वायुसेना की नई ताकत ‘चिनूक’
भारतीय वायुसेना की ताकत बढ़ाने के लिए दुनियाभर के ताकतवर देशों में लोकप्रिय ‘चिनूक’ हेलीकॉप्टर वायुसेना के बेड़े में शामिल हो गया। हालांकि वायुसेना को अभी अमेरिका में निर्मित ये चार हेलीकॉप्टर ही मिले हैं। शेष 11 चिनूक अगले वर्ष मार्च तक मिल जाने की संभावना है। भारत द्वारा सितम्बर 2015 में चिनूक बनाने वाली अमेरिकी कम्पनी ‘बोइंग’ के साथ 15 सीएच-47एफ चिनूक हेलीकॉप्टर खरीदने के लिए 8048 करोड़ रुपये का करार किया गया था। वायुसेना के बेड़े में शामिल हुआ चिनूक ऐसा पहला अमेरिकी हेलीकॉप्टर है, जो बहुत अधिक वजन उठाने में सक्षम है। यह बख्तरबंद गाड़ियां और यहां तक कि 155 एमएम की होवित्वर तोप को लेकर भी उड़ सकता है। इस हेलीकॉप्टर के भारतीय वायुसेना में शामिल होने के बाद वायुसेना के इतिहास में यह पहली बार होगा, जब भारतीय वायुसेना की एक स्क्वाड्रन में अमेरिकी तथा रूसी हेलीकॉप्टर एक साथ उड़ान भरते दिखेंगे। वायुसेना प्रमुख का कहना है कि इन हेलीकॉप्टरों तथा इसी साल वायुसेना में शामिल होने जा रहे राफेल से वायुसेना को मजबूती मिलेगी। एयर चीफ मार्शल बी एस धनोआ अगर चिनूक हेलीकॉप्टर को देश की सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों के मद्देनजर बेहद अहम बता रहे हैं तो यह समझ लेना भी जरूरी है कि आखिर इस हेलीकॉटर में ऐसी क्या खासियत है, जो इसे इस कदर बेमिसाल बनाता है।
इसका ‘चिनूक’ नाम अमेरिकी मूल-निवासी चिनूक से लिया गया है। यह वही हेलीकॉप्टर है, जिसके जरिये अमेरिका ने पाकिस्तान में छिपे दुर्दान्त आतंकी ओसामा बिन लादेन को मौत की नींद सुलाया था। वियतनाम और फॉकलैंड युद्ध के अलावा लीबिया, ईरान, अफगानिस्तान, इराक इत्यादि में भी यह बड़ी और निर्णायक भूमिका निभा चुका है। सीएच-47 चिनूक एक ऐसा एडवांस्ड मल्टी मिशन हेलीकॉप्टर है, जो भारतीय वायुसेना को बेजोड़ सामरिक महत्व की हैवी लिफ्ट क्षमता प्रदान करेगा। मानवीय सहायता और आपदा राहत कार्यों में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा। यह बहुद्देश्यीय हेलीकॉप्टर बहुत तेज गति से 20 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरने और 11 टन तक का वजन ले जाने में सक्षम है। इसका इस्तेमाल दुर्गम और अत्यधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर सेना के जवानों, हथियारों, मशीनों तथा अन्य प्रकार की रक्षा सामग्री ले जाने में आसानी से किया जा सकता है। यह छोटे हेलीपैड तथा घनी घाटियों में भी उतर सकता है और किसी भी प्रकार के मौसम का सामना कर सकता है। इसमें एक साथ 45 सैनिकों के बैठने की व्यवस्था है। इसमें छोटी तोपें, बख्तरबंद गाड़ियां इत्यादि विभिन्न युद्धक सामान नीचे लटकाकर कहीं भी ले जाए जा सकते हैं।
चिनूक बहुत तेज गति से उड़ान भरता है। इसलिए बेहद घनी पहाड़ियों में भी यह सफलतापूर्वक कार्य कर सकता है। मल्टी रोल, वर्टिकल लिफ्ट प्लेटफॉर्म वाला यह हेलीकॉप्टर 315 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरने में सक्षम है। आमतौर पर वायुसेना के हेलीकॉप्टर में सिंगल रोटर इंजन होता है जबकि चिनूक में दो रोटर इंजन लगे हैं, जो एकदम नया कॉन्सेप्ट माना गया है। इसमें कोई टेल रोटर नहीं है बल्कि इसमें अधिक सामान ढोने के लिए दो मेन रोटर लगाए गए हैं। भारी सामान ढोने के लिए इसमें तीन हुक लगे हैं। रात में भी उड़ान भरने और ऑपरेशन को अंजाम देने में सक्षम यह हेलिकॉप्टर घने कोहरे तथा धुंध में भी बखूबी कारगर है। इसे बेहद कुशलता के साथ मुश्किल से मुश्किल जमीन पर भी ऑपरेट किया जा सकता है। चिनूक