शिक्षा में सुधार से ही रुकेगा कदाचार : सियाराम पांडेय ”शांत”
जीवन एक परीक्षा है, जिसमें कदम-कदम पर इंसान उत्तीर्ण होने की कोशिश करता है। अपनी प्रामाणिकता, उपादेयता साबित करता है। वह पास भी होता है, फेल भी होता है। गलतियां करता है, उससे सीखता है और आगे बढ़ता है। छात्र जीवन इंसान की जिंदगी का स्वर्णिम पल होता है। इस दौरान की गई छोटी सी भूल भी जिंदगी भर दुख देती है। इस बात को राजनेताओं को समझना चाहिए, लेकिन जिस तरीके से नकल का कारोबार हाल के कुछ वर्षों में विकसित हुआ है, उस पर रोक लगाए बिना देश के सम्यक विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश की परीक्षा की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के यथासंभव प्रयास किये। परीक्षा केंद्रों में सीसीटीवी कैमरे भी लगवाये। परीक्षकों पर भी नकल न होने देने का दबाव डाला। उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा खुद परीक्षा केंद्रों में पारदर्शी परीक्षा व्यवस्था का जायजा लेने पहुंचे। कभी राजनाथ सिंह और कल्याण सिंह की सरकार में नकलविहीन परीक्षा सुनिश्चित करने के प्रयास हुए थे लेकिन सपा और बसपा राज में यह व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो गई। सपा ने तो उस समय भी छात्रों और अध्यापकों को जेल भेजे जाने की आलोचना की थी। और नवयुवकों को लुभाने के लिए नकल को एक तरह से हरी झंडी ही दे दी थी। सपा राज में परीक्षार्थी पास तो हो गये लेकिन योग्यता और क्षमता के धरातल पर वे कितना आगे बढ़ पाये, इस सवाल का जवाब किसी के भी पास नहीं है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद एक बार फिर परीक्षा की शुचिता और पारदर्शिता की चिंता की गयी है। योगी सरकार में नकलची पकड़े तो गये लेकिन उन्हें जेल नहीं भेजा गया। व्यवस्था ही ऐसी चाक-चौबंद की गयी कि नकल का ग्राफ अपने आप नीचे चला गया। संभव है, इसका असर उत्तीर्ण प्रतिशत पर भी देखने को मिले। संस्कृत शिक्षा बोर्ड की परीक्षा में भी सरकार की सख्ती देखते ही बन रही है। अब योगी सरकार की नजर मदरसा शिक्षा परिषद की परीक्षाओं पर है। सरकार मदरसा बोर्ड की परीक्षा में बड़े पैमाने पर सुधार करने को तत्पर है। पहली बार यूपी बोर्ड की तर्ज पर वहां भी परीक्षाएं होनी हैं। परीक्षा में नकल न हो सके, सरकार ऐसा चाहती है। इसके पीछे सरकार की मंशा है कि परीक्षा बेदाग होगी तो उससे काबिल छात्र निखरकर सामने आयेंगे। जो असफल होंगे, वे अगले साल मेहनत कर अपनी मेधा-क्षमता का प्रदर्शन करेंगे। इससे प्रदेश के नौनिहालों में ईमानदारी, जिम्मेदारी, बहादुरी और धैर्य की भावना विकसित होगी। मदरसों के फर्जीवाड़े पर अंकुश लगाने के बाद योगी सरकार का यह प्रयोग अल्पसंख्यकों की राजनीति करने वाली पार्टियों को अटपटा जरूर लग सकता है, वे उसे अल्पसंख्यकों के प्रति योगी सरकार की दुर्भावना भी करार दे सकते हैं, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शिक्षा में सुधार की प्रक्रिया तेज कर दी है। उनकी कोशिश उच्च शिक्षा केंद्रों में भी नकल रहित परीक्षा कराने की है। निजी विश्वविद्याालयों और महाविद्यालयों में आधार कार्ड के डिटेल के साथ अध्यापकों की सूची मांगी गई