आजादी के बाद से आरा सीट पर महिलाओं को टिकट देने में पिछड़ गईं राष्ट्रीय पार्टियां
आरा,21 अप्रैल(हि. स.)। वीर कुंवर सिंह की नगरी होने और 1857 के गदर के महानायक की युद्धभूमि होने के कारण राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में रहने वाले आरा संसदीय क्षेत्र में आधी आबादी को टिकट देकर संसद पहुंचाने में देश की राष्ट्रीय पार्टियां पिछड़ गई हैं।
आरा से अगर महिलाएं जीत कर संसद पहुंची हैं तो वह क्षेत्रीय दलों की मेहरबानी है और क्षेत्रीय दलों ने ही आरा सीट से महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारने,जिताने और संसद पहुंचाने में अहम रोल निभाया है।
आरा लोकसभा क्षेत्र से पुरुषों के मुकाबले अब तक मात्र ढाई फीसदी महिला प्रत्याशियों को ही चुनाव में भाग्य आजमाने का मौका मिला है। यहां अब तक 260 प्रत्याशियों में से मात्र सात ही महिलाएं चुनाव में खड़ी हुईं है। इस क्षेत्र में कुल महिला मतदाताओं की संख्या 45 प्रतिशत से अधिक है। यहां से राज्य स्तरीय पार्टी में राजद और जदयू ने महिलाओं को टिकट दे सांसद भी बनाया। इसके विपरीत राष्ट्रीय दलों ने यहां से एक बार भी महिलाओं को टिकट नहीं दिया जबकि ये संसद में महिलाओं की हितैषी बनने, उनके हितों के संबंध में बिल लाकर आरक्षण की हिमायती बनने का दावा जरूर करते हैं।
आरा में महिलाओं की उपेक्षा का आलम यह रहा है कि यहां से किसी महिला को प्रत्याशी के रूप में खड़े होने में 37 वर्ष लग गये। नौवीं लोकसभा के लिए 1989 में हुए चुनाव के दौरान निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में राजपति देवी ने पहली बार नामांकन कर चुनाव लड़ने का खाता खोला था। इसके साथ ही 52 साल बाद पहली महिला सांसद बनीं थी कांति सिंह।
इतिहास पर नजर डाले तो यहां से पहली बार 2004 के चुनाव में कांति सिंह ने चुनाव जीत कर एक नया रिकॉर्ड बनाया था। इसके बाद दूसरी महिला सांसद के रूप में मीना सिंह ने चुनाव जीत लगातार दूसरी बार महिला सांसद बनने का इतिहास रचा था।
आरा संसदीय क्षेत्र की विडंबना कहें या दुर्भाग्य अब तक यहां से भाजपा या कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों ने किसी महिला को चुनाव में अपनी तरफ से नहीं उतारा। इन दोनों ने महिलाओं को प्रत्याशी बनाया होता तो यहां कई महिलायें सांसद बन दिल्ली में आधी आबादी की आवाज बुलंद करतीं।
इस लोकसभा क्षेत्र से लगातार दो बार चुनाव लड़ने का रिकॉर्ड पूनम सिंह और मीना सिंह के नाम दर्ज है। पूनम सिंह ने वर्ष 1998 व वर्ष 1999 के चुनाव में भाग्य आजमाया पर सफलता नहीं मिली थी। वहीं मीना सिंह पहली बार में ही 2009 के चुनाव में खड़ी हुई और सफल हो गयी थीं। इसके बाद 2014 के चुनाव में दुबारा उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा था।
आधी आबादी की बात करने वाली पार्टियों ने महिलाओं को पंचायत स्तर तक ही राजनीति की अगुआई तय कर दी है।पंचायत से आगे लाने और देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद में महिलाओं की बड़ी संख्या में इंट्री से हाथ खींचने वाली पार्टियों ने अब तक सिर्फ महिलाओं को राजनीति में आगे आने और देश की संसद का नेतृत्व करने का मौका नहीं दिया है।
यही वजह है कि संसद में देश के सुदूरवर्ती आरा जैसी संसदीय सीट से किसी राष्ट्रीय पार्टी ने महिलाओं को भेजने की पहल नहीं की उन्हें सिर्फ मतदाता बनाकर ही रखा।