सांस्कृतिक मूल्यों को जीवित रखने के लिए मातृभाषाओं का जीवित रखना जरूरीः कौल

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हरिद्वार, 26 फरवरी (हि.स.)। अगर हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों को जीवित रखना चाहते हैं तो हमें अपनी मातृभाषाओं को जीवित रखना होगा। यह सही है कि भौतिक विकास के साथ-साथ कुछ भाषाएं आगे चल पाती हैं और कुछ नहीं। मनुष्य में एक प्रवृत्ति उपनिवेशवाद की होती है। ये विचार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के परिप्रेक्ष्य में आयोजित एक ऑनलाइन समारोह में वरिष्ठ लेखक, लद्दाख और जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष जवाहर लाल कौल ने व्यक्त किए।
लद्दाख और जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष कौल ने कहा कि एक जाति दूसरी जाति का दमन करती है। उस पर अपनी प्रभुता स्थापित करती है और उसके मौलिक अधिकारों का हनन करती है। जैसे कि अंग्रेजों ने भारत का किया। यह हनन सिर्फ भौतिक नहीं होता, भाषिक भी होता है। इसका उदाहरण अंग्रेजी है। अंग्रेजी का वर्चस्व दुनिया में तब बढ़ा जब अंग्रेजों का वर्चस्व बढ़ा। यह भाषाई वर्चस्व यानी कि विजित जाति की भाषा पर नियंत्रण का प्रयास उपनिवेशवादियों के लिए इसलिए जरूरी हो जाता है क्योंकि जब तक अपने मूल संस्कार हैं, कोई व्यक्ति दास बनने के लिए तैयार नहीं होता।
ये विचार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के परिप्रेक्ष्य में आयोजित एक ऑनलाइन समारोह में वरिष्ठ लेखक तथा लद्दाख एवं जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष जवाहर लाल कौल ने व्यक्त किए। यह आयोजन संस्थान के राजभाषा प्रकोष्ठ के तत्वावधान में किया गया। मातृभाषाओं को सुरक्षित रखने की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि भाषाएं ही वह तत्व हैं जो हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाती हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्थान के निदेशक प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी ने कहा कि यह एक ऐसा दिवस है जो हम सबको आपस में जोड़ता है। प्रो. चतुर्वेदी ने संस्थान के छात्रों, शिक्षकों, कर्मचारियों एवं अधिकारियों को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की बधाई दी। उन्होंने कहा कि भाषाओं का मूल तात्पर्य है सभी को जोड़ना। हमें सारी भाषाओं का आदर इसलिए करना चाहिए कि सबमें कुछ न कुछ महत्वपूर्ण है।
इस आयोजन के क्रम में पिछले दिनों आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं के परिणामों की घोषणाएं कुलशासक (प्रशासन) प्रो. रवि कुमार, कुलशासक (छात्र कल्याण) प्रो. मुकेश कुमार बरुआ तथा कुलसचिव प्रशांत गर्ग ने की। आयोजन के अंतर्गत बहुभाषी काव्यपाठ का कार्यक्रम भी हुआ। इसमें प्रो. एविक भट्टाचार्य ने बांग्ला, महावीर सिंह ‘वीर’ ने हिंदी तथा प्रो. पीके झा ने मैथिली में काव्यपाठ किया। प्रो. अनिल कुमार गौरीशेट्टी ने संस्कृत तथा सुश्री रोना बनर्जी ने बांग्ला में गीत सुनाए।
संचालन प्रो. मनोज त्रिपाठी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए प्रो. नागेंद्र कुमार ने कहा कि मातृभाषा मां समान होती है और हम सभी को अप्नी माँ बहुत प्रिय होती है। इसलिए जितना आदर हम अपनी मां का करते हैं, उतना ही दूसरों की मां को भी देना चाहिए।


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