सियासत के लिए धर्म पर हल्की टिप्पणी से बचिये नेताजी

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धर्म का क्षेत्र बहुत व्यापक होता है। इसको समझने के लिए ज्ञान के साथ-साथ भावना के धरातल पर आना पड़ता है। सियासत के खिलाड़ियों को इस पर हल्की टिप्पणी से बचना चाहिए। लेकिन वोटबैंक की राजनीति वाले इसकी परवाह नहीं करते। सीताराम येचुरी ने यही साबित किया है। अपने को कथित सेक्युलर दिखाने की बेकरारी में उन्होंने हिंदुओं को हिंसक बताया है। इस तरह सीताराम येचुरी ने अपने को रावण, कंस और दुर्योधन की आधुनिक श्रेणी में शामिल कर लिया है। यह भी साबित हुआ कि रामायण और महाभारत को समझने की क्षमता उनमें नहीं है। उसमें तो भगवान राम और कृष्ण ने हिंसा को टालने के अंतिम सीमा तक प्रयास किया था।
येचुरी ने अपना नाम सीताराम रखने वालों का भी अपमान किया है। उन्होंने अपनी आस्था के कारण इनका नाम सीताराम रखा होगा। अब यही सीताराम येचुरी यह बताना चाहते हैं कि उनके पूर्वज हिंसक थे। महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध टालने के प्रयास किये। पांडवों को मात्र पांच गांव देने का प्रस्ताव रखा। दुर्योधन से हिंसा की बात न करने का आग्रह किया। कहा, आप अच्छे परिवार के राजकुमार हैं और अच्छी तरह से पाले गए हैं। आप ऐसी भयावह अर्थात युद्ध व हिंसा की बातें क्यों करते हैं? लेकिन दुर्योधन युद्ध के लिए उतावले थे। उन्होंने कहा, कि मैं धर्म को जानता हूं, लेकिन इसका अभ्यास करने में असमर्थ हूं। अधर्म भी मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूं, लेकिन इसे करने से रोकने में असमर्थ हूं। अर्थात इसी में मेरी प्रवृत्ति है।
जनमी धर्मम् न च मुझे प्रवरतिथ, जानमधर्मम् न च मुझ नितप्रति।
कीनापि देवेन हेतो स्तिथेना यथा नियुकतोस्मि तत्र करोमि।।
कार्ल मार्क्स ने रिलीजन को अफीम बताया था। उन्होंने अपना यह कथन दुनिया के सभी रिलीजन पर लागू किया था। लेकिन भारत में उनके भक्तों ने हमले के लिए केवल एक धर्म का चयन किया है। प्रगतिशील बुद्धिजीवियों से लेकर कम्युनिस्ट नेताओं का आक्रमण केवल हिन्दू धर्म पर होता है। क्या मजाल कि ये किसी अन्य मजहब पर टिप्पणी कर दें। क्योंकि, ऐसा करने का ये अंजाम बखूबी जानते हैं। दूसरी ओर हिन्दू धर्म की निन्दा से ये सेक्युलर बन जाते हैं। इनकी नजर में हिन्दू धर्म की विशेषताओं को बताने वाले कम्युनल हैं, हिन्दू धर्म पर हमला करने वाले सेक्युलर हैं। इसके अलावा इन्हें मार्क्सवादी इतिहास में दर्ज हिंसा भी दिखाई नहीं देती। मार्क्स के विचारों से प्रेरित पहली क्रांति रूस में हुई थी। 1917 की इस रक्तरंजित क्रांति में लाखों की संख्या में लोग मारे गए थे। दूसरी क्रांति 1949 में चीन में हुई थी। उसमें भी खूब हिंसा हुई। उनका शासन भी निरंकुश व हिंसक था। विरोधियों के साथ बर्बर व्यवहार की लंबी श्रृंखला है।