में मिसाइल वार्निंग सिस्टम का इस्तेमाल किया गया है तथा इसमें तीन मशीनगन भी सेट की गई हैं। लैंडिंग के समय जमीन पर मौजूद किसी भी प्रकार के खतरे से निपटने के लिए इनका इस्तेमाल होता है। वैसे तो चिनूक का आकार काफी बड़ा है लेकिन बड़े आकार के बावजूद अन्य हेलीकॉप्टरों के मुकाबले इसकी गति बेहद तेज होती है, जिससे दुर्गम स्थानों पर भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। इसका इस्तेमाल अन्य युद्धक हेलीकॉप्टरों की तरह सीधे तौर पर युद्ध में दुश्मन पर हमला करने में नहीं होता बल्कि यह सैनिकों तथा सैन्य साजो-सामान को दुर्गम स्थानों तक पहुंचाने के लिए उपयोग किया रहा है।
अमेरिका के अलावा जापान, आस्ट्रेलिया, नीदरलैंड इत्यादि करीब 25 देश अमेरिका द्वारा निर्मित चिनूक हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि भारत ने अपनी वायुसेना की ताकत बढ़ाने के लिए ऐसे हेलीकॉप्टरों पर भरोसा जताया है, जिन्हें पहले ही पूरी दुनिया में बहुत अच्छी तरह से आजमाया जा चुका है। चिनूक की शुरूआत करीब छह दशक पहले 1957 में हुई थी। 1962 में इसको अमेरिकी सेना में शामिल किया गया था। समय की मांग के साथ-साथ इन हेलीकॉप्टरों में पूर्णतया एकीकृत डिजिटल कॉकपिट मैनेजमेंट प्रणाली सहित रोटर ब्लैड, एडवांस्ड फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम इत्यादि कई बदलाव करते हुए इसके वजन को कम किया गया और इसकी तकनीक में सुधार करते हुए इसे इतना उन्नत बनाया गया कि यह अमेरिका के सबसे तेज हेलीकॉप्टरों में से एक माना जाता है। इसमें कॉमन एविएशन आर्किटेक्चर कॉकपिट तथा एडवांस्ड कॉकपिट प्रबंध जैसी विशेषताएं भी हैं। इस अमेरिकी हेलीकॉप्टर के विदेशी खरीददारों में सबसे पहला खरीददार नीदरलैंड था, जिसने 17 सीएच-47एफ हेलीकॉप्टर फरवरी 2007 में खरीदे थे। 2009 में कनाडा ने इसके 15 अपग्रेड वर्जन खरीदे थे जबकि उसी वर्ष दिसम्बर माह में ब्रिटेन ने 24 चिनूक हेलीकॉप्टर खरीदे थे। अगले साल आस्ट्रेलिया ने कुल 10 चिनूक खरीदे और 2016 में सिंगापुर ने 15 हेलीकॉप्टरों का सौदा किया था।
वायुसेना को इसी वर्ष सितम्बर माह से 22 अपाचे अटैक हेलीकॉप्टरों की भी आपूर्ति शुरू होने वाली है, जिनका सौदा 2015 में चिनूक के साथ ही किया गया था। कुछ ही माह पहले भारत ने रूस के साथ 37 हजार करोड़ रुपये की लागत से एस-400 एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल प्रणाली का सौदा भी किया था, जिसके बारे में वायुसेना प्रमुख ने कहा था कि एस-400 तथा राफेल वायुसेना के लिए ‘बूस्टर खुराक’ होगी। दरअसल मल्टी फंक्शन रडार से लैस एस-400 आज की तारीख में दुनियाभर में सर्वाधिक उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणालियों में से एक है, जो रूसी सेना में 2007 में सम्मिलित हुई थी। यह प्रणाली जमीन से मिसाइल दागकर हवा में ही दुश्मन की ओर से आ रही मिसाइलों को नष्ट करने में सक्षम है, जो एक साथ 36 लक्ष्यों और दो लॉन्चरों से आने वाली मिसाइलों पर निशाना साध सकती है और 17 हजार किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से 30 किलोमीटर की ऊंचाई तक अपने लक्ष्य पर हमला कर सकती है। इसकी रेंज 400 किलोमीटर है और यह 600 किलोमीटर की दूरी तक निगरानी करने की क्षमता से लैस है। इससे पाकिस्तान के चप्पे-चप्पे पर नजर रखना संभव हो सकेगा। यह किसी भी प्रकार के विमान, ड्रोन, बैलिस्टिक व क्रूज मिसाइल तथा जमीनी ठिकानों को 400 किलोमीटर की दूरी तक ध्वस्त करने में सक्षम है। इसके जरिये भारतीय वायुसेना देश के लिए खतरा बनने वाली मिसाइलों की पहचान कर उन्हें हवा में ही नष्ट कर सकेंगी।
