अक्षत दीप स्तंभ है गोदरगावां का विप्लवी पुस्तकालय

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विशेष … बेगूसराय,02जनवरी(हि.स.)। 1930-31 का जमाना, स्वतंत्रता संग्राम की आंच में सुलगता इलाका। भगत सिंह की फांसी, चंद्रशेखर आजाद का बलिदान एवं बेगूसराय में आजादी के दीवाने छह युवकों की मौत से आक्रोशित, उद्वेलित और प्रेरित युवकों की टोली ने आजादी का अलख जगाने के लिए केंद्रस्वरुप गोदरगावां ठाकुरबाड़ी में महावीर पुस्तकालय की स्थापना की। धार्मिक एवं जातीय भेद मिट गए। ठाकुरबाड़ी भारत माता का मंदिर बन गया। देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना बलवती हो गई तथा स्तरीय पुस्तकें पत्र-पत्रिकाएं जमा होने लगे। बदलते समय के साथ उस पुस्तकालय का नाम हो गया विप्लवी पुस्तकालय| 32 हजार से अधिक पुस्तकों के साथ जिला, बिहार ही नहीं, यह देश के चर्चित पुस्तकालयों में यह शुमार हो गया। कई बार यहां आ चुके कमलेश्वर के शब्दों में ‘यहां आता हूं तो लगता है घर- परिवार आया हूं। यहां आते ही बलिदानी भगत सिंह मिल जाते हैं, राहुल जी, दिनकर जी, नागार्जुन, यशपाल, निराला जी, प्रेमचंद, रेणू आदि से एक साथ मुलाकात हो जाती है। प्राचीन नालंदा अब नहीं रहा पर हमारे पास शब्द संस्कृति का आधुनिक गोदरगावां तो है।’ बेगूसराय जिला मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर दूर मटिहानी प्रखंड में गोदरगावां गांव के प्रवेश द्वार पर विशालकाय चन्द्रशेखर आजाद, पुस्तकालय परिसर में भगत सिंह, प्रेमचंद, मीराबाई, कबीर एवं डॉ पी गुप्ता की प्रतिमा इतिहास व संस्कृति का बोध कराती है। 1942 के आंदोलन में आसपास के गांव के लोगों ने भी में भाग लिया तथा लाखों स्टेशन पर रेल की पटरी उखाड़ी, स्टेशन जला दिया था। तब अंग्रेजों ने सामूहिक जुर्माना वसूला था। 1946 में डॉ श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में गठित अंतरिम सरकार ने अंग्रेजों द्वारा वसूली गई जुर्माना की राशि आठ सौ रुपया वापस करवा दिया तो लोगों ने स्मारक स्वरूप पुस्तकालय भवन निर्माण का निर्णय लिया। 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली और उसी दिन से स्थानीय सत्यनारायण शर्मा द्वारा दान की गई जमीन पर पुस्तकालय भवन का निर्माण शुरू कर दिया गया। जो आज भी पुस्तकालय के रूप में अंधकार में जीवन का अलौकिक प्रकाश बिखेर रहा है तथा 1986 में तत्कालीन डीएम राम सेवक शर्मा एवं अन्य के सहयोग से बने आधुनिक भवन में संचालित है। पुस्तकालय के वार्षिक समारोह में राज्यपाल डॉ ए आर किदवई, नामवर सिंह, कमलेश्वर, प्रभाष जोशी, कुलदीप नैयर, हबीब तनवर, डॉ रामजी सिंह, रेखा अवस्थी, अंजुमन आरा, शंकर दयाल सिंह, हरिवंश, शशि शेखर, एबी वर्धन, केदारनाथ सिंह, ललित सुरजन जैसे सैकड़ों साहित्यकार, कवि, पत्रकार, जनप्रतिनिधि, अधिकारी यहां आकर संस्कृत-शिक्षा-संस्कृति एवं संस्कार को परिभाषित कर चुके हैं। सचिव आनंद प्रसाद सिंह एवं पुस्काध्यक्ष मनोरंजन विप्लवी बताते हैं कि आधुनिक हॉल, प्रोजेक्टर से युक्त इस पुस्तकालय के बाइस सौ सदस्य हैं तथा हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू की 32 हजार से अधिक पुस्तकों का संग्रह है। प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को भगत सिंह के बलिदान दिवस पर यहां दो दिवसीय साहित्य का मेला लगता है, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से हजारों की भीड़ जुटती है। सिन्हा लाइब्रेरी पटना के बाद यह बिहार का दूसरा सबसे बड़ा पुस्तकालय है। विभिन्न रोजगारपरक प्रशिक्षण शुरू करने के लिए प्रयास किया जा रहा है। बीते वर्ष 2017 में 24 मई को यहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आए तो, भव्यता एवं व्यवस्था देख विशिष्ट पुस्तकालय दर्जा दिया। जिलाधिकारी राहुल कुमार के शब्दों में ‘उत्कृष्ट एवं जन सहयोग से खड़ी की गई यह संस्कृति की इमारत, बिहार ही नहीं देश के लिए उदाहरण है।’


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