है। इस आधार पर पिछले दिनों अवध के काॅलेजों और कानपुर विश्वविद्यालय से संबद्ध काॅलेजों में एक साथ पढ़ा रहे सैकड़ों अध्यापकों का भंडाफोड़ हुआ है। सरकार जागरुक हो तो गड़बड़ियां देर से ही सही,सामने आ ही जाती हैं। जो काम आज हो रहा है, यह पहले ही हुआ होता तो उत्तर प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था की तस्वीर कुछ और होती। प्रदेश सरकार शुरुआत से ही जिस तरह मदरसों को दुरुस्त करने में लगी है, ऑनलाइन पोर्टल बनाकर फर्जी मदरसों को सिस्टम से अलग करने में कामयाब हुई है, उसे किसी बड़ी उपलब्धि के तौर ही देखा जाना चाहिए। मुंशी, मौलवी, आलिम, कामिल एवं फाजिल की परीक्षाएं अप्रैल में होनी हैं। इन परीक्षाओं को भी नकलविहीन कराकर सरकार समाज में यह संदेश देना चाहती है कि वह समाज के हर तबके के साथ समान दृष्टि रखती है। भेदभाव का तो सवाल ही नहीं पैदा नहीं होता। यह भी सच है कि योगी सरकार की तमाम तैयारियों के बाद भी बोर्ड परीक्षाओं के पेपर लीक हुए और कई जिलों में इस निमित्त उसे नए सिरे से परीक्षा करानी पड़ रही है। जहां परीक्षाओं में खुली अराजकता थी, वहां नकल को नियंत्रित करने की सोच भी उल्लेखनीय और सराहनीय है। अल्पसंख्यक कल्याण एवं वक्फ बोर्ड की प्रमुख सचिव मोनिका एस. गर्ग भी मानती है कि मदरसा शिक्षा परिषद की परीक्षाएं मजाक बन कर रह गई थीं। उन्हें इस बार सुधारा जा रहा है। नकल न हो, इसके लिए तैयारियां की जा रही हैं और जिलाधिकारी की मदद ली जा रही है। नकल विहीन परीक्षा तो ठीक है लेकिन इसके लिए पठन-पाठन के माहौल में भी सुधार की जरूरत है। स्कूलों में विद्वान अध्यापकों की नियुक्ति होनी चाहिए और उनके दैनंदिन काम का मूल्यांकन भी किया जाना चाहिए। पढ़ाई की व्यवस्था में सुधार हो जाए। सरकारी और निजी काॅलेजों में अध्ययन और अध्यापन का सिलसिला बदस्तूर कायम हो जाए तो नकल की जरूरत ही न पड़े। केवल माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, संस्कृत शिक्षा परिषद और मदरसा बोर्ड पर ही नकेल कसने की जरूरत नहीं है। सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड की परीक्षाओं पर भी ध्यान देने की जरूरत है। उत्तर प्रदेश में कई निजी काॅलेज लीज पर ली गई सरकारी जमीन पर संचालित हो रहे हैं लेकिन गरीब छात्रों को निःशुल्क या कम शुल्क लेकर पढ़ाने का उनका प्रतिशत लगभग शून्य के बारबर हैं। इस बावत भी ध्यान दिये जाने की जरूरत है। योगी सरकार ने इस बात का दावा भी किया था कि वह निजी स्कूलों में शुल्क वृद्धि नहीं होने देगी लेकिन शिक्षा माफिया मानने को तैयार नहीं हैं। बिना पढ़े पास कराने का खेल उत्तर प्रदेश में जोरों से चल रहा है। नकल माफिया इस क्षेत्र में प्रमुखता से सक्रिय हैं। सरकार जहां कौशल विकास को प्रोत्साहित कर रही है, वहीं नकल माफिया नौनिहालों को तिकड़मबाज बना रहे हैं। प्रतियोगी परीक्षा तक के प्रश्नपत्र लीक हो जाते हैं। इसका मतलब शिक्षा विभाग और चयन संस्थाओं से जुड़े अधिकारी भी इस खेल में शामिल हैं। बेहतर होता कि सरकार इस रैकेट का भी पर्दाफाश करती। सरकार ने बेहतरी के प्रयास तो शुरू कर दिए हैं, लेकिन इस सिलसिले को दूर तक ले जाने की जरूरत है। (हिन्दुस्थान समाचार)