भारत के वामपंथी भी इन्हीं से प्रेरित रहे हैं। यहां प्रजातांत्रिक व्यवस्था में रहना इनकी विवशता है, लेकिन इनकी मूल वैचारिक प्रवृत्ति वही है। यही कारण है कि पश्चिम बंगाल व केरल में जब इनका शासन रहा, उसमें राजनीतिक हिंसा होती रही। केरल में आज भी इसके उदाहरण दिखाई देते हैं। वामपंथियों की इस समय एक अन्य विवशता भी है। भारत में उनका अस्तित्व दांव पर लगा है। तीस वर्ष उन्होंने पश्चिम बंगाल में शासन किया। केंद्र की राजनीति में भी जब-तब आनंद लिया। मौका मिलने पर विभिन्न संस्थाओं में वामपंथियों को भरने कार्य किया। अब पश्चिम बंगाल से उनके पांव उखड़ चुके हैं। उन्हीं के तौर-तरीकों से ममता बनर्जी वहां शासन चला रही हैं। केवल केरल में उनकी सरकार बची है। ऐसे में उनकी बौखलाहट बढ़ी है। वोटबैंक की राजनीति में वे किसी भी हद तक गिर सकते हैं।
सीताराम येचुरी ने इसी का उदाहरण पेश किया है। वोटबैंक की राजनीति को ध्यान में रखकर उन्होंने हिन्दू धर्म पर हमला बोला है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी का बयान दुस्साहसपूर्ण है। उन्होंने हिन्दू धर्म ग्रन्थों का अपमान किया है। इसी के साथ पूरे हिन्दू समाज को हिंसक करार दिया है। इस समय विश्व में आतंकवाद के खिलाफ माहौल बन रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ इस संबन्ध में प्रस्ताव पारित कर रहा है। लेकिन सीताराम येचुरी ने पाकिस्तानी आतंकवाद पर एक शब्द नहीं बोला। उनको हिन्दू हिंसक दिखाई दे रहे हैं। हद है। इस बयान से उन्होंने कम्युनल कार्ड चला है। इसी के साथ वह पाकिस्तान को खुश करने वाला बयान भी दे रहे हैं। यूपीए सरकार में यही कार्य दिग्विजय सिंह, सुशील कुमार शिंदे, चिदम्बरम आदि भी कर चुके हैं। उन्होंने ही हिन्दू आतंकवाद का शिगूफा छोड़ा था। यह मुद्दा पाकिस्तान का मददगार बन गया था। वह भारत से कहने लगा कि पहले हिन्दू आतंकवाद रोके। हिन्दू आतंकवाद जब कुछ होता ही नहीं है, तब उसे रोकने का सवाल ही कहां उठता है। लेकिन कांग्रेस के नेता यह मुद्दा पाकिस्तान को सौंप चुके थे। येचुरी के बयान का समय देखिए। इस समय पाकिस्तान आतंकवाद पर घिरा है। येचुरी उसे मुद्दा दे रहे हैं।
सीताराम के बयान की तीखी प्रतिक्रिया हुई। हरिद्वार में कुछ साधु-संतों के साथ बाबा रामदेव, एसएसपी से मिले और येचुरी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। शिवसेना ने भी येचुरी के बयान की भर्त्सना की है। संजय राउत ने कहा है कि सबसे पहले उन्हें अपना नाम सीताराम बदलना चाहिए। रामायण और महाभारत ने एक संदेश दिया, बुराई पर अच्छाई की जीत, असत्य पर सत्य की जीत। राम, कृष्ण और अर्जुन सत्य के प्रतीक हैं। यदि येचुरी इस तरह से चीजों का अर्थ निकालते हैं तो कल जब हमारे जवान पाकिस्तान के खिलाफ लड़ेंगे तो वे कहेंगे कि हमारे जवान हिंसा करते हैं। येचुरी की विचारधारा का केवल एक ही उद्देश्य है, हिंदुओं पर हमला करना और खुद को प्रमुख धर्मनिरपेक्ष दिखाना। इस प्रकार की धर्मनिरपेक्षता बहुसंख्यकों को अपमानित करने वाली है। इसकी निन्दा की जानी चाहिए।

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