अब का नहीं, सदियों पुराना है अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद

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नई दिल्ली, 29 जनवरी (हि.स.)। आज की युवा पीढ़ी यही मानती है कि 1992 की घटाद से ही अयोध्या विवाद मामला सुर्खियों में है, लेकिन अयोध्या में विवादित स्थल को लेकर करीब 165 साल पहले भी यहां सांप्रदायिक हिंसा हुए थे। सुप्रीम कोर्ट में मंदिर मस्जिद का विवाद अभी भी फंसा हुआ है।

अयोध्या में हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने छह दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद ढहा दी थी। इस घटना के बाद से यह मामला पूरी तरह से राजनीतिक रंग ले चुका है। बाबरी विध्वंस के बाद से विवादित स्थल की चाक-चौबंद सुरक्षा कर दी गई है। यह मामला कोर्ट में लंबित है।

विवादित स्थल का इतिहास
1526 ईस्वी में इब्राहीम लोदी को हराकर बाबर हुआ दिल्ली में दाखिल

– फरगान का आक्रमणकारी ज़हिर उद-दिन मुहम्मद बाबर ने 1526 ईस्वी में पानीपत के प्रथम युद्ध में दिल्ली सल्तनत के अंतिम वंश (लोदी वंश) के सुल्तान इब्राहीम लोदी को हराकर भारत में दाखिल हुआ था। बाबर ने इसके साथ ही भारत में मुग़ल वंश की स्थापना की थी।

– इतिहासकार मानते हैं कि भारत में आते ही बाबर ने यहां बड़े पैमाने पर मस्जिदों का निर्माण कराना शुरू कर दिया था। उसने पानीपत में पहली मस्जिद बनवाई थी।

– इसके दो साल बाद बाबर ने 1528 में अयोध्या में एक मस्जिद बनवायी। इस मस्जिद को बनवाने के लिए बाबर ने ऐसी जगह चुनी, जिसे हिंदू अपने अराध्य भगवान श्रीराम का जन्म स्थान मानते हैं।

1528 में बाबर ने अयोध्या में बनवाई थी बाबरी मस्जिद

– दरअसल, दावा ये किया जाता है कि 1528 में मुगल सम्राट बाबर के सेनापति मीर बाकी ताशकंदी ने यहां एक मस्जिद बनवाई थी।

दावे के मुताबिक-मंदिर को तुड़वाकर बनवाई गई मस्जिद
– हिंदुओं का बड़ा वर्ग यह दावा करता है कि यह मस्जिद उस स्थान पर बनाई गई है, जहां भगवान राम का जन्म हुआ था। इसलिए अयोध्या ने भारतीय राजनीति को सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता के सांचे में बांट दिया है।

1853 में पहली बार यहां विवादित स्थल को लेकर हुआ था विवाद
– हिंदू मान्यता के अनुसार इसी जगह भगवान राम का जन्म हुआ था और हिंदू संगठनों का आरोप रहा कि राम मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद बनाई गई। हालांकि कई शोधकर्ताओं का कहना है कि असल विवाद की शुरुआत 18वीं सदी में हुई।

– यहां मंदिर-मस्जिद को लेकर पहली बार हिंसा 1853 में हुई थी। उस समय यह नगर अवध क्षेत्र के नवाब वाजिद अली शाह के शासन क्षेत्र में था। हिंदू धर्म को मानने वाले निर्मोही पंथ के लोगों ने दावा किया था कि मंदिर को तोड़कर यहां पर बाबर के समय मस्जिद बनवाई गई थी।

असल विवाद की शुरुआत 18वीं सदी में हुई
– देश में जब तक मुगलों का शासन रहा तब तक अयोध्या में विवादित स्थल को लेकर कभी भी कोई बड़ा विवाद नहीं हुआ।

– 1853 में पहली बार इस स्थल के पास सांप्रदायिक हिंसा हुई थी। उस वक्त भी हिंदू यहां बने मस्जिद को तोड़कर मंदिर बनवाना चाहते थे। इस हिंसा के वक्त देश में अंग्रेजों का शासन था।

– हिंसा को शांत करने के लिए अंग्रेजी सरकार ने एक फॉर्मूला ढूंढा था, जिसके तहत यहां विवादित स्थल पर बाड़ लगा दी गई थी। बाबरी मस्जिद परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दे दी। इसके बाद यह प्रक्रिया लगातार चलती रही।

सरकार ने इस स्थल को विवादित घोषित करके ताला लगा लिया
– साल 1949 में भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं। कथित रूप से कुछ हिंदुओं ने ये मूर्तियां वहां रखवाई थीं। मुसलमानों ने इस पर विरोध व्यक्त किया और दोनों पक्षों ने अदालत में मुक़दमा दायर कर दिया।

– सरकार ने इस स्थल को विवादित घोषित करके यहां ताला लगा दिया। तब से विवादित स्थल पर दावेदारी को लेकर दोनों पक्ष कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं।

त्रेतायुगीन मंदिर के लिए संघर्ष
-हिंदू पक्षकारों के अनुसार अयोध्या में रामजन्मभूमि पर त्रेतायुगीन मंदिर था जिसका समय-समय पर जीर्णोद्धार होता रहा और 1528 में मुगल आक्रांता बाबर के आदेश पर मंदिर तोड़ कर बाबरी का निर्माण कराया गया।

– वहां बाबरी तो बन गई पर यह कभी निरापद नहीं रह पाई। रामजन्मभूमि मुक्त कराने का संघर्ष तब से जारी है।

– संघर्ष के शुरुआती दिनों में हिंदू पक्ष को विवादित स्थल के सामने चबूतरा बनाने का अधिकार मिला और इसी चबूतरे पर मंदिर निर्माण कराने की इजाजत लेने के लिए निर्मोही अखाड़ा के तत्कालीन महंत रघुवरदास ने 1885 में सिविल कोर्ट का आश्रय लिया।

– विवाद को लेकर 1934 में स्थानीय स्तर पर दंगा हुआ और एक पक्ष ने विवादित इमारत को काफी हद तक क्षति पहुंचाई। ब्रिटिश हुक्मरानों ने स्थानीय हिंदुओं पर कर लगाकर विवादित इमारत की मरम्मत कराई। 


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