नैमिषारण्य में नाभि गया का महत्व,पिंड दान करने से पितरों को मिलती है मुक्ति

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सीतापुर: गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस में तीरथ वर नैमिष विख्याता, अति पुनीत साधक सिद्धि दाता। इस चौपाई के वर्णन से नैमिषारण्य के महत्व को समझा जा सकता है।

वेदों और पुराणों की रचना स्थली, 33 करोड़ देवी-देवताओं की वासस्थली और 88 हजार ऋषियों-मुनियों की तपस्थली नैमिषारण्य तीर्थ को सभी तीर्थों में सबसे पुनीत माना जाता है।

यहां पर प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन पूजन करने आते हैं।

यही नहीं यह तीर्थ अनेक धार्मिक कार्यों के लिए जाना जाता, जिसमें पितृपक्ष में इस तीर्थ का अलग ही महत्व होता है।

इसकी मान्यता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां पितृ पक्ष में श्रीलंका, नेपाल और भूटान के अलावा देश के चंडीगढ़, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश के कई जिलों आदि से यहां आकर लोग अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए पिंडदान अथवा श्राद्ध पूजन करने आते हैं।

पितरों के मोक्ष के लिए पुराणों में है नैमिषारण्य का वर्णन

स्कंद पुराण में पितृकार्यों के लिए तीन ही तीर्थ प्रधान माने गए हैं, जिनमें एक बद्रीनाथ, दूसरा बिहार का गया और तीसरा उप्र का नैमिषारण्य है जो पितरों के तर्पण के लिए विशेष महत्व रखते हैं।

पितरों की तृप्ति के लिए नैमिषारण्य तीर्थ को प्रधान माना गया हैं क्योंकि जो व्यक्ति धनाभाव के कारण अपने पितरों के कार्य के लिए बद्रीनाथ, गया नहीं जा पाते वह सिर्फ नैमिषारण्य में ही पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति दिला पाते हैं।

नैमिषारण्य तीर्थ में जो व्यक्ति अपने पितरों के नाम से पिंडदान करता है मान्यता है कि उनके पित्र बैकुण्ठधाम जाते हैं।

शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में जो व्यक्ति ब्राह्मणों एवं गरीबों को भोजन कराता और उनको दान देता उसका फल उनके पितरों को मिलता है।

पितरों को लेकर शास्त्रों और पुराणों में वर्णित कथा

मां ललिता देवी मंदिर के प्रधान पुजारी एवं कालीपीठ के पीठाधीश्वर गोपाल शा


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