यादों में अटल जी: बातचीत के जरिये सुलझाना चाहते थे राम जन्मभूमि विवाद

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लखनऊ, 17 अगस्त (हि.स.)। पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई अयोध्या का श्रीराम जन्मभूमि विवाद आपसी बातचीत के जरिये सुलझाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री रहते काफी प्रयत्न भी किया। कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी जयेन्द्र सरस्वती को उन्होंने मध्यस्थ बनाया था। हिन्दू व मुस्लिम पक्षकारों की ओर से कई दौर की वार्ताएं हुईं लेकिन नतीजा सिफर निकला।
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया था। इस विभाग का काम विवाद को सुलझाने के लिए हिन्दुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था। वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को हिन्दू और मुसलमान नेताओं के साथ बातचीत के लिए नियुक्त किया गया था।
अटल बिहारी बाजपेई के ही कार्यकाल में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने खुदाई शुरू की। मुस्लिम पक्षकार यह कह रहे थे कि अगर खुदाई में यह सिद्ध हो जाए कि वहां पर मंदिर था तब हम दावा छोड़ देंगे। विशेषज्ञों ने बताया कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं, लेकिन मुस्लिम पक्ष तैयार नहीं हुआ।
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय (2002) श्रीराम जन्मभूमि न्यास के तत्कालीन अध्यक्ष परमहंस रामचंद्र दास ने अधिग्रहीत क्षेत्र में शिलादान का कार्यक्रम घोषित किया था। तब उन्हें न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए ऐसा न करने के लिए राजी किया गया था।
अटल के कार्यकाल में वार्ताओं के क्रम से लग रहा था कि विवाद का समाधान हो जायेगा। अन्ततः विवाद नहीं सुलझ सका।
वहीं विकास के नक्शे पर अयोध्या की पहचान प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की देन है। वे सरयू नदी पर बने रेल पुल के लोकार्पण के लिए अयोध्या-फैजाबाद खुद आए। यहां के लिए यह उनकी अंतिम यात्रा साबित हुई। हवाई पट्टी के मैदान में जनता ने उनका ओजस्वी भाषण सुना। दोपहर में सभा होने के बावजूद मैदान में एक लाख के आसपास भीड़ जमा थी।
अटल ने प्रधानमंत्री रहते न केवल रेल पुल का लोकार्पण किया, बल्कि लखनऊ-गोरखपुर राष्ट्रीय राजमार्ग के साथ अयोध्या में फोरलेन पुल देकर यहां के विकास को नया आयाम दिया था।


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