हमारी वायुसेना दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायुसेना मानी जाती है। इस प्रकार चिनूक, अपाचे, राफेल तथा एस-400 मिलकर देश के रक्षा तंत्र को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ भारतीय वायुसेना के आधुनिकीकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित होंगे। ये हेलीकॉप्टर तथा विमान ऐसे समय में भारतीय वायुसेना की अभेद्य ताकत बनेंगे, जब भारत को देश की सुरक्षा के लिए इनकी सर्वाधिक जरूरत है। वायुसेना के बेड़े में इस तरह के हेलीकॉप्टरों और विमानों की मौजूदगी से सशस्त्र सेनाओं का मनोबल तो बढ़ेगा ही, वायुसेना अत्याधुनिक भी बनेगी।
इसका ‘चिनूक’ नाम अमेरिकी मूल-निवासी चिनूक से लिया गया है। यह वही हेलीकॉप्टर है, जिसके जरिये अमेरिका ने पाकिस्तान में छिपे दुर्दान्त आतंकी ओसामा बिन लादेन को मौत की नींद सुलाया था। वियतनाम और फॉकलैंड युद्ध के अलावा लीबिया, ईरान, अफगानिस्तान, इराक इत्यादि में भी यह बड़ी और निर्णायक भूमिका निभा चुका है। सीएच-47 चिनूक एक ऐसा एडवांस्ड मल्टी मिशन हेलीकॉप्टर है, जो भारतीय वायुसेना को बेजोड़ सामरिक महत्व की हैवी लिफ्ट क्षमता प्रदान करेगा। मानवीय सहायता और आपदा राहत कार्यों में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा। यह बहुद्देश्यीय हेलीकॉप्टर बहुत तेज गति से 20 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरने और 11 टन तक का वजन ले जाने में सक्षम है। इसका इस्तेमाल दुर्गम और अत्यधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर सेना के जवानों, हथियारों, मशीनों तथा अन्य प्रकार की रक्षा सामग्री ले जाने में आसानी से किया जा सकता है। यह छोटे हेलीपैड तथा घनी घाटियों में भी उतर सकता है और किसी भी प्रकार के मौसम का सामना कर सकता है। इसमें एक साथ 45 सैनिकों के बैठने की व्यवस्था है। इसमें छोटी तोपें, बख्तरबंद गाड़ियां इत्यादि विभिन्न युद्धक सामान नीचे लटकाकर कहीं भी ले जाए जा सकते हैं।
चिनूक बहुत तेज गति से उड़ान भरता है। इसलिए बेहद घनी पहाड़ियों में भी यह सफलतापूर्वक कार्य कर सकता है। मल्टी रोल, वर्टिकल लिफ्ट प्लेटफॉर्म वाला यह हेलीकॉप्टर 315 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरने में सक्षम है। आमतौर पर वायुसेना के हेलीकॉप्टर में सिंगल रोटर इंजन होता है जबकि चिनूक में दो रोटर इंजन लगे हैं, जो एकदम नया कॉन्सेप्ट माना गया है। इसमें कोई टेल रोटर नहीं है बल्कि इसमें अधिक सामान ढोने के लिए दो मेन रोटर लगाए गए हैं। भारी सामान ढोने के लिए इसमें तीन हुक लगे हैं। रात में भी उड़ान भरने और ऑपरेशन को अंजाम देने में सक्षम यह हेलिकॉप्टर घने कोहरे तथा धुंध में भी बखूबी कारगर है। इसे बेहद कुशलता के साथ मुश्किल से मुश्किल जमीन पर भी ऑपरेट किया जा सकता है। चिनूक में मिसाइल वार्निंग सिस्टम का इस्तेमाल किया गया है तथा इसमें तीन मशीनगन भी सेट की गई हैं। लैंडिंग के समय जमीन पर मौजूद किसी भी प्रकार के खतरे से निपटने के लिए इनका इस्तेमाल होता है। वैसे तो चिनूक का आकार काफी बड़ा है लेकिन बड़े आकार के बावजूद अन्य हेलीकॉप्टरों के मुकाबले इसकी गति बेहद तेज होती है, जिससे दुर्गम स्थानों पर भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। इसका इस्तेमाल अन्य युद्धक हेलीकॉप्टरों की तरह सीधे तौर पर युद्ध में दुश्मन पर हमला करने में नहीं होता बल्कि यह सैनिकों तथा सैन्य साजो-सामान को दुर्गम स्थानों तक पहुंचाने के लिए उपयोग किया रहा है।
