे असाध्य रोग से लड़ते हुए भी पर्रिकर का जीवन के अंतिम पलों तक देश की सेवा करते रहना वास्तव में अनुकरणीय है। उन्होंने देश सेवा की ऐसी नजीर सामने रखी है, जिसकी बराबरी करना आसान नहीं होगा। उन्होंने ईमानदारी और सादा जीवन व्यतीत करते हुए जीवनभर देश सेवा की। इस लिहाज से वे डॉ. राजेंद्र प्रसाद, दीनदयाल उपाध्याय, लाल बहादुर शास्त्री, जयप्रकाश नारायण और कर्पूरी ठाकुर की परम्परा के नेता बन गए हैं।
पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक के संबंध में जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि इतनी हिम्मत कहां से आई? तब उन्होंने जवाब दिया था कि संघ शिक्षा और संघ संस्कारों की बदौलत हम सर्जिकल स्ट्राइक कर पाए। वे निडर थे। पर्रिकर का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंध बचपन से ही था। वे अपने आपको स्वयंसेवक बताने में गर्व महसूस करते थे। वे मानते थे कि संघ की शिक्षा इंसान को सादगी सिखाती है। सीमित संसाधनों में काम करना सिखाती है। संघ के संस्कार से व्यक्तित्व का निर्माण होता है। हर बुराई से दूर रह कर एक ईमानदार राष्ट्रभक्त और कर्मठ व्यक्ति का निर्माण होता है।
पर्रिकर में ये सभी गुण विद्यमान थे, बल्कि, इतने अधिक गुण थे कि वे दूसरों को भी तत्काल ही प्रेरित करते थे। मनोहर पर्रिकर की सादगी का हर कोई कायल था। वे एक बार अपनी स्कूटी से गोवा स्थित अपने मुख्यमंत्री सचिवालय जा रहे थे। रास्ते में उनको एक कार ओवरटेक करके तेज गति से निकली। वह कार थोड़ी दूरी पर रेड लाइट पर रुकी। पर्रिकर उसके पास पहुंचे और उसके ड्राइवर से बोले ‘बेटा, आराम से चलाया करो।’ कार चलाने वाला युवक पर्रिकर जी को पहचान नहीं पाया और अपने पैसे का रौब झाड़ते हुए बोला ‘आप जानते हो मैं कौन हूं? ‘ पर्रिकर जी ने जवाब दिया – ‘मैं नहीं जानता कि आप कौन हैं?’ तब उस युवक ने कहा ‘मैं यहां के पुलिस अधीक्षक का बेटा हूं।’ ये सुनकर पर्रिकर मुस्कुराये और बड़ी शालीनता से बोले ‘मैं यहां का मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर हूं।’
गोवा का मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री आवास में रहने से मना कर दिया था और खुद के एक छोटे से घर में रहते थे। यहां पर उनकी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से तुलना करते हुए ठीक नहीं लग रहा है। केजरीवाल ने भी कहा था कि वे सत्ता मिलने पर साधारण घर में ही रहेंगे, पर उन्होंने भव्य सरकारी बंगला ले ही लिया। इसी प्रकार, रक्षा मंत्री रहते हुए भी उनकी कोठी में न कोई गर्द, न तामझाम। कई बार मैं उनके यहां चाय पीने गया। एक दम सादा जीवन, उच्च विचार।
पर्रिकर 24 अक्टूबर 2000 को पहली बार गोवा के मुख्यमंत्री बने थे। मुख्यमंत्री पद संभालने से ठीक पहले उनकी पत्नी की कैंसर से मौत हो गई। लिहाजा पर्रिकर के ऊपर अपने दो बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी भी आ गई। वे अपने बच्चों के लिए माता-पिता दोनों थे। वे किसी सूबे का मुख्यमंत्री बनने वाले पहले आइटियन थे। उन्होंने साल 1978 में आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की थी। वे और आधार कार्ड के जनक नंदन नीलेकणि आईआईटी में ही सहपाठी थे। पर्रिकर चाहते तो वे भी देश में या विदेशों में कहीं भी किसी बड़ी कंपनी में काम कर खूब धन कमा सकते थे। ठाठ-बाट से रह सकते थे। लेकिन उन्होंने तो गोवा और देश के सेवा की ठान ली थी और जीवनभर सेवा व्रती का ही जीवन बिताया।
