आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने ढूंढा लीवर की बीमारी रोकने का उपाय

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मंडी, 30 अप्रैल (हि. स)। लीवर इंसान के शरीर के अंदर का सबसे बड़ा अंग है। जिंक ऑक्साइड के नैनोपार्टिकल लीवर में चर्बी जमना रोक सकते हैं और मद्यपान नहीं करने वालों में लीवर की चर्बी की बीमारियों की रोकथाम करने में भी सक्षम हो सकते हैं। आईआईटी मंडी के एसिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रोसेनजीत मोंडल और सीएसआईआर लखनऊ के डॉ. देवब्रत घोष का शोध हाल में एक जर्नल नैनोमेडीसीन: नैनोटेक्नोलॉजी, बायोलॉजी एंड मेडीसीन में प्रकाशित किया गया है।
डॉ. प्रोसेनजीत मोंडल ने कहा कि लीवर इंसान के शरीर के अंदर का सबसे बड़ा अंग है। यह पित्त का स्राव करता है और ग्लाइकोजेन के रूप में ग्लूकोज जमा करता है और विटामिन, मिनरल्स और एमीनो एसीड को जैव वैज्ञानिक रूप में अवशोषण योग्य बनाता है।
उन्होंने कहा कि पहले लीवर की बीमारियां मुख्यत: हेपेटाइटिस वायरस के संक्रमण और मद्यपान की वजह से होती थी। मगर आज सेडेंट्री लाइफस्टाइल और खान-पान की गलत आदतों की वजह से मद्यपान नहीं करने वालों में भी लीवर की बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। एनएएफएलडी शरीर में बहुत ज्यादा चर्बी पैदा करता है जो लीवर की कोशिकाओं में जमा होती है जिसे स्टेटोसिस कहते हैं। इससे घाव या सिरॉसिस हो सकता है और अंत में लीवर बेकार हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट 2017 में भारत में 259,749 लोगों के लीवर की बीमारियां से दम तोडऩे का तथ्य सामने आया है। लगभग 120 मिलियन भारतीयों के एनएएफएलडी पीडि़त होने का अनुमान है। मोटापा और डायबीटीज़ के मरीजों में यह समस्या अधिक हो सकती है। एनएएफएलडी के लक्षणों में एक इंसुलिन का असर नहीं होना है।
शोधकर्ताओं ने आलेख में लिखा है। इंसुलिन ग्लूकोज को स्टोर करने योग्य ग्लाइकोजेन में बदलने के साथ गैर-चर्बी स्रोत से लिपिड पैदा करने में भी मद्द करता है। इस प्रक्रिया को लाइपोजेनेसिस कहते हैं। जीवनशैली खराब होने और / या आनुवांशिक कारणों से संकेत की प्रक्रिया खराब होने से इंसुलिन के काम में बाधा आती है और ज्यादा लाइपोजेनेसिस शुरू हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप लीवर में चर्बी जमने लगता है।

शोध करने वाली टीम ने कोशिका और चूहा मॉडल का प्रयोग कर प्रदर्शित किया कि जिंक सप्लीमेंट लीवर में चर्बी जमा होने से रोकता है । इसके आसपास इंसुलीन सेंसिटिवीटी बढ़ाता है। शोधकर्ताओं ने सबसे पहले मनुष्य के हेपैटोसेल्युलर कार्सीनोमा सेल का जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स से उपचार किया और उपचार नहीं किए गए सेल की तुलना में इन सेल में लिपिड जमने का परीक्षण किया।
उन्होंने चर्बी युक्त आहार पर पले चूहे के शरीर में नैनोपार्टिकल की सुई लगाई और सेल के संकेत, जीन के एक्सप्रेशन पर नजर रखी और कोशिका की ऊर्जा स्तर का भी आकलन किया। इंसुलिन के कार्य का आकलन के लिए चूहे का ग्लूकोज़ टॉलरेंस टेस्ट भी किया गया और इसकी तुलना सामान्य आहार वाले चूहों और साथ ही, ऐसे चूहों से की गई जिनका नैनोपार्टिकल से उपचार नहीं किया गया।
शोध विद्वान सुरभि डोगरा जो आईआईटी मंडी द्वारा नियुक्त सह-परीक्षक हैं ने बताया कि जिंक ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स से मोटापा की अवस्था में शारीरिक होमियोस्टैसिस और इससे जुड़ी मेटॉबॉलिज्म की अनियमितताएं सुधार सकते हैं।
इस अध्ययन का वित्तीयन आईआईटी मंडी के बीज शोध अनुदान से किया गया है। इसके साथ ही, डॉ.प्रसोनजीत मोंडल को विज्ञान एवं इंजीनियरिंग बोर्ड, भारत का अनुदान मिला है। इस अध्ययन के सह परीक्षकों में रिसर्च स्कॉलर सुरभि डोगरा, ख्याति गिरधर, पी विनीत डैनियल, स्वरूप चटर्जी, अभिनव चौबे और शिक्षकों में आईआईटी मंडी के डॉ. सुब्रत घोष और सीएसआईआर-आईआईटीआर के डॉ. सत्यकाम पटनायक और आदित्य के कर के नाम शामिल हैं।


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