रायपुर के चिकित्सकों ने की दुर्लभ सर्जरी, सीमेंट से बनाई कृत्रिम पसलियां

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डॉक्टरों ने आठ घंटे की मशक्कत से युवक की छाती से निकाला सात किलो वजनी ट्यूमर
रायपुर, 27 जुलाई (हि.स.)। छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े अस्पताल डॉ. भीमराव अंबेडकर स्मृति चिकित्सालय के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट के डॉक्टरों ने आठ घंटे की सर्जरी के बाद एक मरीज को नई जिंदगी दी। 30 वर्षीय युवक को कैंसर हो गया था। वह अपने सीने में सात किलो वजनी ट्यूमर का बोझ लेकर जिंदगी और मौत से लड़ रहा था। लेकिन अंबेडकर अस्पताल के डॉक्टरों ने उसे नई जिंदगी दी| खास बात यह कि सीमेंट से उसकी कृत्रिम पसलियां बनाई गई हैं। युवक का सफल ऑपरेशन गुरुवार की देर रात को हुआ।

यह आॅपरेशन चिकित्सालय के चार विभागों के संयुक्त प्रयास से संभव हुआ है। इसमें प्रमुख सर्जन के तौर पर एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट के काॅर्डियोथोरेसिक वैस्कुलर डाॅ. निशांत चंदेल के साथ डाॅ केके साहू, प्लास्टिक सर्जन डाॅ केएन ध्रुव और डाॅ दयाल, रेडियोडाग्नोसिस विभाग के डाॅ सीडी साहू के साथ एनेस्थिया विभाग के डाॅ ओपी सुंदरानी शामिल रहे। सर्जरी के बाद मरीज अभी चिकित्सालय के क्रिटिकल केयर यूनिट में चिकित्सकों की देखरेख में भर्ती है। डॉक्टरों का दावा है कि महानगरों के बड़े अस्पतालों में होने वाले इस दुर्लभ व जटिल आॅपरेशन को एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट में सफलतापूर्वक किया गया, जो अस्पताल के लिए बड़ी सफलता की बात है।
डॉक्टरों के मुताबिक मरीज का कैंसर काफी बढ़ गया था जिसके कारण मरीज की सबसे पहले कीमोथेरेपी की गई। इसके बाद इंटरवेंशन रेडियोलाॅजिस्ट डाॅ सीडी साहू ने ट्यूमर में ब्लड सप्लाई बंद करने के लिए एंडोवैस्कुलर क्वालिंग प्रोसीजर डीएसए मशीन के माध्यम से किया। इस प्रोसीजर से ट्यूमर की वाॅस्कुलैरिटी कम हो गयी। इसके बाद काॅर्डियोथोरेसिक वैस्कुलर सर्जन डाॅ निशांत चंदेल के नेतृत्व में छाती की पांच पसलियों को काटकर निकालते हुए अंदर तक चिपके हुए ट्यूमर को निकाला गया जो कि हृदय, फेफड़ों एवं पेट में स्प्लीन से चिपका हुआ था। इस ट्यूमर को सावधानीपूर्वक सभी अंगों को सुरक्षित रखते हुए निकाला गया। उसके बाद बोन सीमेंट (आर्टिफिशियल सीमेंट जिसका इस्तेमाल हड्डी जोड़ने के लिए किया जाता है) के द्वारा और ट्यूब के जरिये आर्टिफिशियल रिब्स यानी पसली बनाई गई।
इस ऑपरेशन में आर्थिक रूप से कमजोर मरीज का एक पैसा भी खर्च नहीं हुआ। दिल, फेफड़ों, स्प्लिन और छाती की हड्डियों तक फैले इस ट्यूमर से सभी अंगों को सुरक्षित बचा लिया गया, लेकिन पांच पसलियां काटकर अलग करनी पड़ीं। मरीज को अभी हफ्तेभर तक गहन निगरानी में रखा गया है।
कार्डियक थोरोसिक सर्जन एवं सर्जरी को लीड करने वाले डॉ. निशांत चंदेल का कहना है कि नंदलाल का जीवित रहना चमत्कार है। डॉ. चंदेल ने बताया कि मरीज की पसलियां काटना ही विकल्प था। पैर की हड्डियों को निकालकर सीने में लगा सकते थे, लेकिन पसलियों का शेप नहीं बनता, इसलिए बोन सीमेंट पद्धति का इस्तेमाल किया गया। इसे अर्टिफिशियल बोन कहा जाता है। डॉ. चन्देले ने बताया कि वे पिछले 15 साल से ऑपरेशन कर रहे हैं, लेकिन आज तक इतने बड़े ट्यूमर का ऑपरेशन नहीं किया था।
सीमेंट से बनाई गई पसली
इसमें छोटे रिब्स को मेटल प्लेट से और दो रिब्स को सीमेंट के जरिए बनाया गया। प्लास्टिक सर्जन डाॅ . केएन ध्रुव और डाॅ. दयाल ने ट्यूमर को निकालने के बाद खाली हुए स्थान को पीठ और पेट के मसल के जरिये फ्लैप विधि से रीकंस्ट्रशन सर्जरी की।


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