अफसरशाही से कराह रहे काबर झील के किसान
किसानों के खेतों पर लागू है जंगल का कानून
कलक्टर ने छीन लिया खेत मालिकों का हक़
बेगूसराय,17 अप्रैल(हि.स.)। बेगूसराय जिले में करीब-करीब सूख चुकी काबर झील के किसानों ने एक बार फिर चुनाव के समय बड़ा सवाल उठाया है। काबर परिक्षेत्र से जुड़े किसानों के पास हजारों एकड़ जमीन है। इस जमीन पर वे फसल बो रहे हैं, फसल काट रहे हैं, फसल बेच रहे हैं। सरकार को लगान दे रहे हैं, लेकिन बच्चों की उच्च शिक्षा, बेटियों की शादी और गंभीर बीमारी के इलाज के लिए वह चाह कर भी अपनी जमीन बेच नहीं सकते क्योंकि 1986 में एक छोटी- सी बात पर किसानों की डीएम से भिड़ंत हो गई थी जिसके बाद काबर की 15780 एकड़ जमीन को 20 फरवरी 1986 में जिला गजट तथा 20 जून 1989 में राज्य गजट द्वारा वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 18 के तहत सुरक्षित कर दिया गया। इस धारा के अन्तर्गत जमीन सुरक्षित कर खेतों में फर्जीलाइजर , पेस्टिसाइड, पम्पिंग सेट के उपयोग, खर- पतवार जलाने, सूखा जलावन घर ले जाने तथा मजदूरों को खेत पर ले जाने पर रोक लगा दी गई है। वन्य संरक्षण धारा 1927 तथा वन्यजीव संरक्षण आश्रयणी की धारा 1972 के अन्तर्गत मंझौल की 1386.48 हेक्टेयर, जयमंगलपुर की 420.48, जयमंगलागढ़ की 38.45, सकड़ा की 119.38, रजौड़ की 429.79, कनौसी की 105.63, श्रीपुर एकम्बा की 3055.04, परोड़ा की 64.35, नारायणपीपर की 574.67 तथा मणिकपुर की 117.36 हेक्टेयर, कुल 6311.63 हेक्टेयर (15780 एकड़/करीब 21 हजार बीघा) जमीन संरक्षित की गयी है। मामला जब आगे बढ़ा तो एक अक्टूबर 2008 को पूर्णिया के वन संरक्षक सीपी खण्डूजा ने अपर प्रधान मुख्य संरक्षक को लिखा भी था कि 15780 एकड़ के संरक्षित क्षेत्र में एक अंश भी वन नहीं है और विभाग के पास कोई कागजात भी नहीं है। उन्होंने प्रतिवेदन में कहा था कि अधिसूचित जमीन में से 5095 एकड़ गैर मजरुआ है। कई प्लॉट की विसंगति की चर्चा भी की गयी थी। इसके बाद भी पांच जनवरी 2013 को तत्कालीन डीएम मनोज कुमार ने 1989 के बाद काबर परिक्षेत्र में की गयी जमीन की रजिस्ट्री को खारिज करते हुए जमीन की खरीद-बिक्री पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। जमींदार रहने के बाद भी जमीन नहीं बिकने के कारण बेटी की शादी, बच्चों की उच्च शिक्षा एवं इलाज नहीं होने के अवसाद से ग्रसित होकर दर्जनों किसान भगवान को प्यारे हो गए। काबर के किसान नेता मंझौल निवासी प्रभात भारती कहते हैं कि वन्यजीव संरक्षण के नाम पर 30 वर्षों से किसान बदहाल हैं। देश में कहीं भी इतने बड़े भूभाग पर विसंगत गजट नहीं किया गया। सरकार को 118 साल से मालगुजारी दे रहे हैं लेकिन जमीन बेच नहीं सकते। यही हाल रहा तो किसान, किसानी छोड़कर आत्महत्या करने को मजबूर हो जाएंगे। राज्य गजट में हुई विसंगतियों के संबंध में बताया कि काबर के बीच में जयमंगला माता का मंदिर एवं टीला है। उसमें खेसरा संख्या एक से ग्यारह तक में रकवा एक सौ 81 बीघा जमीन है जिसमें से करीब एक सौ बीघा जमीन ली गयी और रैयतों को बाकी 81 बीघा जमीन से बेदखल कर दिया गया। उन्होंने बताया कि किसानों ने कई बार डीएम से पीएम तक गुहार लगाई। 18 मई 2017 को मंझौल आए तत्कालीन राज्यपाल (वर्तमान राष्ट्रपति) रामनाथ कोविंद तक भी मामले को पहुंचाया गया। 18 फरवरी 2018 को उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को भी किसानों की पीड़ा से अवगत कराया गया। सांसद डॉ भोला सिंह ने सदन में आवाज उठाई लेकिन कहीं से कोई फायदा नहीं। अब एक बार फिर चुनाव सामने है तो किसानों ने सवाल उठाया है कि वोट तो आखिर ले लेते हैं नेताजी, कह भी देते हैं कि आपकी जमीन को अधिसूचित क्षेत्र से मुक्त करवा दिया जाएगा लेकिन इसके लिए सार्थक पहल नहीं करते।