अमेरिका ने यूक्रेन को बलि का बकरा बनाया: रक्षा विशेषज्ञ

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कोलकाता, 25 फरवरी (हि.स.)। यूक्रेन पर रूस के हमले से वैश्विक शांति को बड़ा आघात लगा है। यूक्रेन पर रूसी हमले की वास्तविक वजह एवं इसमें अमेरिका तथा नाटो सैन्य संगठन की भूमिका पर सवाल उठ रहेे हैं। रूस और यूक्रेन के वर्तमान हालात पर लेफ्टिनेंट उदयशंकर सिंह का मानना है कि अमेरिका ने यूक्रेन को बलि का बकरा बनाया है।
इस संबंध में शुक्रवार को “हिन्दुस्थान समाचार” ने रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट उदय शंकर सिंह (सेवानिवृत्त) से बातचीत की है। वार्ता के दौरान पूर्व सैन्य अधिकारी ने कहा कि 1949 में उत्तरी अटलाण्टिक सन्धि संगठन (नाटो) का गठन किया गया था। उस समय केवल 12 देशों ने मिलाकर सैन्य ताकत बनाई गई थी। तब अमेरिका का मुख्य मकसद अखंड सोवियत संघ को तोड़ना था। उन्होंने बताया कि विश्वयुद्ध के बाद दुनिया में अमेरिका और रूस दो सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभरे थे लेकिन अमेरिका एकलौता ताकत बने रहना चाहता था, इसलिए नाटो का गठन किया गया। बाद में इस सैनिक गठबंधन में अमेरिका की कोशिश लगातार उन देशों को शामिल करने की रही है, जो रूस के आसपास हैं अथवा किसी भी तरह से रूस से जुड़े रहे हैं। वर्ष 1991 में सोवियत संघ के 14 टुकड़े होने के बाद नाटो के सदस्य देशों की संख्या 30 हो गई। इनकी चौतरफा घेराबंदी रूस के आसपास रही है।
उन्होंने बताया कि यूक्रेन और रूस के बीच टकराव उस समय शुरू हुआ जब नाटो ने अपने संगठन में शामिल होने के लिए यूक्रेन को न्योता दिया था। रूस इसका विरोध करता रहा क्योंकि यूक्रेन की सीमाएं रूस की सीमाओं से सटी हैं। रूस को डर था कि यदि यूक्रेन नाटो में शामिल होता है तो अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी समेत दुनियाभर के अमेरिकी समर्थक 30 देशों के हथियार और सैनिक उसकी सीमा पर खड़े हो जाएंगे। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन कह चुके हैं कि यूक्रेन का नाटो बलों में शामिल होना, उन्हें मंजूर नहीं और इसका लिखित आश्वासन नहीं मिलने तक जंग जारी रहेगी।
अमेरिका ने की है वादाखिलाफी
रक्षा विशेषज्ञ उदय शंकर ने यूक्रेन को युद्ध में धकेलने के लिए अमेरिका पर आरोप लगाते हुए कहा कि यूक्रेन के राष्ट्रपति ने देश के नाम संबोधन में स्पष्ट कर दिया है कि युद्ध की स्थिति में अमेरिका ने उन्हें अकेला छोड़ दिया है। स्पष्ट है कि जब तक युद्ध शुरू नहीं हुआ था, तब तक अमेरिका लगातार रूस को धमकी दे रहा था और यूक्रेन को मदद का आश्वासन दे रहा था। इसी भरोसे यूक्रेन अपने रुख से पीछे नहीं हटा और अब जंग की जब स्थिति बनी है तो अमेरिका पीछे हट गया है। उन्होेंने कहा कि यूक्रेन को अमेरिका ने बलि का बकरा बनाया और अपने पुराने दुश्मन रूस के खिलाफ इस्तेमाल किया है।

उन्होंने कहा कि आज के विकसित जमाने में यूक्रेन जैसे छोटे देश पर रूस के हमले से दुनियाभर में पुतिन की आलोचना हो रही है और इसी का लाभ अमेरिका लेना चाहता था। इसका लाभ उठाते हुए एक तरफ उसने रूस पर कई सारे प्रतिबंध लगाए हैं और दूसरी ओर पूरी दुनिया में पुतिन को बदनाम करने का एक भी मौका नहीं छोड़ रहा। यानी यूक्रेन की जनता अंजाम भुगत रही है और लाभ ले रहा है अमेरिका।

सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी पुतिन से बात कर वार्ता के जरिए मसले को हल का सुझाव दिया है लेकिन वर्तमान में जो स्थिति बनी है, उसमें युद्ध को रोकना संभव नहीं दिख रहा। यह युद्ध तब तक नहीं रुकेगा जब तक यूक्रेन का सैन्य बल पूरी तरह से खत्म ना हो जाए अथवा रूस को हो यह लिखित में आश्वासन न मिले कि यूक्रेन को नाटो बलों में शामिल नहीं किया जा
पाकिस्तान के इरादे भी नेक नहीं
पुतिन से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की मुलाकात और इसका भारत पर असर संबंधी सवाल के जवाब में उदय शंकर ने कहा कि चीन के कहने पर पाकिस्तान रूस को समर्थन देने पहुंचा है लेकिन इसका भारत पर कोई भी असर नहीं पड़ेगा। इसकी वजह है कि रूस भारत का पुराना सहयोगी रहा है और अच्छे बुरे दौर में साथ खड़ा रहा है। भारत ने इस युद्ध में रूस का विरोध नहीं किया है बल्कि शांति से समस्या के समाधान का परामर्श दिया है। इसलिए पाकिस्तान की मंशा किसी भी तरह से पूरी नहीं होगी।

युद्ध के दुष्परिणामों का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि दोनों देशों के जानमाल का नुकसान तो होगा ही साथ ही पूरी दुनिया में वित्तीय संकट भी बढ़ेगा। पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत एक बार फिर बढ़ने लगेंगी। यूरोपीय देशों से न केवल गैस की आपूर्ति होती है बल्कि बड़े पैमाने पर पेट्रोलियम आपूर्ति होती है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि एक सप्ताह के अंदर युद्ध निर्णायक स्थिति में पहुंच सकता है।


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