अविश्वास प्रस्ताव पर शिवसेना,अन्नाद्रमुक केन्द्र के साथ

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नई दिल्ली,18 जुलाई (हि.स.)। नरेन्द्र मोदी की सरकार के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव के मुद्दे पर शिवसेना फिलहाल घोषित रूप से अपनी सहयोगी भाजपा के साथ है, अन्नाद्रमुक अघोषित रूप से। एम. करूणानिधि की पार्टी डीएमके इस मामले में कांग्रेस के साथ है या टीडीपी के साथ, इसको लेकर कांग्रेस व उसके सहयोगी दलों के नेता असमंजस में हैं। सूत्रों का कहना है कि डीएमके प्रमुख करूणानिधि के बड़े बेटे स्टालिन ने कांग्रेस व उसके समर्थन वाली विपक्ष के साथ होने का संकेत दिया है। उधर, करूणानिधि की बेटी कनिमोझी ने चन्द्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी का साथ देने का वायदा किया है। कनिमोझी राज्यसभा सांसद हैं। उनको लेकर राज्यसभा में डीएमके सांसदों की संख्या 4 है। इसलिए यह माना जा रहा है कि राज्यसभा में वह अपनी पार्टी के अन्य 3 सासंदों के साथ टीडीपी के अविश्वास प्रस्ताव का साथ देंगी। लेकिन उनमें से कुछ सांसद स्टालिन के प्रभाव में भी हैं। उनमें एक सांसद का कहना है कि मोदी सरकार के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने के मामले में चाहे हम टीडीपी के साथ रहें या कांग्रेसनीत विपक्ष के, चाहे इनके अविश्वास प्रस्ताव वाले कागज पर हस्ताक्षर करें या उनके, दोनों अविश्वास प्रस्ताव तो मोदी सरकार के विरूद्ध ही हैं। मालूम हो कि आन्ध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री व टीडीपी प्रमुख चन्द्र बाबू नायडू ने मानसून सत्र शुरू होने के पहले अपने विश्वासपात्र सांसदों को कई विपक्षी दलों के नेताओं के यहां मोदी सरकार के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने में समर्थन देने का निवेदन करने के लिए भेजा था। तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में उन्होंने अपनी पार्टी के सांसद सी. एम. रमेश को भेजा था। रमेश ने पहले तो अन्नाद्रमुक के नेता व राज्य के मुख्यमंत्री के. पलनीस्वामी व उपमुख्यमंत्री ओ.पन्नीरसेल्वन से इस संदर्भ में मिलने के लिए समय मांगा। लेकिन उन दोनों ने समय नहीं दिया, तब रमेश ने डीएमके राज्यसभा सांसद कनिमोझी से मुलाकात करके उनसे समर्थन मांगा। उन्होंने हामी भर दी। डीएमके का लोकसभा में एक भी सांसद नहीं है। चन्द्रबाबू नायडू ने अविश्वास प्रस्ताव पर समर्थन लेने के लिए अपने पार्टी के एक नेता को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मिलने के लिए मुंबई भी भेजा था। लेकिन उद्धव ठाकरे ने उनसे मिलने से मना कर दिया। इस बारे में टीडीपी के एक सांसद का कहना है कि इससे यह तो पता चल गया कि तमिलनाडु की एआईडीएमके भाजपा के साथ है। उधर, महाराष्ट्र की शिवसेना भले ही अपनी सहयोगी पार्टी भाजपा व उसके केन्द्रीय नेताओं के विरूद्ध कुछ भी कहती रहती है, उपचुनाव में उसके विरूद्ध प्रत्याशी खड़ा की थी, लेकिन मोदी सरकार के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव मामले में विपक्ष का साथ नहीं देगी। इस मामले में वह मोदी सरकार के साथ है। इस मुद्दे पर कई विपक्षी दलों का कहना है कि यदि सभी विपक्षी दल एकजुट होकर मोदी सरकार के विरूद्ध एक ही अविश्वास प्रस्ताव लाते तो वह ज्यादा प्रभावी होता। लेकिन टीडीपी अपना अलग से अविश्वास प्रस्ताव लाकर आन्ध्र प्रदेश के मतदाताओं को शायद यह संदेश देना चाहती है कि वह भाजपा का साथ तो छोड़ ही चुकी है, कांग्रेस के साथ भी नहीं है। यह करके टीडीपी अपना वोट बैंक बचाये रखने और राज्य के हित के मामले में कांग्रेस व जगन की पार्टी से अधिक जुझारू है, दिखाने की कोशिश करेगी।


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