अमेरिका के अलावा जापान, आस्ट्रेलिया, नीदरलैंड इत्यादि करीब 25 देश अमेरिका द्वारा निर्मित चिनूक हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि भारत ने अपनी वायुसेना की ताकत बढ़ाने के लिए ऐसे हेलीकॉप्टरों पर भरोसा जताया है, जिन्हें पहले ही पूरी दुनिया में बहुत अच्छी तरह से आजमाया जा चुका है। चिनूक की शुरूआत करीब छह दशक पहले 1957 में हुई थी। 1962 में इसको अमेरिकी सेना में शामिल किया गया था। समय की मांग के साथ-साथ इन हेलीकॉप्टरों में पूर्णतया एकीकृत डिजिटल कॉकपिट मैनेजमेंट प्रणाली सहित रोटर ब्लैड, एडवांस्ड फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम इत्यादि कई बदलाव करते हुए इसके वजन को कम किया गया और इसकी तकनीक में सुधार करते हुए इसे इतना उन्नत बनाया गया कि यह अमेरिका के सबसे तेज हेलीकॉप्टरों में से एक माना जाता है। इसमें कॉमन एविएशन आर्किटेक्चर कॉकपिट तथा एडवांस्ड कॉकपिट प्रबंध जैसी विशेषताएं भी हैं। इस अमेरिकी हेलीकॉप्टर के विदेशी खरीददारों में सबसे पहला खरीददार नीदरलैंड था, जिसने 17 सीएच-47एफ हेलीकॉप्टर फरवरी 2007 में खरीदे थे। 2009 में कनाडा ने इसके 15 अपग्रेड वर्जन खरीदे थे जबकि उसी वर्ष दिसम्बर माह में ब्रिटेन ने 24 चिनूक हेलीकॉप्टर खरीदे थे। अगले साल आस्ट्रेलिया ने कुल 10 चिनूक खरीदे और 2016 में सिंगापुर ने 15 हेलीकॉप्टरों का सौदा किया था।
वायुसेना को इसी वर्ष सितम्बर माह से 22 अपाचे अटैक हेलीकॉप्टरों की भी आपूर्ति शुरू होने वाली है, जिनका सौदा 2015 में चिनूक के साथ ही किया गया था। कुछ ही माह पहले भारत ने रूस के साथ 37 हजार करोड़ रुपये की लागत से एस-400 एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल प्रणाली का सौदा भी किया था, जिसके बारे में वायुसेना प्रमुख ने कहा था कि एस-400 तथा राफेल वायुसेना के लिए ‘बूस्टर खुराक’ होगी। दरअसल मल्टी फंक्शन रडार से लैस एस-400 आज की तारीख में दुनियाभर में सर्वाधिक उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणालियों में से एक है, जो रूसी सेना में 2007 में सम्मिलित हुई थी। यह प्रणाली जमीन से मिसाइल दागकर हवा में ही दुश्मन की ओर से आ रही मिसाइलों को नष्ट करने में सक्षम है, जो एक साथ 36 लक्ष्यों और दो लॉन्चरों से आने वाली मिसाइलों पर निशाना साध सकती है और 17 हजार किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से 30 किलोमीटर की ऊंचाई तक अपने लक्ष्य पर हमला कर सकती है। इसकी रेंज 400 किलोमीटर है और यह 600 किलोमीटर की दूरी तक निगरानी करने की क्षमता से लैस है। इससे पाकिस्तान के चप्पे-चप्पे पर नजर रखना संभव हो सकेगा। यह किसी भी प्रकार के विमान, ड्रोन, बैलिस्टिक व क्रूज मिसाइल तथा जमीनी ठिकानों को 400 किलोमीटर की दूरी तक ध्वस्त करने में सक्षम है। इसके जरिये भारतीय वायुसेना देश के लिए खतरा बनने वाली मिसाइलों की पहचान कर उन्हें हवा में ही नष्ट कर सकेंगी।
हमारी वायुसेना दुनिया की चौथी सबसे बड़ी वायुसेना मानी जाती है। इस प्रकार चिनूक, अपाचे, राफेल तथा एस-400 मिलकर देश के रक्षा तंत्र को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ भारतीय वायुसेना के आधुनिकीकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित होंगे। ये हेलीकॉप्टर तथा विमान ऐसे समय में भारतीय वायुसेना की अभेद्य ताकत बनेंगे, जब भारत को देश की सुरक्षा के लिए इनकी सर्वाधिक जरूरत है। वायुसेना के बेड़े में इस तरह के हेलीकॉप्टरों और विमानों की मौजूदगी से सशस्त्र सेनाओं का मनोबल तो बढ़ेगा ही, वायुसेना अत्याधुनिक भी बनेगी।