गोवा जैसे छोटे से राज्य से संबंध रखने के बावजूद मनोहर पर्रिकर ने अपने को अपने कार्यों और शालीन व्यवहार के बल पर देश के शीर्ष और आदरणीय नेताओं में शामिल करवा लिया था। निर्विवाद रूप से रक्षा मंत्री के रूप में, गोवा के कर्तव्यनिष्ठ मुख्यमंत्री के रूप में, उन्होंने जो सादगी और ईमानदारी की मशाल जलाई है, वह इस देश में कभी अंधेरा नहीं होने देगी।
सचमुच, मनोहर पर्रिकर आधुनिक दधीचि ही थे, जिन्होंने प्रदेश और देश की सेवा में अपनी हड्डियां गला दी। सेना के आधुनिकीकरण में उनका योगदान अविस्मरणीय है। सादगी और ईमानदारी में लाल बहादुर शास्त्री जी की परम्परा के नेता पर्रिकर सरदार पटेल की तरह दृढ़ निश्चयी थे। आज जब देश को उनकी सबसे ज्यादा आवश्यकता थी, तब वे देशवासियों को बिलखता छोड़ गए।
आज ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ हरेक हिन्दुस्तानी बोलता रहता है। ये दो शब्द मनोहर पर्रिकर ने ही देश को दिए। उरी हमले के बाद भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक के जरिये एलओसी पार कर पाकिस्तान में आतंकियों के शिविरों को नेस्तनाबूद किया था। इसने सादगी के लिए मशहूर मनोहर पर्रिकर के मजबूत नेतृत्व और कुशल प्रशासक की छवि को पुख्ता किया। उन्होंने रक्षा मंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में भारतीय सेना के सर्जिकल हमले का श्रेय भी संघ की शिक्षा को दिया था। वे 9 नवंबर 2014 से 13 मार्च 2017 तक देश के रक्षामंत्री रहे। यह वही काल था जब भारतीय सेना ने म्यांमार की धरती पर जाकर भी आतंकियों का सफाया किया था। इसी दौरान 29 सितंबर 2016 भी आया जब भारतीय सेना के जांबाजों ने गुलाम कश्मीर में घुसकर आतंकियों के ट्रेनिंग कैंपों पर हमला किया। भारत के वीर जवानों ने एलओसी पार की और गुलाम कश्मीर में घुसकर न सिर्फ आतंकी कैंपों को ध्वस्त किया और आतंकियों को मौत के घाट उतारा, बल्कि सुरक्षित वापस भी लौट आए।
दुनिया जिसे एक राजनेता, एक मुख्यमंत्री, एक रक्षा मंत्री के रूप में जानती है, असल में वह अपने को सदा संघ के एक अनुशासित स्वयंसेवक ही मानते रहे। चाहे मुख्यमंत्री रहे हों या रक्षामंत्री, वे हमेशा बिना मीडिया की परवाह किये, बिना किसी डर या दबाव के बाकायदा संघ गणवेश में ही शाखा जाते थे। संघ में उन्हें एक बेहतरीन स्वयंसेवक के रूप में जाना जाता था। बेहद अनुशासित, बेहद ईमानदार, देश के लिए मर मिटने का जज़्बा और सरल व्यक्तित्व, बिल्कुल एक संघ प्रचारक के जैसा। उन्होंने अपने व्यक्तित्व और अपनी सफलता का श्रेय हमेशा संघ की विचारधारा, संघ शिक्षा, संघ संस्कारों को दिया।
मनोहर पर्रिकर के जीवन से भारत की आने वाली पीढ़ियां नि:स्वार्थ भाव से समाज और देश सेवा की प्रेरणा लेती रहेंगी। ये भारत का सौभाग्य है कि इस देश में अब भी मनोहर पर्रिकर की तरह के संत पुरुष समाज सेवा में सक्रिय हैं।
(लेखक राज्यसभा के सदस्य हैं।)