24 घंटे सक्रिय कोविड लहर में अंतिम संस्कार के लिए सैन्यकर्मियों की टीम
नई दिल्ली, 19 मई (हि.स.)। तीनों सेनाओं के लिए आरक्षित दिल्ली कैंट स्थित बराड़ स्क्वेयर श्मशान स्थल में कोविड की दूसरी लहर के दौरान 24 घंटे अंतिम संस्कार करने के निर्देश दिए गए हैं। सेना ने अपने परिवार के सदस्यों को ‘सभ्य अंतिम संस्कार’ प्रदान करने के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ की स्थापना की है। इसके अलावा यहां एक बार में 20 शवों का संस्कार करने के लिए बुनियादी ढांचे को बढ़ाया जा रहा है। सैन्यकर्मियों की टीम 24 घंटे सक्रिय है ताकि कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान सैनिकों और उनके आश्रितों का अंतिम संस्कार सुनिश्चित किया जा सके।
ब्रिटिशकाल में स्थापित दिल्ली छावनी में भारतीय सेना मुख्यालय, सेना गोल्फ कोर्स, रक्षा सेवा अधिकारी संस्थान, सैन्य आवास, सेना और वायुसेना पब्लिक स्कूल और विभिन्न अन्य रक्षा-संबंधी प्रतिष्ठान बनाये गए थे। छावनी में ही सेना अनुसंधान और रेफरल अस्पताल भी है, जो भारत के सशस्त्र बलों का एक तृतीयक देखभाल चिकित्सा केंद्र है। इसी के साथ यहां सेना, वायुसेना और नौसेना के कर्मियों के अंतिम संस्कार के लिए बराड़ स्क्वेयर श्मशान स्थल बनाया गया था। यहां अब तक सिर्फ चार अंतिम संस्कार किये जाने की व्यवस्था थी लेकिन कोविड की दूसरी लहर के दौरान 19 अप्रैल तक चार चिता की क्षमता बढ़ाकर 15 कर दी गई। अब इसे बढ़ाकर एक साथ 20 अंतिम संस्कार किये जाने की व्यवस्था की जा रही है।
सेना ने कोविड से मरने वाले सशस्त्र बलों के बुजुर्गों, आश्रितों का 24 घंटे अंतिम संस्कार करने के निर्देश दिए हैं। कोविड संकट के समय बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए दिल्ली क्षेत्र के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) लेफ्टिनेंट जनरल विजय कुमार मिश्रा ने नागरिक कर्मचारियों और अधिक वाहनों को काम पर रखने का आदेश दिया है। सेना ने दिल्ली छावनी स्थित बराड़ स्क्वेयर श्मशान स्थल पर अपने ही परिवार के सदस्यों को ’सभ्य अंतिम संस्कार’ प्रदान करने के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ की स्थापना की है। सेना वायु रक्षा कोर के अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल विशाल शर्मा को अक्टूबर, 2019 में बरार स्क्वायर श्मशान स्थल का प्रभारी बनाया गया था। लेफ्टिनेंट कर्नल शर्मा और उनके साथ तीन सैन्यकर्मियों की टीम 24 घंटे सक्रिय है ताकि कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान सैनिकों और उनके आश्रितों का अंतिम संस्कार सुनिश्चित किया जा सके।
बराड़ स्क्वेयर में अंतिम संस्कार के लिए चिता स्थलों की कमी होने की वजह से लेफ्टिनेंट कर्नल शर्मा को इस बीच सिविल प्रशासन के श्मशान घाटों के साथ भी समन्वय करना पड़ा है। उनका कहना है कि हम सैनिक लोग मानसिक और भावनात्मक रूप से मजबूत रहने के लिए प्रशिक्षित होते हैं लेकिन इस बार कोविड वायरस से ज्यादा लोगों को प्रभावित होते देखकर परेशान होना पड़ रहा है। इसीलिए हम यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि सैन्य परिवार के सदस्यों का अंतिम संस्कार शांति से हो सके। कोविड की पहली लहर के दौरान ज्यादा लोग हताहत नहीं हुए थे लेकिन इस बार मुख्य रूप से सह-रुग्णता वाले बुजुर्ग और उनके आश्रितों के अलावा कुछ सेवारत सैनिक भी प्रभावित हो रहे हैं।
लेफ्टिनेंट कर्नल शर्मा का कहना है कि उनकी और टीम की जिम्मेदारी महज यहां आने वाले शवों का दाह संस्कार करना ही नहीं है, बल्कि सैन्य अस्पतालों में निधन होने पर शव को घर तक पहुंचाने और परिवहन के लिए अस्पतालों के साथ समन्वय करने की भी है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और उसके बाहर से आने वाले शवों के मामले में दिल्ली पुलिस के साथ भी संपर्क करना पड़ता है। लेफ्टिनेंट कर्नल शर्मा का कहना है कि उनके दिन की शुरुआत सुबह करीब साढ़े पांच बजे से होती है क्योंकि दाह संस्कार के बाद शव लगभग 15-16 घंटे तक जलते रहते हैं और मृतजनों के परिवार सुबह से ही अस्थियां लेने आते हैं। कभी-कभी रात को भी जागना पड़ता है क्योंकि कई लोग न केवल दाह संस्कार बल्कि अवशेषों को ले जाने में भी मदद मांगते हैं।
बराड़ स्क्वेयर श्मशान स्थल पर सेवारत या सेवानिवृत्त सैनिक और वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के अंतिम संस्कार के समय उन्हें औपचारिक रूप से पुष्पांजलि देने के लिए एक सैन्य दल भी होता है। यहां अंतिम संस्कार के लिए जूनियर या सीनियर होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि सेना की संस्कृति सबके लिए बराबर होती है। गैर-हिंदू मामलों के बारे में लेफ्टिनेंट कर्नल शर्मा की टीम सभी औपचारिकताओं के लिए परिवार के लोगों के साथ संपर्क करती है और शव को उनकी पसंद के कब्रिस्तान में ले जाती है। कुल मिलाकर इस चुनौतीपूर्ण समय में जिस तरह से भारतीय सेना ने सेवारत और पूर्व सैनिकों का सभ्य और सम्मानजनक तरीके से अंतिम संस्कार सुनिश्चित किया है, वह अभूतपूर्व और दिल को छू लेने वाला है।