मोदी विरोधी राजनीति के आज भी केंद्र बिन्दु हैं लालू
पटना, 29 मार्च (हि.स.)। सियासत में कुछ भी अप्रत्याशित नहीं होता। हर चीज सधी हुई होती है। लंबे अरसे के अभ्यास के बाद जब लीडर पूरी तरह से तप जाता जाता है, तब उसकी चाल और भी सधी हुई होती है। रांची की जेल में बैठकर राजद के मुखिया लालू यादव जिस तरह से महागठबंधन के घटक दलों को साधते हुये अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर मजबूती से स्थापित करते हुये राजनीति में भी उनके रास्ते को साफ कर रहे हैं उससे साफ संकेत मिल रहे हैं कि वह आज भी बिहार में भाजपा और मोदी मुखालिफ राजनीतिक के केंद्र बिन्दु हैं।
लालू यादव की गैरमौजूदगी में राजद का यह पहला लोकसभा चुनाव होने के बावजूद मोदी विरोधी तमाम सियासी तत्व लालू यादव के इशारे पर ही थिरकने को मजबूर हैं। इसका अंदाजा कांग्रेस की तकरार, इनकार और फिर इकरार से लगाया जा सकता है। शुरुआती दौर में कांग्रेस 12 से15 सीटों को लेकर ताबड़तोड़ वर्जिश कर रही थी लेकिन अंतत: फूंक मार कर लालू यादव ने उसे 9 सीट पर सिमटा दिया। बिहार की सियासत में लालू की राजनीतिक शैली पर नजर रखने वाले एक जानकार कहते हैं, लालू डिक्टेट करने की पोलिटिक्स में यकीन करते हैं। अपने हामी दलों के साथ भी उनका यही रवैया रहता है और कांग्रेस की नब्ज तो उनके हाथ में बहुत ही लंबे समय से है। अपनी राजनीतिक कैरियर की शुरुआत उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ ही की थी, लेकिन धीरे-धीरे थोड़ा बहुत संशोधन के साथ उन्होंने कांग्रेस की राजनीतिक शैली को ही अपना लिया। चाहे पार्टी पर पकड़ का मामला हो या फिर सत्ता में आने के बाद शासन करने का, उन्होंने हमेशा परिवारवादी राजनीतिक परिपाटी को ही मजबूत किया है। राजद के कार्यकर्ता और नेता भी इस हकीकत से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। इसलिए वह सीधे तौर पर विद्रोह करने की हिम्मत तो नहीं उठा पाते हैं लेकिन चुनावी मौसम में उनका दर्द जरूरत छलक कर बाहर आ जाता है। राजद के एक नेता नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि इस बार लालू यादव ने काफी चालाकी से मधेपुरा से शरद यादव जैसे कद्दावर नेता को पप्पू यादव के सामने कर दिया है, बेगूसराय से कन्हैया कुमार के सामने तनवीर हसन को खड़ा कर दिया है। शरद यादव राजनीति में खुद को लालू यादव से सीनियर समझते रहे हैं, लेकिन लालू यादव ने राजद के टिकट पर मधेपुरा से उन्हें खड़ा करवा कर उन्हें कड़ी आजमाईश में डाल दिया है। पप्पू यादव मधेपुरा में जमीनी स्तर पर काम करते रहे हैं। पप्पू यादव से दो-दो हाथ करने में निश्चित तौर से शरद यादव की नाक से पसीना निकलने वाला है। वहीं दूसरी ओर कन्हैया कुमार की महत्वाकांक्षा युवा नेता के तौर पर बिहार का नेतृत्व झटकने का रहा है। यदि वह लोकसभा में प्रवेश करने में कामयाब हो जाते हैं तो निश्चित तौर पर बिहार के युवा नेता के तौर पर तेजस्वी यादव का ग्राफ खिसक कर पीछे चला जाएगा। बेगूसराय से तनवीर हसन को टिकट देकर उन्होंने प्रत्यक्षरूप से कन्हैया के रास्ते में कांटे बिछा दिए हैं।
महागठबंधन के छोटे-छोटे घटक दलों को तीन-तीन सीट देने के लालू यादव के फैसले पर कई लोगों ने आश्चर्य प्रकट किया था लेकिन सूत्रों का कहना है कि भले ही विकासशील इंसाफ पार्टी और और हम को तीन तीन सीट दे दिये गये हों लेकिन इन पर उम्मीदवारों के चयन में खुद लालू यादव अहम भूमिका निभा रहे हैं। लालू यादव का यह फार्मूला राष्ट्रीय लोक समता पार्टी पर भी लागू हो रहा है। शुक्रवार को जिस तरह से महागठबंधन की तरफ से अकेले तेजस्वी यादव ने सभी घटक दलों के उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की वह भी तेजस्वी यादव को मजबूती से स्थापित करने की दिशा में ही उठाया गया कदम है क्योंकि लालू यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप भले ही खुद को कृष्ण और तेजस्वी यादव को अर्जुन बताते रहते हैं लेकिन उनके दिल में कहीं न कहीं लालू यादव की विरासत का असली हकदार बनने की इच्छा दबी हुई है और यह इच्छा गाहे बगाहे जोर भी मारती है। हाल में एक ट्वीट करते उन्होंने चेतावनी भी दी है कि उन्हें नादान समझने वाले खुद नादान हैं। उनकी नजर सभी लोगों पर है।