‘मोदी मैजिक’ में गुम हो रही भाजपा कार्यकर्ताओं की सक्रियता!
गोरखपुर, 12 मई (हि.स.)। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यकर्ताओं के सिर पर मोदी का जादू चढ़कर बोल रहा है। लेकिन यह जादू सिर्फ जनसभाओं तक ही सिमटा है। ‘मोदी-मोदी’ की गूंजने वाली आवाज जनसभा के साथ गुम हो जा रही है और उससे उत्साहित भाजपा कार्यकर्ता चुप होकर बैठ जा रहे हैं। उन्हें न तो बाहर निकल संपर्क साधना मुनासिब लग रहा है और न ही वे ‘मोदी-मोदी’ के राजनैतिक चीत्कार को लगातार लगने वाले नारे के रूप में समेटने की कोशिश ही कर रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक समीक्षक राजीवदत्त पांडेय का कहना है कि भाजपा का यह रूप देखकर अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने की याद ताजा हो रही है। ‘शाइनिंग इंडिया’ के नारे के साथ चुनाव मैदान में आई भाजपा को मुंह की खानी पड़ी थी। उस समय भाजपा कार्यकर्ता उत्साहित था। पूर्ण बहुमत में आने के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन परिणाम भाजपा के लिए बुरा रहा। पूर्वांचल के इस लोकसभा चुनाव में भी भाजपा कम-ओ-बेश उसी रास्ते पर आगे बढ़ रही है। मंडल के भाजपा कार्यकर्ताओं के सिर ‘मोदी मैजिक’ चढ़ा है। अटल के समय में ‘शाइनिंग इंडिया’ की शोर के नीचे कार्यकर्ताओं की सक्रियता दबी थी। शाइनिंग इंडिया नारे में उस समय भी कार्यकर्ता निष्क्रिय था और अब मोदी मैजिक के असरदार होने की उम्मीद पर भी निष्क्रियता बनी है।
वरिष्ठ पत्रकार धीरेंद्र विक्रमादित्य गोपाल का कहना है कि भाजपा की हर जनसभा में ‘मोदी-मोदी’ का नारा लगाया जा रहा है। प्रचार का यह जरिया अच्छा है। हो सकता है कि भाजपा समर्थकों के साथ यह नारा आमजन भी लगा रहा हो, लेकिन इसे गांव-गांव और घर-घर तक पहुंचाने की कोशिश होनी चाहिए। किंतु, यहां तो भाजपा कार्यकर्ता बाहर निकल ही नहीं रहा है। इधर, योगी आदित्यनाथ का बयान भी लोगों को संशय में डालने वाला है। कभी रविकिशन को मुम्बई से गोरखपुर लाने और कभी कार्यकर्त्ताओं को भाड़े पर लाया गया मजदूर कहकर अपनी खीज निकालने वाले मुख्यमंत्री ही ऐसा कहेंगे तो कार्यकर्ताओं को निराशा और विरोधियों को भाजपा के बाहरी उम्मीदवार का आरोप लगाने का मौका मिलेगा ही। मुख्यमंत्री के बयान से कार्यकर्ताओं की मुश्किल और बढ़ गयी है जबकि इसके कम होने के प्रयास होने चाहिए थे।
राजनैतिक विश्लेषक विनोद श्रीवास्तव के मुताबिक कांग्रेस के गोरखपुर से ब्राह्मण उम्मीदवार मधुसूदन त्रिपाठी और गठबंधन से निषाद उम्मीदवार रामभुआल के मैदान में आने से लड़ाई रोचक बन गई है। हालांकि लड़ाई को त्रिकोणीय संघर्ष नहीं कह सकते हैं, फिर भी भाजपा की मुश्किलें बढ़ीं हैं। ब्राह्मण मतदाताओं का रुझान अगर कांग्रेस की तरफ और निषादों का रुख गठबंधन उम्मीदवार की ओर हुआ हुआ तो भाजपा की मुश्किल निश्चित रूप से बढ़ेगी।